जब चंबल में बीहड़ नहीं बन थे, तब यह क्षेत्र जंगलों से संवृद्ध था। चारों तरफ शांति और हरियाली थी। अच्छी वर्षा होती थी और जंगलों के कारण मिट्टी का कटाव नहीं था। समाज भी अपने जल, जंगल, शुद्ध हवा और पानी से अपने प्राणों को पुष्ट रखता था। पानी से चंबल का समाज बहुत ही समृद्ध गौरवशाली था। लेकिन एक समय के बाद यहां की मिट्टी बारिश के पानी से कटकर चंबल नदी में जाने लगी और क्षेत्र में गहरी खाई होने लगी। लाल पत्थरों के ऊपर की उपजाऊ मिट्टी भी बारिश के पानी के साथ घुलकर चंबल की सहायक नदियों में जाने लगी। दूसरी तरफ पत्थरों के खनन के कारण धरती के ऊपर लाल घाव दिखने लगे। यह इलाका उजाड़ बन गया था ।
एक दौर आया जब इन सब खदानों को बंद करने के लिए तरुण भारत संघ ने उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर की और खदानों को बंद कराया था। खदानों ने जल के स्तर को बहुत नीचे पहुंचा दिया था, जिस कारण इस इलाके में ना पानी था और न ही खदानों में काम। ऐसी स्थिति में चंबल के बीहड़ के लोगों ने अपने घर के पालन पोषण और अपनी जीविका चलाने के लिए बंदूकों का सहारा लिया और लूटपाट, चोरी-डकैती डालने का काम करने लगे थे।
आज से 35 साल पहले चंबल के बीहड़ के क्षेत्र में हमने जल संरक्षण का काम शुरू कर दिया था। हमने समाज के साथ मिलकर बीहड़ में सैकड़ों पोखर, बांध और एनीकट का निर्माण करवाया। इस जल संरक्षण के काम से धरती पर मिट्टी का कटाव रुक गया और धरती के पेट में पानी भरना शुरू हुआ। पानी भरने से जल स्तर ऊपर आया और नदियां बहने लगी। धरती पर नमी बढ़ी और हरियाली भी बढ़ने लगी। इस हरियाली ने यहां के लोगों के मस्तिष्क को भी प्यार से हरा-भरा बना दिया। लोग प्रकृति के प्यार से पोषित होने लगे।
पानी के पोषण ने यहां के समाज को बंदूक छोड़कर, पानी बचाने और खेती करने का काम शुरू करवाया। इस क्षेत्र के गांवों में खेती के साथ-साथ पशुपालन का काम बहुत तेजी से बढ़ने लगा और बंदूक के नाले मूंदने लगे। क्षेत्र बंदूक मुक्त होने सबशांति की हवा चलने लगी है। शांति की हवा ने इस इलाके को सुखी, समृद्ध और आनंदमय बनाना शुरू किया। अब इस क्षेत्र में बंदूके नहीं दिखती हैं और वीरान इलाका भी हरा-भरा होने लगा है। अभी तो चंबल की सभी सहायक नदियों पर वहां का समाज साथ काम करके इलाके को पानीदार बना रहा है।
जब लोग बंदूक छोड़कर, पानी के प्रेम से आगे बढ़े, तब तरुण भारत संघ ने इन सब लोगों को सम्मानित करने का तय किया। इसी वर्ष विश्व जल शांति दिवस के अवसर पर चंबल के लोगों को श्री महावीर जी, करौली में आयोजित जल एवं शांति लोक सम्मेलन में इकट्ठे करके, सबको सनद देकर सम्मानित किया। सम्मानित होकर चंबल के समाज ने प्रकृति में जियो और जीने दो का संदेश देकर कहा कि “अब हम बिना बंदूक के आनंद से जी रहे हैं। विश्व शांति जलदूत की सनद पाकर अपने को गौरांवित अनुभव किया है। हम अब हिंसक काम कभी नहीं करेंगे। हमारे दिन बदल रहे हैं, हमारे पास पानी है, हरियाली है और पवित्रता है। हमारा जीवन सुखी, समृद्ध और शांतिमय बना है।”
इस विश्व जल शांति दिवस पर कल चंबल के लोगों ने संयुक्त राष्ट्र संघ से आवाहन किया है कि, “जिस तरह से हमने अपने जीवन से अपनी बंदूके छोड़कर, पानी से जीवन पोषित किया और दूसरों को भी पोषित कर रहे है। हिंसा का रास्ता छोड़कर, अहिंसा के रास्ते को अपनाया है।संयुक्त राष्ट्र संघ और दुनिया को भी ऐसे ही काम करने का तंत्र विकसित करना चाहिए। यही दुनिया में हिंसा को रोकने व अहिंसामय बनने का सरल और सहज रास्ता है। यह प्रेम, विश्वास, श्रद्धा, निष्ठा और भक्ति का रास्ता पकड़कर संयुक्त राष्ट्र संघ और दुनिया की राष्ट्रीय सरकारों को प्राकृतिक संसाधन की बराबरी से बांटने वाला होना चाहिए। इसी रास्ते पर संयुक्त राष्ट्र संघ दुनिया की सरकारें और समाज मिलकर चलें”।
आज जब दुनिया में पानी के संकट के कारण चारों तरफ तनाव है और सुखाड़, बाढ़, जलवायु परिवर्तन और मौसमीय घटनाएं दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है, यह वैश्विक संकट है।लेकिन इसका समाधान स्थानीय स्तर पर प्रकृति के अनुकूलन और उन्मूलन के काम करने से ही संभव होगा।
मैंने पिछले 42 सालों में देखा है कि जहां-जहां स्थानीय समुदायों ने पानी का संरक्षण, संवर्धन करके और अनुशासित होकर उपयोग किया, वो समाज अभी भी पानीदार बने हुए हैं और दूसरों को भी पानीदार बना दिया है। धरती के ऊपर रहने वाले सभी जीव जंतुओं, पेड़ पौधों का पेट भी पानी से भर गया है। इसी का नतीजा है कि चंबल जैसा एक संकटग्रस्त इलाका पानी के उपलब्ध होने पर अब हिंसा त्याग अहिंसामय बन गया है।
*जलपुरुष के नाम से विख्यात जल संरक्षक