– डॉ राजेंद्र सिंह*
महाराष्ट्र में शिवाजी और राजस्थान में महाराणा प्रताप को स्वराज का संस्थापक माना जाता है। इन दोनों को स्वराज निर्माता भी माना जाता है। इन्होंने किसी से अपने राज्याधिकार की माँग नहीं की थी, बल्कि अपने कर्तव्य पालन हेतु सत्याग्रह और संघर्ष किया था। संघर्ष में विजय और पराजय इनका मुख्य लक्ष्य नहीं था, बल्कि उन्होंने अपना कर्तव्य समझकर उसकी पालना करना ही स्वराज्य का मुख्य लक्ष्य बनाया था।
किसी को भी कष्ट दिये बिना, अपने सत्य के आग्रह को सदैव भय-मुक्त होकर निश्चिन्तता से अपने आग्रह पर टिक कर रहने वाला ही स्वराज्य की कल्पना को स्वीकार करता है। वही स्वराज्य की कल्पना को साकार करने में सक्षम होगा।
जनवरी 1921 में महात्मा गांधी अपनी पुस्तक ‘‘हिन्द स्वराज्य’’ के विषय में लिखते हैं – ‘‘स्वराज्य की जो तस्वीर मैंने खड़ी की है, वैसा स्वराज्य कायम करने के लिए आज मेरी कोशिश चल रही है। मैं जानता हूँ कि अभी हिन्दुस्तान उसके लिए तैयार नहीं है। ऐसा कहने में शायद ढिठाई का भास हो, लेकिन मुझे तो पक्का विश्वास है कि इसमें जिस स्वराज्य की तस्वीर मैंने खींची है, वैसा स्वराज्य पाने की मेरी निजी कोशिश ज़रूर चल रही है। लेकिन इसमें कोई शक नहीं है कि आज मेरी सामूहिक प्रवृत्ति का ध्येय तो हिन्दुस्तान की प्रजा की इच्छा के मुताबिक ‘‘पार्लियामेन्टरी ढंग का स्वराज्य पाना है।’’
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आज आज़ादी और लोकतन्त्र के 75 वर्षों के बाद भी भारत में सभी को समान रूप से बराबर से जीवन, जीविका और ज़मीर हेतु जल उपलब्ध नहीं है। कुछ लोग जल अधिक क़ब्ज़ा करके, जल बर्बाद कर रहे हैं, जबकि बहुत लोगों को पीने के लिए भी पानी उपलब्ध नहीं है। इनकी धरती और धरती के पेट का पानी भी शोषित कर लिया है और किया जा रहा है।
जो इस जल सृष्टि-रचना को समझेगा, वह सत्यस्वरूप होगा। जो इस पर सोचेगा, उसके ध्यान में आयेगा कि यह जल ऊपर-ऊपर और कितना है। सोचते-सोचते पीछे चले जायें-इस भूमि को उसका आधार, उसको उसका आधार, ऐसा करते-करते पीछे-पीछे चले जाते हैं तो परमेश्वर के पास पहुँच जाते हैं। जल ही परमेश्वर है। यह ज़रूर मिलेगा, परन्तु इसे पाने हेतु प्रयास और प्राप्त करके अनुशासित उपयोग करना सीखें।
जल स्वराज्य की भारतीय सीख से ही तरुण भारत संघ व सुखाड़-बाढ़ विश्व जनआयोग ने संयुक्त रूप से उक्त मान्यता को संयुक्त राष्ट्र संघ के दूसरे जल सम्मेलन में 22 मार्च 2023 को न्यूयार्क में रख रखा था। इसे स्वीकार किया गया और संयुक्त राष्ट्र संघ ने इसे अपने अभिलेखों में सम्मिलित कर लिया है। स्वराज्य माँगने से नहीं मिलता है। कुछ अच्छा करने व करवाने से मिलता है।
जल स्वराज्य की दिशा में यह पहल विश्व स्तर पर हुई है। हमने वहाँ अपनी बात रखते हुए कहा “जल को सरकारें नहीं बनातीं, यह तो प्रकृति प्रदत्त है”।
तरुण भारत संघ से जुड़ी ग्राम सभाओं ने जल स्वराज्य हेतु सवाई माधोपुर, करौली, धौलपुर, भरतपुर, कोटा, दौसा, अलवर आदि ज़िलों के गाँवों में ‘ग्राम स्वराज्य’ विचार के अनुरूप सर्व सम्मति से प्रस्ताव पारित करके, अपने वर्षा जल को सहेजकर, बराबरी से उपयोग करने का हक़ कायम करने की परम्परा शुरु की है। तरुण भारत संघ की परम्परा यह मानती है कि, पानी पर केवल मानव का ही अधिकार नहीं है, बल्कि इस पर पेड़-पौधे, धरती, नदी, समुद्र, तालाब व पृथ्वी पर रहने वाले सभी जीव जगत का ही मानव से पहला हक है।
बापू (महात्मा गांधी) की बुनियादी विद्या से तरुण भारत संघ ने सीख लेकर तथा लोकमान्य तिलक के ‘‘स्वराज्य हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है’’, इस नारे को सुनकर जल का संरक्षण, सामुदायिक विकेंद्रित जल प्रबन्धन भारतीय विद्या के द्वारा किया है। भारतीय ज्ञान-तन्त्र के आधार पर लोगों ने तरुण भारत संघ और मुझे जल के समान अधिकार की बात सिखाई है।
जल ही जीवन है, यह सत्य है। जल किसी के साथ हिंसा नहीं करता, उसका मूल चरित्र अहिंसामय होता है। इसलिए जल की भाषा पूर्ण रूप से अहिंसामय होती है और नदियाँ जल की बोली बन जाती हैं। जब तक हम जल को भगवान् मानकर उसको केवल जीवन के लिए, जीवन का आधार मानकर उपयोग करते थे, तब तक जल के साथ हिंसा नहीं थी। लेकिन पश्चिमी सभ्यता ने जल को जीवन न मानकर बाज़ार की वस्तु माना है, इसलिए पाश्चात्य शिक्षा ने इस दुनिया में जल के द्वारा हिंसा शुरू की है। मूलतः जल किसी के साथ हिंसा नहीं करता, लेकिन जल को बाज़ारू बनाकर, अब जीव-जगत् नदी-समुद्र तथा लोगों के जीवन के लिए जल उपलब्ध नहीं, तो जल स्वराज्य कहाँ?
*जल पुरुष के नाम से विख्यात जल संरक्षक।