भूमि का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है भूजल, जो निरंतर पीने के पानी की आपूर्ति करता है। धरती के नीचे समाया जल आज संकट में है जिसे सभी को गंभीरता से लेना चाहिए। यह खजाना लूटा तो जीवन का अंत होना तय है।
देश में शहरों का विस्तार जारी है। साल 2001 तक भारत की आबादी का महज 28 फीसद हिस्सा शहरों में रहता था लेकिन 2001-2011 के दशक में शहरी आबादी में वृद्धि की दर 30 फीसद पहुंच गई। अनुमान है कि साल 2030 तक देश की आबादी का 40 फीसद हिस्सा शहरों में रहने लगेगा। आसान शब्दों में कहें तो साल 2001 में शहरी आबादी 29 करोड़ थी जो साल 2011 में बढ़कर 37.7 करोड़ हो गई और साल 2030 तक यह 60 करोड़ हो जायेगी।
एक जानकारी के अनुसार साल 2001 में देश में प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता 1,816 घन मीटर थी जो साल 2011 में घटकर 1,545 घन मीटर और साल 2031 में 1,367 घन मीटर हो सकती है। स्पष्ट है कि आबादी में इज़ाफा होने के साथ देश में प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता घट रही है।
नेशनल रिमोट सेन्सिंग सेंटर के सहयोग से हाइड्रोलॉजिकल मोडल और वॉटर बैलेंस का इस्तेमाल कर सेंट्रल वॉटर कमीशन ( सीडब्ल्यूसी) ने ” रियसेसमेंट ऑफ वॉटर अवेलेबिलिटी ऑफ वॉटर बेसिन इन इण्डिया यूजिंग स्पेस इनपुट्स ” नाम की रिर्पोट जारी की थी। इस रिर्पोट से स्पष्ट पता चलता है कि देश जल संकट से गुजर रहा है।
भूजल रिचार्ज की तुलना में भूजल का अत्याधिक दोहन एक बड़ी चिंता है। इसका नतीजा है कि भुजल स्तर में लगातार गिरावट दर्ज़ हो रही है। इसके लिए केंद्र और राज्य सरकारों के साथ साथ नागरिक भी ज़िम्मेदार है क्योंकि नागरिकों के द्वारा धड़ल्ले से सबमर्सिबल एवं ट्यूब वेल से भूजल निकाला जा रहा है और न सरकारें इसे रोकने या जल स्तर को सुधारने के लिए कोई ठोस कदम उठा रही है। इस समस्या के और भी दूसरे कारण हैं जैसे अव्यवस्थित जल संचार, जलवायु परिर्वतन आदि। जल प्रदूषण भी इस समस्या को और बढ़ावा दे रहा है।
जलवायु परिर्वतन के कारण अधिकतम तापमान, अधिक बर्फबारी और ग्रीष्मकालीन समय में बर्फबारी का स्थानांतरण भूजल स्तर को प्रभावित कर रहे हैं। इसका सीधा प्रभाव हमारे खेतों, उद्योगों और वानिकी जीवन पर हो रहा है जिससे आने वाले समय में और भी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।
जलस्रोतों का प्रदूषण भी एक अधिकतम चिंता का कारण है। औद्योगिक विकास, और तकनीकी प्रगति के लिए हम इसे अत्यधिक उपयोग कर रहे हैं, जिससे जलस्रोतों पर बड़ा दबाव पड़ रहा है। इससे न केवल पानी की गुणवत्ता कम हो रही है, बल्कि यह सीधे प्रभावित क्षेत्रों के स्वास्थ्य को भी प्रभावित कर रहा है।
इस संकट को निराकरण करने के लिए हमें जल संरक्षण के उपायों पर गंभीर रूप से विचार करना होगा। सबसे पहले हमें जल संवर्धन की जागरूकता फैलानी चाहिए। स्कूलों और कॉलेजों में इस पर चर्चा और समुदाय सभाओं का आयोजन करना चाहिए। लोगों को जल संरक्षण के महत्व के बारे में शिक्षित करना हमारी प्राथमिक जिम्मेदारी है।
हमें जलस्रोतों को सुरक्षित रखने के लिए उपायों को अपनाना होगा। उचित जल संचार और स्थानीय स्तर पर जलस्रोतों की सफाई और रक्षा के लिए कदम उठाना आवश्यक है। भूजल संकट का सामना करना हम सभी की जिम्मेदारी है। यदि हम इस पर संज्ञान नहीं लेंगे, तो आने वाली पीढ़ियों को एक विकट स्थिति का सामना करना पड़ेगा। इसलिए, जल संरक्षण के सिलसिले में हम सभी को एक साथ मिलकर काम करना चाहिए, ताकि हम आने वाली पीढ़ियों को एक स्वस्थ और सुरक्षित भविष्य दे सकें।