आज दुनिया को जल का निजीकरण नहीं सामुदायिकरण चाहिए इसलिए हमने केरल के पांचीमाडा, जिला कासरकूड, की ग्राम पंचायत का जल के निजीकरण रोकने हेतु कोका कोला के विरुद्ध आंदोलन किया था। उसको सफल बनाने में हम बराबर उनके साथ रहे। “राजा का तालाब” बनारस में जो कोका-कोला कंपनी का पानी का व्यापार था, उसके विरोध में भी हम साथ रहे। अपने-अपने इलाके में हम जहां भी पानी का काम कर रहे थे, वहां कोका-कोला कंपनी को नहीं लगने दिया। जयपुर जिले के चोमू में भी कोका कोला कंपनी के उद्योग के खिलाफ वातावरण तैयार किया था।
कोका कोला ने एक बार जल भागीरथी संस्थान को कॉर्पोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी (सी एस आर) के अंतर्गत योगदान देने का प्रयास किया था, तब मैं उनसे जुड़ा हुआ था, तो हमने उसको स्वीकार नहीं किया। हम पानी का प्रदूषण, शोषण और व्यापार करने वाले संगठनों का कभी भी सहयोग न लेते हैं और ना सहयोग देते हैं। इसलिए हमारा कोका कोला के साथ कभी भी ऐसा कोई लेनदेन का रिश्ता नहीं रहा है। हम चाहते हैं कि ऐसी कंपनियां, जैसे कोको कोला, पेप्सी, बिस्लारी, नेस्ले आदि जो हमारे धरती के पानी को खाली कर रही हैं, पानी को प्रदूषित कर रही हैं और भूजल के भंडारों को बिगाड़ रही हैं, उनके उत्पाद का उपयोग न करें।
हमारी स्वयं सेवी संस्था तरुण भारत संघ (तभासं) ने पानी पंचायत के दूसरे अध्याय में जल के निजीकरण व जल के व्यापारीकरण के विरुद्ध देश भर में चेतना जगाकर सामुदायिक विकेंद्रित जल प्रबंधन को बढ़ावा देने का प्रयास किया था। सामुदायिक विकेंद्रित जल प्रबंधन ही जल के निजीकरण और जल के व्यापारीकरण का समाधान है। इसलिए तरुण भारत संघ ने जल का रक्षण-संरक्षण करके, गांव-गांव में नदियों को पुनर्जीवित – शुद्ध सदा नीरा बनाने में सफलता पायी है। जो उजड़े हुए लोग थे, वे दोबारा अपनी जमीन पर आकर खेती करने में जुट गए। इसी के साथ जहां-जहां भी पानी का निजीकरण हो रहा था, जैसे तब अलवर जिले में 43 डिस्टिलरीज और ब्यूवरीज ( जल का व्यापार करने वाले उद्योग) को लाइसेंस दे दिया गया था, जबकि यह इलाका जल की कमी वाला था। यहां तरुण भारत संघ के प्रयास से जल उपलब्ध होने लगा था, तब दिल्ली से उजड़ने वाली उद्योग इकाइयां इसी क्षेत्र में आकर बसने लगी थीं। तब तभासं ने कहा कि इस क्षेत्र में जिन किसानों ने पानी बचाया है, उनके लिए यह पानी है। किसान सजीव खेती में कम पानी खर्च करके अन्न उत्पादन कर रहे हैं। इसलिए इस क्षेत्र में पानी का व्यापार करने वाली कंपनियों को लाइसेंस न दिया जाए। उनके विरुद्ध तभासं ने हाईकोर्ट में लड़ाई लड़कर इसे रुकवा दिया था। सरकार ने 43 लाइसेंस दे दिए थे। इसके बाद कोका कोला कंपनी क्षेत्र में आयी, तब इसके विरुद्ध वातावरण बनाया और उसको वहां से बाहर निकाला। तब उनकी फैक्ट्री लगी नहीं थी, लेकिन लाइसेंस मिल गया था।
फिर जयपुर में चौमू में बहुत बड़ा कारखाना कोका कोला कंपनी ने लगा लिया था। उसके खिलाफ सत्याग्रह किया और तभासं के कार्यकर्ता जेल भी गए। इस तरह वहां भी पानी के निजीकरण को रोकने में काफी कामयाबी हासिल हुई। इसी के साथ-साथ पांचीमाडा, जिला कासरकूड, केरल में वहां की ग्राम पंचायत पानी के निजीकरण के विरुद्ध लड़ रही थी, तब वहां बार-बार जाकर, सत्याग्रह करने में मदद की तभी पानी का निजीकरण को रोकने में एक बड़ी जीत हासिल हुई। यह जीत इसलिए हासिल हुई थी क्योंकि केरल की जो पंचायत थी, वह बहुत मजबूत थी। पानी के निजीकरण और व्यापारीकरण दोनों के खिलाफ संगठित होकर लड़ रही थी।
इसी दौर में कोका कोला कंपनी के खिलाफ पूरे देश में आवाज को उठाया गया था। बनारस, उत्तरप्रदेश राजा के तालाब में बहुत बड़ा उद्योग लगा था, वहां पर मास्टर नंदलाल और समाजवादी कार्यकर्ता आंदोलन कर रहे थे, उस आंदोलन में भी कई बार शामिल होकर, उसके खिलाफ सत्याग्रह किया और उसको भी वहां से हटाने की लड़ाई में बराबर कदम से कदम मिलाकर, तभासं के लोग वहां जाते रहे। नंदलाल भी अपने साथियों के साथ कई बार तभासं के कार्य क्षेत्र में काम को देखने आए और अपने इलाके के लोगों को पानी के काम में जोड़ने के लिए उन्होंने कई तालाब मनरेगा के तहत बनवाए थे। इस तरह से न केवल राजस्थान बल्कि देशभर में तभासं ने कोशिश करके लोगों को जल के निजीकरण के विरूद्ध खड़ा किया।
तभासं और पानी पंचायत दोनों ही सैद्धांतिक रूप से जल के व्यापारीकरण और निजीकरण के विरुद्ध बार-बार फैसले कर रहे थे; इसके लिए सत्याग्रह और संघर्षशील थे। इसमें उन सब जगह पर सफलता मिली , जहां पर वहां के स्थानीय लोग, पंचायतें और समुदाय को भी यह समझ में आ गया कि पानी का व्यापार उनके जीवन का व्यापार है। जल जीवन है; जीवन किसी को बेचा नहीं जा सकता और ना ही जीवन को खरीदा जा सकता। जिनको यह सिद्धांत समझ में आ गया, उन सब ने इस लड़ाई में अपनी जीत हासिल की। जिनको यह सिद्धांत समझ में नही आया; वो लड़ाई में हार गए।
पानी पंचायत और तभासं सैद्धांतिक और व्यवहारिक तौर पर मानता रहा है कि जल के प्रबंधन और जल को उपयोगकर्ता के पास पहुंचाने का सर्विस टैक्स लिया जा सकता है। इसलिए तभासं ने कभी भी किसी नगर पालिका के पानी के टैक्स बढ़ाने – घटाने पर अपना कोई संघर्ष नहीं किया। तभासं ने संघर्ष किया कि जल व्यापार की वस्तु नहीं है; पानी जीवन की वस्तु है। इसे बचाना राज और समाज की साझी जिम्मेदारी और धर्म है।
हमें इस बात को भी समझने की जरूरत है कि जल के निजीकरण को बढ़ाने के लिए राजनीतिक सत्ता, व्यापार सत्ता, अर्थ सत्ता सब एकजुट हो गए हैं। वे यह समझ रहे है कि जल का व्यापारीकरण होगा तभी उनका भी व्यापार बढ़ेगा। जल का बाजार बड़ा बनेगा तो इनको काम भी मिलेगा। इसलिए भारत में जहां पीने के लायक पानी है, उसको भी वह गंदा पानी कह देते हैं या फिर अपने उद्योगों का गंदा पानी डालकर उस पीने वाले जल को भी पीने के लायक नहीं छोड़ते।
अच्छे पानी को गंदा पानी बनाने के षड्यंत्र में उद्योगों की सबसे बड़ी भूमिका दिख रही है। यदि भारत जैसे देश में, जो जल को कभी भी व्यापार की वस्तु नहीं मानता और जल को भगवान और इस ब्रह्मांड का सृष्टि का निर्माता मानता है, उस जल को किसी भी व्यापार के अधीन करना, भारत के सिद्धांतों, भारतीय जीवन पद्धति और भारतीय जीवन के व्यवहार के अनुकूल नहीं है।
आज हम सब जल के निजीकरण के विरुद्ध पूरी दुनिया में प्रयासरत हैं। जल का निजीकरण रुके और जल का समुदायीकरण हो। जल का निजीकरण बढ़ाने में जो विश्व जल मंच का बड़ा योगदान है । इस मंच ने झूठा प्रचार करके, संयुक्त राष्ट्र संघ का संदर्भ देकर यह कहा कि जल का व्यापार बढ़ाना है, जल का निजीकरण करना है, और जल का व्यापारीकरण करने वाली जल की सारी कंपनियों के मालिक इस मंच के साथ जुड़ गए।
यह विश्व जल मंच दुनिया में पानी के व्यापार में जुट गया है और उनके बढ़ते व्यापार के कारण धरती पर बहुत सारे जीव जंतु और बहुत सारे लोग बेपानी होते जा रहे हैं। इस बात को देखकर-समझकर हमें यह जान लेना चाहिए कि हम पानी का व्यापारीकरण नहीं पानी का सामुदायीकरण करके ही भारत के जल जीवन, नदियों, सभ्यता और संस्कृति का रक्षण-संरक्षण कर सकते हैं।
*जलपुरुष के नाम से विख्यात जल संरक्षक। प्रस्तुत लेख लेखक के निजी अनुभव और कार्यों पर आधारित है और उनके निजी विचार हैं।