धौलपुर-करौली (राजस्थान): तरुण भारत संघ, जलबिरादरी और सुखाड़-बाढ़ विश्वजन आयोग द्वारा 18 मई 2023 से 20 मई 2023 तक यहाँ चम्बल क्षेत्र में “पुनजीर्वित पार्बती-सैरनी नदी सम्मेलन’’ का आयोजन किया गया जिस में स्थानीय ग्रामीणों सहित देश भर से 12 राज्यों के 90 से अधिक लोग सहभागी रहे। सम्मेलन में शामिल सभी सहभागियों ने तीनों दिन सैरनी-पार्बती नदी की सभी जल धाराओं पर अलग-अलग 5 टोलियों में, अलग-अलग क्षेत्रों पर जाकर राजस्थान के करौली-धौलपुर जिले में मई के महीने में अविरल-निर्मल सदानीरा बहती हुए सैरनी-पार्बती नदी को देखा, समझा और जाना। सम्मेलन में लोगों ने समझा कि नदियों का पुनर्जीवन कैसे हो सकता है? इससे सीख लेकर बाढ़-सुखाड़ की मुक्ति की युक्ति कैसे खोज सकते हैं? यह सम्मेलन कोई एक जगह पर बैठकर, चर्चा करने वाला सम्मेलन नहीं था, यह तो नदियों के उद्गम पर जाकर, नदी को समझने कि प्रकृति और मानवता में क्या सुधार आया है।
सभी प्रतिभागियों ने अलग-अलग गांवों और अलग-अलग क्षेत्रों में जाकर तालाबों और बहती हुई नदियों को देखा। इस दौरान प्रतिभागियों ने गांवों के ग्रामीणों से वार्ता करी। कोरीपुरा के कांजरी तालाब देखने के बाद गांव वालों के द्वारा स्कूल में बड़ी सभा का आयोजन किया गया। यहां यात्रा का ग्रामीणों द्वारा स्वागत किया गया।
कोरीपुरा के ग्रामीणों ने तालाब बनने से पहले की कहानी सुनाते हुए कहा कि पहले पानी का बहुत संकट था, उनके अधिकतर कुआं सूख गए थे। गांव के युवा पलायन कर रहे थे, वहीं महिलाओं का पूरा समय पानी लाने में निकल जाता था। ज्यादातर युवा पुरुष हिंसा के रास्ते पर चल रहे थे। बच्चे पढ़ने नही जा पा रहे थे। जब से यह तालाब बना, आज पूरा गांव पानी-पानी हो गया है। हिंसा वाले लोग अब अपनी खेती का काम कर रहे हैं।
इस सम्मेलन में भारत सरकार के नमामि गंगे के महानिदेशक आईएएस डॉ अशोक कुमार, करौली के सुपरिटेंडेंट इंजीनियर, एसडीएम मौजूद रहे। इसमें सरकार के बड़ी संख्या में इंजिनियर उपस्थिति थे। यात्रा के दौरान जब सरकारी इंजीनियर स्थानीय ग्रामीणों सहित को कहते थे कि आपने बांध बनाकर पानी रोक लिया है। तब गांव के लोग उन इंजीनियर को समझाते थे कि हमने पानी को रोका नहीं है, चलना सिखाया है। पहले तो पानी हमारी मिट्टी को काटते हुए बह जाता था, तब ऊपर सूखा आता था और नीचे बाढ़ आ जाती थी। इसलिए हमने जो काम किया है, उससे पानी रेंगता हुआ, धरती के नीचे चला जाता है। यह हर जगह आपसी संवाद, सीख सीखने – सिखाने वाला और सम्मान से जानने वाला अवसर था।
सैरनी-पार्बती नदी पुनर्जीवन घोषणा पत्र
1| सैरनी’-पार्बती पुनर्जीवन प्रक्रिया से भारत और दुनिया सीख लेकर बाढ़-सुखाड मुक्ति की युक्ति खोज सकती है।
2| चम्बल क्षेत्र की सैरनी-पार्बती दोनों नदियों में जैसे ही पानी आया तो यहाँ का समाज हिंसक जीवन को अहिंसक बनाने का समय सिद्ध सामाजिक परिवर्तन का प्रयोग क्षेत्र बन गया।
3| सैरनी-पार्बती नदी के संरक्षित वन क्षेत्रों में जो खनन के कारण बर्बादी हुई थी और धरती पर खनन ने जो घाव पैदा किए थे, वो घाव अब भरने लगे है। हरियाली लौट आयी है।
4| यह पूरा पहाड़ी पथरीला क्षेत्र और केवल 4 प्रतिशत भूमि खेती के योग्य ही सम्भव थी। अब यह उत्पादक हो रही है।
5| सैरनी-पार्बती नदी क्षेत्र में पशु पालन में भैंसों की संख्या १०० गुना ज़्यादा बढ़ गई। बाजरे का उत्पादन ९० गुना अधिक बढ़ गया। पहले गेहूं नहीं होता था, अब गेहूं पर्याप्त मात्रा में होने लगा है। सरसों और चना का नया उत्पादन भी बढ़ गया है।
ख़रीफ़ की फसल में मोटा अनाज बाजरा, मक्का और रबी में जौं की पैदावार पर्याप्त मात्रा में तेज़ी से बढ़ रही है। अब पानी के प्यार और विश्वास ने लोगों को अपना काम स्वयं करने का आभास करा दिया है।
6| लोगों के मन में अब डरने और डराने का भाव खत्म हो गया है। लोग डरने और डराने से मुक्ति पा चुके है। उन्हें आभास हो गया कि, बंदूक़ छोड़कर खेतों का काम करना ज़्यादा सुखद, सुरक्षित, स्वस्थ और शांतिमय आनंद का रास्ता है।
7| इस राष्ट्रीय नदी पुनर्जीवन सम्मेलन के निष्कर्ष – नदियों का पुनर्जीवन करना और जल संरक्षण करना। सैरनी और पार्बती के लोगों ने उत्साह से बताया कि, जैसे हमारे जीवन में सुख शांति और समृद्धि आयी है।
8| बंदूक़ छोड़कर खेती करने वाले सभी लोगों ने कहा कि, अब हम भविष्य में शांति और शुभ का काम सबके लिए करेंग़े।
9| सम्मेलन के सभी सहभागियों ने अंत में ये निष्कर्ष और घोषणा करी कि, उन्होंने जो सैरनी ओर पार्बती के बारे में जो सीखा है, वह सब जगह जाकर बताएँगे।
10| जिस तरह चंबल घाटी की नादियाँ पुनर्जीवित हुई है, उसी तरह हमें भारत की सभी नदियों को पुनर्जीवित करने का अभियान चलाना चाहिए। यह अभियान विश्व को बाढ़, सुखाड से मुक्ति की युक्ति सीखा सकता है। यह अभियान मनरेगा जैसे कामों से हो सकता है।
11| शुद्ध सदानीरा होकर बहने वाली नदी सैरनी और पार्बती दुनिया को बाढ़-सुखाड से मुक्ति की युक्ति सीखा रही है। इसलिए विश्व जन आयोग को इस प्रयोग को पूरी दुनिया को को दिखाने की कोशिश करनी चाहिए। यह हिंसक अर्थव्यवस्था को अहिंसक अर्थव्यवस्था बनाने का सबसे अच्छा रास्ता है।
12| संयुक्त राष्ट्र संघ के दूसरे जल सम्मेलन में वर्ष 2024 को जल शांति वर्ष घोषित किया है। सैरनी-पार्बती नदी पुनर्जीवन का यह काम विश्व जल शांति के लिए मार्गदर्शक है।
13| सैरनी-पार्बती पुनर्जीवन संवाद के विमर्श और निष्कर्ष में यह भी तय हुआ कि, सैरनी नदी पर एक मासिक पुस्तक तैयार होनी चाहिए।
महाराजपुरा के बांध को देखकर करौली के सुपरिटेंडेंट इंजीनियर ने कहा कि इंजीनियरों में चर्चा थी कि अब आंगई बांध में पानी कम क्यों आता है। आज पता चला कि तरुण भारत संघ ने आंगई बांध का पानी रोक लिया है। तुरंत ही महाराजपुरा के कुंवरराज ने कहा कि पानी को रोका नहीं है, चलना सिखाया है। धरती के पेट में भरने के लिए रेंगना सिखाया है। गाँव के लोगों के काम से धरती का पेट भरा है। धरती के पेट भरने से, अपने आप छोटे-छोटे झरने बड़ी संख्या में बहने लगे हैं। आज भी गर्मी के दिनों में अपने आप झरने निकलकर, पानी की जल धारा को सहेज रहे हैं। इससे उनकी सैरनी नदी शुद्ध-सदानीरा होकर बह रही है। वे तो एक तिहाई से भी कम पानी उपयोग करते हैं।
महाराजपुरा के बांध को बनाते समय मैंने स्थानीय ग्रामीणों को कहा था कि गाँव के लोग एक तिहाई पानी का उपयोग करेंगे, इसलिए एक तिहाई पैसा वे देंगे । दो तिहाई पानी सैरनी नदी में सदा बहेगा। इस पानी के लिए दो तिहाई लागत तरुण भारत संघ देगा। यह बांध अब दो तिहाई से ज्यादा पानी नीचे भेज देता है। गाँव वाले तो एक तिहाई पानी ही उपयोग करते हैं। दो तिहाई पानी तो धीरे-धीरे सैरनी नदी में बहता रहता है। यह बात महाराजपुरा के ग्रामीणों ने भारत सरकार के नदी संरक्षण निदेशालय के महानिदेशक अशोक कुमार और करौली जिले के सुपरिटेंडेंट इंजीनियर को समझायी। इस बात में छुपे विज्ञान को इंजीनियर और महानिदेशक को समझकर, कुंवरराज के सिर पर साफा बांधकर बधाई दी। आगे कहा कि यह जल संरक्षण का काम बहुत अच्छा हुआ है। जो काम सरकार को करना चाहिए, वह लोग मिलकर कर रहे हैं। इससे पहले जो लोग बेपानी होकर बंदूक उठाते थे, वह अब पानीदार बनकर खेती करने लगे और बंदूके छोड़ दी है। यह बड़ा क्रांतिकारी काम है।
मध्यप्रदेश के सिंगरौली जिले से आए इंजीनियरों ने कहा कि अपने क्षेत्र में इसी प्रकार का काम करेंगे। लेकिन जैसे तरुण भारत संघ के साथ समाज तैयार हुआ है,वैसा उनके साथ नही होता है।
इस प्रकार सरकारी लोगों ने पहली बार सैरनी नदी और पार्बती नदी को पुनर्जीवित होते हुए देखकर, इस काम से सीख लेकर, अपना प्रत्यक्ष मंतव्य बताया। यह पहला अवसर था, जब अनपढ़ गांव वाले धरती के पेट की इंजीनियरिंग, इंजीनियर को पढ़ा रहे थे।
पार्बती और सैरनी नदी अतीत में सदानीरा नदी थी। ये दोनों ही जंगलों से निकलती थीं। आस-पास गहरे जंगल थे। विकास के नाम पर इन जंगलों में खनन शुरू हुआ। पहले कुएँ सूखे, फिर ट्यूबवेल और 2010 आते-आते बोरवेल भी निष्क्रिय होने लगे। दोनों सदानीरा नदियाँ 1980, वर्षा में बहने वाली बरसाती नदी बन गई। सैरनी नदी बाँसवारी संरक्षित जंगल से निकल कर बहती थी। इस जंगली क्षेत्र में भयानक खनन शुरू हुआ था। 90 के दशक में विकास के नाम पर खनन, जंगल कटान, बाजारू खेती ने इसे सूखाकर व बाढ़ लाकर, विनाश कर दिया था, जिसके कारण सैरनी और पार्बती सूखकर मर गई थीं। यह पूरा पहाड़ी पथरीला क्षेत्र और केवल 4 प्रतिशत भूमि खेती के योग्य ही सम्भव थी। वह भी बेपानी, वीरान, बाढ़ और सुखाड के कारण अनुत्पादक हो गयी थी।
1990 में ये खदानें तरुण भारत संघ के प्रयास से उच्चतम न्यायालय के आदेश पर कुछ बंद हुई़ और कुछ अवैधानिक चोरी से बंदूक के बल पर चलती रहीं।
सैरनी और पार्बती दोनों नदियाँ मिलकर कुल 841 वर्ग किलोमीटर का जलागम क्षेत्र बनाती हैं। इसमें तरुण भारत संघ द्वारा अभी तक कुल 160 जल संरचनाओं का निर्माण किया है। जलागम संरक्षण-संवर्धन क्षेत्र की दृष्टि से संख्या थोड़ी कम है। इसमें और ज्यादा काम करने की जरूरत है। मोटे तौर पर देखें तो सैरनी नदी में 11 जल धाराएँ (जलागम क्षेत्र) छोटी (500 हैक्टेयर से कम) और 7 बड़ी (500 हैक्टेयर से ज्यादा) हैं।
जब पानी का काम शुरु हुआ तो ग्रामीणों की बंदूकें पानी के काम में लगी और अवैधानिक खनन एवं चोरी, डकैती, फरारी से यह क्षेत्र मुक्त बनने लगा; जल खनन बंद हुआ। जल संरक्षण से भूजल बढ़कर, ऊपर आया, जिससे नदी में छोटी-छोटी जल धाराएँ पुनर्जीवित होकर नदी बहने लगी। सबसे पहले कुएँ में पानी आया, फिर ट्यूबवेल और बोरवेल भी पानीदार होने लगे। अब पार्बती और सैरनी नदी सदानीरा बहती हैं। यह 2019 से फिर से पूरे साल शुद्ध-सदानीरा बनकर बह रही है। तभी अभी तो मई-जून में भी नदी बह रही है।
गांव के श्रीभान मुझसे बोले कि भाई जी बस वह दिन तो बड़े खराब थे, जब पानी नहीं था। ना खाने को खाना था, ना भैंस-गाय को चारा और वीरबानियों के ऊपर कष्ट बहुत था। वीरबानी पानी लेकर आती थी और हम इधर-उधर घूमते रहते। अब हमें कहीं जाने की जरूरत नहीं है। हम सभी अपने बच्चों के साथ अमन चैन में रहते हैं। भगवान से प्रार्थना करते हैं, ऐसे अच्छे दिन भगवान सबको दे। बत्तू ने कहा कि, भाई जी अब तो हम सब एक हैं। ना हम में लूट है और ना ही हम में फूट है। अब हम फूट-लूट, लाचारी, बेकारी, बीमारी से मुक्त आनंद से अपने गांव में रहते हैं। कोरीपुरा के 24 साल के डालू ने कहा कि, अब हमें नौकरी ढूंढने की जरूरत नहीं है। हमारे गांव के लोग फसल काटने, बुवाई और अनाज निकालने के लिए तीन से चार लाख की रोजाना की मजदूरी बांटते हैं। एक दिन था जब हमें मजदूरी के लिए दूसरी जगह ढूंढनी पड़ती थी। अब वह दिन है कि, हम दूसरों को मजदूरी देने वाले बन गए है। यहाँ के लोग पानी आने से वापस अपनी ज़मीन पर आए, तो जहां भी उन्हें मिट्टी मिली, उन्होंने नए खेत बनाए और खेती करना आरम्भ कर दिया है। सैरनी-पार्बती नदी क्षेत्र में पशु पालन में भैंसों की संख्या 100 गुना ज़्यादा बढ़ गई। बाजरे का उत्पादन 90 गुना अधिक बढ़ गया। पहले गेहूं नहीं होता था, अब गेहूं पर्याप्त मात्रा में होने लगा है। सरसों और चना का नया उत्पादन भी बढ़ गया है। ख़रीफ़ की फसल में मोटा अनाज बाजरा, मक्का और रबी में जौं की पैदावार पर्याप्त मात्रा में तेज़ी से बढ़ रही है। इस क्षेत्र में चारा, ईंधन, जल की उपलब्धता ने स्वास्थ सम्वर्धन के प्रक्रिया को प्रकृति और मानव दोनों के स्वास्थ सुधार में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है।
इस सम्मेलन में यह बात सभी दलां ने ज़ोर-ज़ोर से उठायी कि अब पानी के प्यार और विश्वास ने लोगों को अपना काम स्वयं करने का आभास करा दिया है। अब लोगों को यह अहसास हो गया है कि अपना काम स्वयं करेंग़े तो स्वयं आनंद से जी सकेंगे।
सभी ने संकल्प लेते हुए कहा कि आज कोरीपुरा में जो आनंद है, वैसा आनंद सब जगह हो और हम सबको आनंद दिलाने का काम करें। इसलिए हमने जैसा कोरीपुरा को खुशहाल-पानीदार बनाया है, वैसा ही हम सारे लोग गांव की सारी वीरबानियों और युवा मिलकर दूसरों गांव को भी ऐसा बनाएंगे।
इस सम्मेलन के संवाद से सरकारी और असरकारी लोगों के बीच हुए संवाद के परिणाम बहुत अच्छे रहे। अंत में इस तीन की यात्रा के संवाद और विमर्श के निष्कर्ष को सैरनी-पार्बती नदी पुनर्जीवन घोषणा पत्र को सर्वसम्मति से स्वीकार कर पारित किया जिसमें कहा गया कि सैरनी’-पार्बती पुनर्जीवन प्रक्रिया से भारत और दुनिया सीख लेकर बाढ़-सुखाड़ मुक्ति की युक्ति खोज सकती है। इन नदियों में हुए जल, जंगल, ज़मीन संरक्षण के कार्यों से हरियाली, समृद्धी तथा प्रकृति और मानव दोनो के स्वास्थ में सुधार आया है। इससे जलवायु परिवर्तन अनुकूलन और उन्मूलन की प्रक्रिया आरंभ हुई है।
*लेखक जलपुरुष के नाम से विश्व विख्यात जल संरक्षक हैं।