– मनीश वर्मा ‘मनु’
सोनपुर: आज़ यहां बातें होंगी विश्व प्रसिद्ध हरिहर नाथ मंदिर की। बिहार की राजधानी पटना से सटे कोई पच्चीस किलोमीटर की दूरी पर, छपरा जिले के सोनपुर नगर पंचायत में, गंडक जिसे नारायणी भी कहा गया है क्योंकि नदी में जैसा कि लोगों ने बताया कि शालीग्राम बड़ी मात्रा में निकला करता था और जैसा कि हम सभी जानते हैं शालीग्राम जी भगवान् विष्णु के प्रतीक हैं और विष्णु को नारायण भी कहा गया है, के तट पर।
यायावरी भी न बड़ी ही अजीब है। कहां आपको चैन लेने देती है। आप हरवक्त किसी न किसी चीज़ की ख़ोज में रहते हैं। आपकी ख़ोज, आपकी तलाश एक न रूकने वाली अनवरत प्रक्रिया के रूप में तब्दील हो जाती है। यह सब कब कैसे और क्यों हो जाता है, पता ही नहीं चलता है। आपको इस बात का अहसास तब होता है जब आप सफ़र पर निकल चुके होते हैं। खैर! यात्री मन किसी के रोके कहां रूका है भला!
अचानक से हम निकल पड़े अपनी यात्रा पर। साथ में थे कोलकात्ता से आए हमारे अनुज और पटना से ही हमारे मित्र। जब गर्मी की भरी दुपहरिया में लोग बाग घरों में या जो जहां है अपने आप को बंद कर लेते हैं, हम सभी चल पड़े कुछ खोजने। देखिए , आज़ की हमारी ख़ोज कैसी रही।
मां गंगा के संगम पर स्थित शायद विश्व का इकलौता ऐसा मंदिर जहां हरि ( विष्णु ) और हर ( शिव ) एक ही जगह स्थापित हैं और दोनों की पूजा एक साथ ही होती है। बाबा हरिहर नाथ मंदिर के गर्भ गृह में आधे भाग में शिव यानी कि ‘हर’ और शेष भाग में विष्णु यानी ‘हरि’ स्थापित हैं ।
पौराणिक कथाओं और प्रचलित मान्यताओं के अनुसार ब्राह्माजी ने शैव और वैष्णव संप्रदाय जो सदा एक दूसरे से लड़ते रहते थे, उन्हें एक-दूसरे के नजदीक लाने के लिए यहां भगवान विष्णु की प्रतिमा और शिवलिंग की स्थापना की थी। लंबे संघर्ष के उपरांत गंगा और गंडक के इसी स्थल पर शैव और वैष्णव मतावलंबियों के बीच संघर्ष विराम हुआ था और उनके बीच सुलह स्थापित हुआ था।
एक और प्रचलित कथा के अनुसार श्री राम ने अपने गुरु विश्वामित्र के कहने पर जनकपुर जाने के दौरान यहां रुककर हरि (विष्णु) की प्रतिमा और हर (शैव) शिवलिंग की स्थापना की थी।
मंदिर में प्रवेश करते ही आप देखेंगे गर्भ गृह में पहले शिवलिंग है फिर बिल्कुल काले पत्थर से बनी भगवान् विष्णु की प्रतिमा है। पूछने पर वहां के पुजारी ने बताया और शिवलिंग को जब हमने स्पर्श किया तो एक चीज़ मैंने महसूस किया कि शिवलिंग के ऊपरी हिस्से में एक हल्की सी, लंबाई में एक गहराई है जो यह अहसास दिलाता है कि यह दो हिस्सों में है। पता नहीं सच क्या है। भ्रम है या कुछ और। पर, आस्था पर कोई सवाल नहीं। कोई तर्क नहीं।
इस क्षेत्र में वैष्णव और शैव दोनों ही संप्रदाय के लोग एक साथ कार्तिक पूर्णिमा को स्नान कर मंदिर में जलाभिषेक करते हैं। पुराने समय में देश के 4 धर्म महाक्षेत्रों में से यह एक प्रमुख महा क्षेत्र कहलाता था जो प्रयाग और गया से भी ज्यादा महत्वपूर्ण माना गया था।
गंगा और गंडक के तट पर ही कोनहारा घाट है जहां विश्व प्रसिद्ध गज और ग्राह की लड़ाई हुई थी। जब गज ने अपने प्राणों की रक्षा के लिए अपने भगवान को पुकारा तब अपने भक्त गज की रक्षा के लिए स्वयं भगवान विष्णु प्रकट होकर सुदर्शन चक्र चलाकर यहां ग्राह को मारा था, जिससे ग्राह को मुक्ति मिली थी। इसलिए इस स्थान को मोक्षदायिनी भी कहा जाता है।
यहां कार्तिक पूर्णिमा के दिन लोग इस संगम पर स्नान कर अपने मोक्ष की प्राप्ति के लिए प्रार्थना करते हैं।
गंगा नदी पश्चिम दिशा से बहती है और गंडक या नारायणी उत्तर दिशा से और दोनों ही नदियों का मिलन समकोण पर होता है। पांचवीं सदी के आसपास इसलिए इसे कोणधारा भी कहते थे जो कालांतर में बदलते हुए ‘कौन हारा’ (गज और ग्राह की लड़ाई में कौन हारा ) से ‘कोनहारा’ में तब्दील हो गया। समय के साथ ही साथ बहुत कुछ बदल जाता है। परिभाषाएं बदल जाती हैं। हर शब्द की व्याख्या अपने अपने हिसाब से लोग करते हैं। यहां तो कालांतर में थोड़ा नाम ही बदला है।
कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर विश्व प्रसिद्ध पशु मेला यहां लगता है जहां दूर दूर से लोग आते हैं पशुओं की खरीद बिक्री के लिए। पुराना समय क्या कहें कुछ समय पूर्व तक यहां लगने वाले थियेटर मेले की जान हुआ करते थे। अब समय के साथ ही साथ बहुत कुछ बदल सा गया है। पहले इसी थियेटर की पृष्ठभूमि पर बहुचर्चित फ़िल्म ‘तीसरी कसम‘ बनी थी और आज़ की पीढ़ी इनके बारे में जानती तक नहीं है।
मेले में शाम से दूर दराज के गांवों से लोगों का आना, एक अजीब ही माहौल हुआ करता था। बचपन में हमने भी बहुत सुन रखा था। नहीं जा पाने का अफसोस है आज़ भी। थियेटर का शुरू होना और देर रात तक नर्तकियों का नृत्य और गायन चलना, दूर दूर से लोगों का आना मेले में एक अजब ही समां बांध दिया करता था। दिन में पशु मेला और रात में थियेटर पुरा क्षेत्र मेले के दौरान गुलज़ार रहता था। मेला आज भी लगता है। थियेटर आज़ भी चलता है।पर, वैसी बात और रंगीनियां कहां जो हमने सुनी थी?
खैर! समय के साथ ही साथ बदलाव तो आता ही है।पुरानी चीजें बदलती हैं और नए जीवन का समावेश होता है।
अब हम चलते हैं नेपाली मंदिर की ओर। हम सभी हरिहरनाथ मंदिर से थोड़ी दूर आकर काली मंदिर घाट से एक छोटी सी नौका पर सवार चल पड़े उस पार नेपाली मंदिर की ओर। उत्साह में नाव पर बैठ तो गए। तैरना तो किसी को आता नहीं था। जब बीच धारा में पहुंचे तब हम सभी को अहसास हुआ , अति उत्साह में कुछ गलती हो गई है। वो नदी का चौड़ा पाट, आसपास दूर तक कोई दूसरा नहीं। धारा तेज़ थी और हमें धारा के विपरीत जाना था। मांझी भी कभी कभी हमारे मज़े ले रहा था। खैर! भगवान बहुत याद आ रहे थे।
हां नाव से यात्रा के दौरान मांझी से बातें करते हुए हमलोगों ने महसूस किया कि लोगों में राजनीतिक चेतना और जागरूकता बढ़ती जा रही है। मांझी का एक राजनीतिक प्रश्न के जवाब में यह कहना कि जो हमारे लिए सोचेगा हम वोट उन्हें ही करेंगे। हम यह सोचने पर मजबूर हो गए क्या यह जात पात, धर्म आदि बातों से परे नहीं है। वाकई हमारा समाज धीरे से ही सही, करवटें बदल रहा है। हम समझ नहीं पा रहे हैं।
हालांकि हरिहरनाथ मंदिर सोनपुर में स्थित है जबकि नेपाली मंदिर हाजीपुर जो विश्व का प्रथम प्रजातांत्रिक गणराज्य वैशाली का मुख्यालय है वहां है।
गंगा और गंडक के एक छोर पर जहां हरिहरनाथ मंदिर है वहीं दूसरी छोर पर नेपाली सेना के एक सेनापति श्री माथवर सिंह थापा द्वारा पैगोडा स्टाइल में अठारहवीं सदी में बनवाया गया शिव मंदिर जिसे लोग नेपाली मंदिर और नेपाली छावनी मंदिर भी कहते हैं ,अवस्थित है। मंदिर में स्थापित शिवलिंग साल्ट स्टोन का बना है। मंदिर का अधिकांश हिस्सा लकड़ियों से बना है। मंदिर में लकड़ियों पर जो कलाकृतियां उकेरी गई हैं वह आपको खजुराहो की याद दिलाती है। लकड़ियों पर गढ़े गए कामुकतापूर्ण चित्रों की वज़ह से इस मंदिर को लोग बिहार का खजुराहो भी कहते हैं। मंदिर कितना समृद्ध रहा होगा यह आपको वहां जाकर पता चलता है। लोगों का कहना है, जिस कलाकार ने लकड़ियों पर कलाकृतियां उकेरी थीं उसके हाथ काट लिए गए थे। वहां की एक कलाकृति में लकड़ियों पर कलाई के नीचे से हाथ की कलाकृति बनी हुई है। यह शायद उसी बात की ओर इशारा करता है।
खैर! अद्भुत कलाकृति। अविश्वसनीय। हमारी कल्पनाओं से परे। यकीन नहीं होता। हमारे बिहार में हमारे आसपास इस तरह की चीजें हैं और हमें मालूम तक नहीं। बस जरूरत है थोड़ा सरकारी संरक्षण और लोगों को अपने समृद्ध विरासत और इतिहास की जानकारी देने की।
नेपाली मंदिर से सटे हुए ही गज और ग्राह मंदिर है। हमारे शिल्पकार श्री विश्वकर्मा जी को समर्पित भी एक मंदिर है।
कोनहारा घाट पर एक लाईन से छोटे बड़े कई मंदिर हैं। एक ओर आस्था का सैलाब उमड़ा पड़ा है तो दूसरी ओर जिंदगी की अंतिम सच्चाई मृतकों का अंतिम संस्कार हो रहा होता है। जीवन का दर्शन तो यहीं है। बाकी तो बस !!!!!
Amazing
बहुत ही अच्छी जानकारी मिली और वो भी बहुत ही रोचक अंदाज में । आपको साधुवाद देना चाहूंगा ।
like living everything……..