बिहार के मुजफ्फरपुर की लीची के बारे में में मैंने बहुत सुना था लेकिन हाजीपुर के चिनिया केला के बारे में नहीं सुना था। साइकिल पर अपने भारत यात्रा के दौरान जैसे ही मैं पटना से निकल कर गंगा पर बने महात्मा गांधी सेतु पार कर धीरे धीरे आगे वैशाली जिला के हाजीपुर की तरफ़ बढ़ रहा था तो मेरे दाहिनी ओर बहुत अधिक मात्रा में गंगा के किनारे हरे भरे केले के बाग़ान दिखाई पड़ने लगे। लेकिन जब मैं बिहार में आया तो मैंने केले की विशेष प्रजाति जिसका नाम चिनिया और मालभोग के बारे सुना।
चिनिया केला की लंबाई अधिक से अधिक 4 से 5 इंच होती है जिसकी ख़ुशबू ऐसी कि पूरा कमरा महकने लगता है। अगर हम उसको फ्रिज में रख दें तो वह पूरा महकने लगे। तो मैंने बिहार के एक सामाजिक कार्यकर्ता श्री विनोद यादव से पूछा इसका नाम चिनिया ही क्यों रखा गया तो उन्होंने बोला खाओ और आपको पता लग जाएगा। तो मेरे लिए चिनिया केला एक दर्जन मंगवाया गया उसका स्वाद और मिठास बिलकुल ऐसा हल्का खट्टा चीनी जैसे था और उसके ऊपर का छिलका वह बिलकुल एकदम जैसे कागज का कोई पेज। इतना पतला देखने में एकदम सुन्दर छोटा छोटा खाने में इतना स्वादिष्ट की एक ही बार में कम से कम 1 या 2 दर्जन आराम से खा जाऊं ।
अगर बात करें तो जिस तरह लीची के बाद चिनिया केला को भी ज्योग्राफिकल इंडिकेशन्स (जी आई) टैग मिला हुआ है । बिहार के वैशाली, हाजीपुर, समस्तीपुर और मुज़फ़्फ़रपुर में यह उगाया जाता है इसको इसकी ख़ुशबू और साइज़ के कारण भी आसानी से पहचाना जा सकता है। खाने के अलावा इसका उपयोग आटा बनाने में चिप्स बनाने में किया जाता है।
बिहार में प्रमुखता से अल्पान ,चिनिया , मालभोग – इन तीन प्रजातियों का केला प्रमुखता से उगाया जाता है ।बिहार में उत्पादित केले की प्रमुख प्रजातियां हैं:
- चिनिया: इसका साइज थोड़ा छोटा होता है पर खाने में चीनी जैसा मीठा इसी गुण के कारण इस केले को चिनिया केला के नाम से लोग जानते है । परंतु इसकी सिचाई में अधिक खर्चे के कारण अब इसका स्थान “अलपान” ने ले लिया है।।
- अलपान: वर्तमान में ये केला हाजीपुर में सवार्धिक उपजाया जाता है।इस केले में विशेष प्रकार के सुगंध पाया जाता है इस कारण लोग ज्यादा आकर्षित होते है।कम सिंचाई में भी अच्छी ऊपज होती है।
इसकी दो प्रजातियां हैं। एक देशी और दूसरा हाइब्रिड। देशी के पौधा की लंबाई हाइब्रिड की अपेक्षा कम होती है।हाइब्रिड पौधा की लंबाई अधिक होती है और घौद भी लम्बा होता है। - मालभोग:- इस केले में काफी खर्च है।इसके पौधे में ही मीठापन होने के कारण तैयार होने से पहले ही कीड़े लगने की काफी सम्भावना रहती है इस कारण इसकी देखभाल काफी करनी पड़ती है। ये सभी अन्य केलों से महंगा होता है।
- मुठिया :- ये ऐसा प्रजाति है जो सब्जियों के रूप में भी उपयोग किया जाता है। इसे उपजाने में बहुत ही कम खर्च लगता है।इसमें कीड़े न के बराबर लगते है। इसकी मार्केटिंग स्थानीय स्तर पर ही अधिक होता है क्योंकि बाहर से डिमांड कम रहता है।
इसके अलावा “कंथाली” और “बरहरी” प्रजाति के केले भी यहां उगाये जाते हैं।
सब्जी प्रजाति के केले:-
- भोष: ये सब्जी के लिए सर्वोत्तम प्रजाति का केला होता है। इसके एक घौद में 5-6 हत्था ही होता है और ,इसका फल बड़ा और एक समान होता है।सब्जी के रूप में बिकनेवाला सबसे महंगा केला है।।
- बत्तीसा: ये भी सब्जी के लिए उत्तम प्रजाति का केला है। इसका घौद बड़ा होता है पर आधे घौद के नीचे के भाग में छोटा और पतला फल लगता है।सब्जी के रूप में इसका भी डिमांड काफी होता है। इसकी खेती में खर्च कम लगता है।।
- मुठिया: ये ऐसा प्रजाति है जो पका के खाने और सब्जी में भी काम आता है।
बिहार भारत में केले के पैदावार में 8वें स्थान पर आता है । पर चिनिया केला की बहुत अधिका माँग रहती है क्योंकि इसमें एनर्जी, प्रोटीन, फाइबर ,कैल्शियम, आयरन, पोटैशियम और विटामिन बी 6 , पाया जाता है प्रचुर मात्रा में होते हैं। इन्हीं सब गुण के कारण देश विदेश में इनकी बहुत अधिक माँग है। चिनिया 16 से 17 महीने में तैयार हो जाता है।
देखा जाये तो केले की भारत में लगभग 70 प्रजातियां हैं। केला उत्पादन में आन्ध्रप्रदेश पहले नंबर पर, महाराष्ट्र दुसरे और गुजरात तीसरे नंबर पर है । बिहार में तो हाजीपुर के अतिरिक्त भागलपुर,कटिहार,पूर्णिया आदि जिलों में भी केला की खेती होती है।।
अपनी यात्रा के दौरान जब मैंने दक्षिण तथा नार्थ ईस्ट भारत में इसका उपयोग देखा तब मुझे पता चला कि केले के कितने प्रकार के उपयोग हैं । केले के पेड़ का उपयोग पर्यावरण संरक्षण, प्लास्टिक से मुक्ति, और धर्म के काम में जैसे पूजा पाठ में किया जाता रहा है ।
केरला में एक शादी में मुझे सब केले के पत्ते पर खाते दिखाई दिए जिसे देखकर मुझे बहुत ख़ुशी हुई कि पर्यावरण संरक्षण का इससे बढ़िया उदाहरण सामूहिक रूप से वैवाहिक कार्यक्रम में देखने को नहीं मिल सकता है।
केले का उपयोग चिप्स, सब्ज़ी, शेक, पकोड़े आदि के रूप में भी होता है। पूर्वांचल में तो शादी विवाह या किसी भी शुभ काम में केले की मीठी चटनी का लोग तो खाने में बहुत बेसब्री से इंतज़ार करते हैं। केले के फूल का उपयोग सब्ज़ी बनाने में किया जाता है।
केले के तने का भी काफी तरीके से उपयोग होता है। इससे प्राकृतिक रेशे ही बनाये जाते है जिनका इस्तेमाल कपड़ा बनाने में , चटाई , कालीन, दरी , साड़ी, गिफ्ट बैग, टोकरी आदि बनाने में किया जा रह है। इसके रेशे से बने हुए कपड़े की बहुत अधिक माँग है ।
मैं सरकार और समाज में बैठे सभी जिम्मेदार लोगों से कहना चाहूँगा की ऐसे पेड़ो के बारे में किसान साथियों को गाँव गाँव जा के और बताये जिससे हमारा पर्यावरण बचे और रोज़गार भी मिल सके। मैंने भी साइकिल पर अपने भारत यात्रा में इनके के बारे में गाँव गाँव जा कर बताया है ।
केला का पौधा किसी भी महीने में लगाये जा सकते हैं परंतु वर्षा ऋतु को छोड़कर अन्य महीनों में सिंचाई पर विशेष ध्यान पड़ता है। वर्षा ऋतु के प्रारम्भ में लगाने पर सिंचाई पर शून्य ध्यान देना पड़ता है और पौधा का विकास स्वतः हो जाता है।
*पर्यावरण यात्री जो पर्यावरण के प्रति चेतना जगाने के लिए 2021 से देश भर में साइकिल से यात्रा कर रहे हैं।