कुछ ऐसे पेड़ पौधे जिनके बारे में लिखना मुझे आवश्यक लगता है, उन्हीं में से एक पेड़ है महुआ जो मेरे जैसे ग्रामीण परिवेश के युवा के साथ जुड़ा रहा है। महुआ पेड़ चालीस हाथ ऊँचा होता है। और यह सब प्रकार की भूमि में उगता है। इसके फल, फूल, बीज, कच्चा बीज, पत्ती सभी का उपयोग किया जाता है इसलिए ग्रामीण परिवेश में इसका बहुत महत्व है।
बात करे तो फागुन चैत में इसकी पत्तियाँ झड़ जाती हैं । पत्तियाँ झड़ने के बाद इसकी डालियों के सिरों पर कलियाँ निकालने लगती है। जिसको गाँव में कूचीयाना बोलते है। कहानी यही से शुरू होती है कुचियाने के बाद महुआ के पेड़ की नीचे साफ़ सफ़ाई शुरू होती है। और गाँव में परिवार में पारी लगती है की आज मेरा नंबर रहेगा कल तुम्हारा रहेगा इन्हें बिनने के लिए और यह फूल लगभग 20 से 25 दिनों तक टपकता रहता है।
महुआ के फूल का उपयोग पशु, चिड़िया, मानव बड़े चाव से करते हैं । इसका उपयोग हरा या सूखा दोनों तरह से किया जाता है । यह चीनी की तरह मीठा होता है जिसको गाँव में हरे महुआ को कुचलकर रस निकालकर पूरी बनाई जाती है जो बहुत स्वादिष्ट होती है इसकी पूरी को पुआ, ठेकवा, आदि बनाया जाता है। मुझे याद है आज से लगभग १० वर्ष पूर्व मेरी दादी महुआ की लपसी बनाया करती थी अक्सर उस समय व्रत में गाँव में महिलायें खाया करती थीं । इनका गुलगुला भी बनाया जाता है जिसे पकौड़ी भी कहते हैं।
अगर सूखे महुए की बात करूँ तो उसमें तिल कूट कर डालकर उपयोग किया जाता है जिस ग्रामीण लाटा बोलते है और इसे गाय भैंस को भी खिलाया जाता है जिससे उनके दूध देने की क्षमता में वृद्धि होती है।
महुआ में प्रोटीन, कैल्शियम, फॉस्फोरस भरपूर मात्रा में होता है। महुआ के पत्ते का उपयोग दोना और पत्तल बनाने में किया जाता है । आयुर्वेद में इसका उपयोगी गठिया बवासीर की दवा के रूप में किया जाता है।
हरे कोये का उपयोग सब्ज़ी बनाने में किया जाता है जिसमें विटामिन सी पाया जाता है जो की इम्युनिटी बढ़ाने में कारक है।
महुए के के बीज के तेल का भी काफी उपयोग किया जाता है। इसका उपयोग औषधीय में कफ़ पित के लिए किया जाता है । महुआ के बीज का उपयोग हेल्दी फ़ैट बनाने में किया जाता है।
महुआ के एक पेड़ से लगभग २० से २०० किलो तक बीज का उत्पादन होता है। औद्योगिक छेत्र में इसका उपयोग साबुन बनाने में किया जाता है ।अगर बात करें तो आदिवासी क्षेत्रों में महुए का उपयोग प्रमुखता से देसी शराब बनाने में किया जाता रहा है । इसका उपयोग मैंने छत्तीसगढ़ में ‘स्वयं सहायता समूह’ द्वारा कोविड काल में हैंड सैनिटाइज़र बनाने में भी देखा। इसकी मांग बहुत अधिक थी कि वे इसे पूरा नहीं कर पाये पर इससे उनकी आमदनी में अच्छा ख़ासा वृद्धि हुई।
हम अगर बात करें तो महुआ बिनने की होड़ गाँव में बच्चों में बहुत हुआ करती थी। इसे सुखा कर बेच कर सभी बच्चे अपने जेब खर्च कि व्यवस्था करते थे। उसके बाद इसके कोया को सुखा कर बेच कर इसका उपयोग किताब ख़रीदने में हम लोग किया करते थे।
मुझे लगा कि मुझे महुआ के बारे में अपने युवा साथियों को बताना चाहिए की ग्रामीण परिवेश में आज भी आर्थिक स्वाद का आधार प्राकृत है जिसमें प्रमुख पेड़ महुआ है। गुलगुला, और देसी शराब के अलावा महुआ की रोटी का उपयोग प्रोटीन के तौर पर किया जाता है और महुआ के लाटा का उपयोग माउथ फ़्रेश्नर की तरह होता है। महुआ की लकड़ी को हवन पूजन और इसके पत्ते का उपयोग शुभ कार्यों में किया जाता रहा है। गाँवों में तो इनकी उपयोगिता के बारे में पता है पर आज शहरों में भी इसका मूल्यांकन करना चाहिए की एक पेड़ की क़ीमत और उसका उपयोग क्या क्या हो सकता है। पेड़ लोगों के लिए कितना उपयोगी है यह हम सभी को सोचना चाहिए।
*पर्यावरण यात्री जो पर्यावरण के प्रति चेतना के लिए 2021 से देश भर में साइकिल से यात्रा कर रहे हैं।