
खेलें खेल फुटबॉल का तो गाँव बनेंगे स्वच्छ!
मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड इलाके के छतरपुर जिले की ग्राम कीरतपुरा की कक्षा 7 में पढ़ने वाली छात्रा कुमारी रामकुमारी कुशवाहा के घर में शौचालय नही था। घर के सभी लोग बाहर शौच करने के लिए जाते थे यह सब देखकर छात्रा रामकुमारी कुशवाहा ने एक दिन अपने पिता से शौचालय बनवाने के लिए कहा लेकिन उसके माता पिता शौचालय बनवाने के लिए मना कर दिया जिससे वह उदास हो गई। अगले दिन फिर वही बात उसने कहा लेकिन फिर भी माता पिता नही मानें तो रामकुमारी ने खाना खाना बन्द कर दिया। जब माता पिता ने पूछा कि तुम ने खाना क्यों नहीं खाया है तो उसने बताया कि जब तक अपने घर पर शौचालय का निर्माण नही किया जाता है तब तक हम ऐसे ही भूखे रहेंगे। पिता राममिलन कुशवाहा ने कहा कि वे कर्ज लेकर शौचालय तो बनवा लेंगे लेकिन पानी कहा से लायेंगे? क्योंकि शौचालय के लिए पानी ज्यादा मात्रा में चाहिए। तो रामकुमारी ने कहा की पानी को हम लायेंगे आप तो शौचालय बनवाएं।
“फिर कुछ दिनों बाद मेरे घर शौचालय का निर्माण हो गया और अब परिवार के सभी लोग शौच करने के लिए शौचालय में जाने लगे हैं और साथ मे सभी साबुन से अच्छी तरह से अपने हाथों को साफ करने लगे है,” रामकुमारी ने बताया।
यदि यह कहें कि रामकुमारी का अपने घर में यह परिवर्तन करने के पीछे फुटबॉल के एक खेल का हाथ था तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
बुंदेलखंड में शौच के बाद मिट्टी से हाथ साफ करना आज भी एक परम्परा बनी हुई है जिससे निपटने के लिए बड़ी चुनौती है। लेकिन फुटबॉल4 वाश नाम के इस प्रोजेक्ट के तहत स्कूली बच्चों ने खेल खेल में सीखा कि खुले में शौच नही करना है और शौचालय का उपयोग करना है तथा शौच के बाद साबुन से हाथ साफ करना है। खाना खाने से पहले भी अपने हाथों को अच्छी तरह से हाथ साफ करना है। इसके अलावा पानी की बचत करना साफ पानी पीना है।

“इस प्रोग्राम के अंतर्गत फुटबॉल के द्वारा बच्चों को पानी का बचाव, सुरक्षित पीने के पानी का उपयोग, शौचालय का सही उपयोग, साबुन से हाथ धोना, साफ- सफाई, बीमारियों से बचने के तरीके इत्यादि के बारे में सिखाया जाता है क्योंकि इन अत्यंत जरुरी व्यवहार परिवर्तन की जानकारी खेल-खेल में दी जाती है इसलिए बच्चे मजे-मजे में इन्हें सीख जाते हैं,” परमार्थ समाज सेवी संस्थान के कार्यकर्ता गौरव पांडे ने बताया। फरवरी 2022 में विवा कॉन अगुआ और वेल्थहंगरहिल्फे, गैर सरकारी संस्थान ने इस पहल को मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड इलाके के तीन जिलों छतरपुर, निवाड़ी एवं पन्ना के ग्रामीण इलाकों के सरकारी स्कूलों के बच्चों में “यूनिवर्सल लैंग्वेज फॉर बिहेवियर चेंज” के एक अभिनव प्रयास के तहत शुरू किया था और परमार्थ एवं समर्थन- सेंटर फॉर डेवलपमेंट द्वारा ही भारत में पहली बार ‘फुटबॉल4 वाश’ कार्यक्रम का आयोजन किया गया था। इस प्रयास का उद्देश्य समुदाय में सुरक्षित जल, स्वच्छता और स्वास्थ्य प्रथाओं को बढ़ावा देना था। इसके तहत खेल, कला, संगीत और नृत्य जैसी आनंदपूर्ण गतिविधियों का उपयोग किया गया ताकि लोगों को जागरूक किया जा सके।
“यह पहल न केवल बच्चों को स्वच्छता के महत्व से अवगत कराती है, बल्कि पूरे गांव को स्वच्छ बनाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है,” गौरव ने कहा।

फुटबॉल4 वाश ग्रामीण बच्चों और उनके अभिभावकों का जीवन तेजी से बदल रहा है। इस प्रोजेक्ट में फुटबॉल को माध्यम बना कर खेल खिलाये जाते हैं और भारत में पहली बार खेल-खेल में बच्चों में व्यवहार परिवर्तन का प्रयास किया जा रहा है। विगत दो वर्षो में 16 विद्यालयों में करीब 500 छात्र- छात्राओं को फुटबॉल4 वाश का प्रशिक्षण दिया गया है।
“फुटबॉल के माध्यम से उनके व्यवहार परिवर्तन का प्रयास काफी सफल हो रहा है। इस दौरान फुटबॉल के तरह-तरह के खेलों के माध्यम से बच्चे स्वच्छता के प्रति जागरूक हुए हैं,” स्थानीय स्वतंत्र पत्रकार लोकेन्द्र सिंह बुन्देला ने ग्लोबल बिहारी से बातचित के दौरान बताया।
दरअसल फुटबॉल4 वाश के खेलों में भाग लेने के बाद ही रामकुमारी कुशवाहा ने खेल खेल में सीखा कि खुले में शौच नही करना है। उसने सीखा कि शौचालय का हमारे जीवन में बड़ा महत्वपूर्ण स्थान है और अपने घर में भी एक शौचालय बनवाने की ज़िद की, जिसके आगे उसके माता पिता को झुकना ही पड़ा।
एक अभिभावक संतोष राय के अनुसार जबसे फुटबॉल4 वाश के खेल स्कूलों में खिलाए जाने लगे हैं तब से उनके बच्चों के रहन सहन में परिवर्तन आया है। “मेरा लड़का सत्यम राय और मेरे परिवार का लड़का राजा राय दोनों का रिश्ता चाचा-भतीजा का है। ये बच्चे बहुत ही लड़ाकू थे और दोनों आपस लड़ते ही रहते थे और पढ़ाई में भी कमजोर थे। दोनों एक ही कक्षा में पढ़ते हैं और अब दोनों एक साथ फुटबॉल4 वाश के तहत खेलों को खेलने लगे हैं। पहले तो वे खेलते समय भी लड़ने लगते थे, फिर सत्यम राय और राजा राय में कुछ समय बाद बदलाव देखा गया। अब तो दोनों बच्चे एक साथ रहते हैं, मन लगाकर पढ़ाई करते हैं और अब एक दूसरे को पढ़ाई में सहयोग भी करते हैं। और घर में साफ सफाई हमारे बच्चे स्वयं करते हैं और हम लोगो को भी सफाई के बारे में विस्तार से बताते हैं,” संतोष ने कहा।
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परन्तु ग्रामीण समाज में एकदम से यह बदलाव लाना सहज नहीं था। बुंदेला बताते हैं कि जब बच्चो ने खेलों के ज़रिये जब स्वच्छता की अहमियत के बारे में जान और अपने परिवार एवं पड़ोसी को इसके बारे में बताया तो उन लोगों ने बच्चों की बातों को एक बार मे स्वीकार नहीं किया।
“जब परिवारजनों से बच्चों ने बार रोका टोका इसके बाद धीरे धीरे करके घरों में साबुन आना शुरू हुआ फिर इसके बाद शौचालय का इस्तेमाल करने में बढ़ोत्तरी की गई जिससे बच्चो सहित ग्रामीणों में भी व्यवहार परिवर्तन हुआ,” उन्होंने कहा।
इस प्रोजेक्ट की वजह से स्कूली बच्चों में परिवर्तन देखा गया है जैसे कि पहले बच्चे अपनी कक्षा में यहाँ वहाँ पर कचरा डाल देते थे। अब यही बच्चे इतने समझदार हो गए हैं कि कच्चा काम फैला रहे और जो भी कचरा निकलता है उसे डस्टबिन में डाल रहे हैं ।
“बच्चों के बोल बाल में बदलाव आया है। इसके अलावा अपनी अपनी कक्षा को बच्चे स्वयं श्रमदान करके साफ सुथरी रखते हैं और बच्चे स्वयं विभिन्न प्रकार की पेंटिंग वॉल पेंटिंग आर्ट एंड क्राफ्ट की अलग अलग प्रकार की कलाकृतियां बनाने लगे हैं जिससे उन बच्चों में और उनके परिवार जनों में खुशियों का माहौल हमेशा बना रहता है,” कीरतपुरा गाँव के सरकारी विद्यालय के एक शिक्षक ने बताया। यहां के ग्रामीणों के अनुसार जब से यहां पर फुटबॉल फॉर वाश कार्यक्रम का आयोजन किया गया है तब से उनके घरों में खुशियां ही खुशियां आई हैं क्योंकि बच्चों सहित गांव के अंदर फुटबॉल4 वाश की टीम द्वारा विभिन्न जागरूकता कार्यक्रम किए जाते हैं जिसको देखकर इस गाँव के लोगों ने अपने जीवन मे बदलाव किया है और अब घरों में बीमारिया कम आने लगी हैं। “बीमारियों में खर्च होने वाला रुपया अब हमारे पास बचत के रूप में रहता है जिससे हम सब ग्रामीण फुटबॉल फॉर वाश का धन्यवाद देते हैं,” संतोष राय ने कहा।
तो क्या हैं ये फुटबॉल के खेल जो बुंदेलखंड के ग्रामीण समाज में स्वच्छता के प्रति चेतना जगा रहे हैं? मज़ेदार बात है कि इन खेलों में हार जीत नही होती है, इसमें केवल खेल के माध्यम से सभी बच्चो को जागरूक किया जाता है।
एक स्कूल में 30 बच्चों की टीम बनाई जाती है। कक्षा 6,7,8 से दस दस बच्चे रहते हैं जिनमें 15 लड़के 15 लड़कियां होती हैं। पहले वार्मअप खेल खिलाये जाते हैं जिनका उद्देश्य मनोरंजन के अलावा बच्चों के शरीर मे फुर्ती और गर्मी लाना होता है, फिर इसके बाद वे खेल खेल खिलाए जाते हैं जो उन्हें स्वच्छता के प्रति जागरूक करते हैं। इन खेलों के नाम कुछ इस प्रकार होते हैं – जल ही जीवन है; पानी के स्त्रोतों की रक्षा कैसे करें; हमारे समदुाय को सुरक्षित रखना; खतरनाक आदतें; कीटाणुओं का हमला इत्यादि।
ये खेल मज़ेदार तो होते ही हैं, साथ ही इनको खेलने के दौरान, बच्चों को स्वच्छता, स्वास्थ्य और पर्यावरण से जुड़े महत्वपूर्ण संदेश दिए जाते हैं। कोचों द्वारा नियमित रूप से किए जा रहे इन सत्रों ने बच्चों को स्वच्छता के प्रति संवेदनशील किया है। इन बच्चों ने जो कुछ सीखा, उसे न केवल अपने जीवन में अपनाया, बल्कि अपने गांव के वातावरण में सुधार लाने के लिए भी उन्होंने कदम बढ़ाए हैं।
तो कैसे खेले जाते हैं ये खेल?
इन्हें खेलना बेहद आसान है। ये वही खेल हैं जो सभी ने बचपन में खेला होगा। बस सिर्फ सन्दर्भ बदल गया है। जैसे कि उदाहरण के तौर पर ‘जल ही जीवन है’। इस खेल में दो टीमें हैं जो कैच-कैच खेल रही हैं। तभी कुछ खिलाड़ी जैकेट पहन कर आते हैं। वे दरअसल कीटाणु हैं। जिनके हाथ में फुटबॉल नहीं है ये कीटाणु उनको छूकर आउट कर देते हैं और वो खेल से बाहर निकल जाते हैं। जिन खिलाड़िओं के पास फुटबॉल है उनको दूसरों से बॉल शेयर करना है ताकि वो आउट होने से बच सकें। खेल के बाद कोच बच्चों को बताते हैं कि दरअसल फुटबॉल शुद्ध पानी था जो लोगों को सुरक्षित रखता है। जिनके हाथ में फुटबॉल रुपी शुद्ध पानी था वे सुरक्षित थे और जिनके पास नहीं था वे आउट हो गए क्योंकि अशुद्ध पानी पीने से हानि ही होती है। गन्दा पानी पीने से दस्त, पेट दर्द, बुखार, टायफाइड, जॉजन्डस, डायररया, हैज़ा जैसी खतरनाक बीमारियां होती हैं। उससे हम कमजोर हो जाते हैं, पैसे भी बहुत खर्च होता है, स्कूल और नौकरी में नुकसान होता है। लोग मर भी सकते हैं। इसीलिए हमें हमेशा शुद्ध पानी ही पीना चाहिए और अगर हमारे पास शुद्ध पानी है तो दूसरों से शेयर करना चाहिए।
इसी प्रकार ‘पानी के स्त्रोतों की रक्षा कैसे करें’ खेल में खिलाड़ी दो घेरा बनाते हैं कोन्स के साथ। बाहर के बड़े घेरे में 10 खिलाड़ी फुटबॉल के साथ खड़े होते हैं और अदंर बीच में एक कोन्स के एक छोटे से घेरे में, जहां 5 खिलाड़ी खड़े होंगे, बाहर के घेरे के खिलाड़ी नीचे से फुटबॉल को किक करके बीच वाले घेरे के अदंर डालने की कोशिश करते हैं। बीच वाले खिलाड़ियों को बॉल को अंदर आने से रोकना होता है। खेल के बाद कोच समझाते हैं कि बाहर वाले खिलाड़ी गांव के लोग हैं, बॉल कचरा है, बीच में पानी का स्रोत जैसे की कुआं, नदी, नहर इत्यादी है। अदंर के खिलाड़ी गांव के वह लोग हैं जो पानी के स्त्रोत को गन्दा होने से बचाने की कोशिश कर रहे हैं।
ऐसे करीब 15 खेल हैं जो फुटबॉल द्वारा खेले जाते हैं और बच्चों को जल, स्वच्छता और स्वास्थ्य के बारे में जागरूक करने के लिए एक मनोरंजक तरीका प्रदान करते हैं।
“इस पहल के दौरान बच्चों ने न केवल स्वच्छता के प्रति जागरूकता बढ़ाई हैं, बल्कि उन्होंने अपने परिवार और गांव के अन्य लोगों को भी इस दिशा में प्रेरित किया है। इसका परिणाम यह हुआ कि गांव में शौचालयों का उपयोग बढ़ा है और कई गांवों में खुले में शौच की समस्या पूरी तरह से समाप्त हो चुकी है। इस बदलाव ने यह सिद्ध किया कि जब बच्चों को सही दिशा में सशक्त किया जाता है, तो वे न केवल अपने जीवन में बदलाव लाते हैं, बल्कि अपने आसपास के समाज को भी सकारात्मक बदलाव की ओर प्रेरित करते हैं,” बुंदेला ने कहा।
परमार्थ के गौरव पांडे ने कहा यह बदलाव केवल बच्चों की मेहनत का परिणाम नहीं है, बल्कि पूरे गांव के सामूहिक प्रयासों का भी फल है। स्थानीय समुदाय ने इस अभियान में सक्रिय भागीदारी की, और प्रशासन के साथ मिलकर इस बदलाव को साकार किया।
इन प्रयासों ने न केवल बच्चों और समुदाय के अन्य सदस्यों को जागरूक किया, बल्कि उन्हें अपने मुद्दों पर पंचायत, स्कूल प्रशासन और अन्य सरकारी संस्थाओं से संवाद करने का साहस भी दिया। इसके अलावा, इन स्कूलों में शौचालय, हाथ धोने के स्टेशन और जल टैंक स्थापित करने के लिए स्कूल प्रशासन के साथ समझौते किए गए।
साथ ही इस पहल ने “पानी मानव अधिकार है” के सिद्धांत को भी बढ़ावा दिया है और यह सिद्ध किया कि अगर समुदाय को सही तरीके से सशक्त किया जाए, तो वे अपनी समस्याओं को पहचान सकते हैं और उनका समाधान सरकारी योजनाओं और संसाधनों के माध्यम से पा सकते हैं। इस प्रक्रिया ने सरकार और पंचायत स्तर पर अधिक बातचीत और सहयोग को बढ़ावा दिया, जिससे जल, स्वच्छता और स्वास्थ्य से संबंधित मुद्दों पर काम करने में मदद मिली और पंचायत और स्कूल प्रशासन ने इन सुविधाओं की देखभाल और रखरखाव की जिम्मेदारी ली।
इस तरह से फुटबॉल4 वाश के जरिये ग्रामीण बच्चे खेलों के माध्यम से जागरूक हो अपने अपने माता पिता को भी जागरूक कर रहे हैं।
– ग्लोबल बिहारी ब्यूरो
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