रविवारीय
– अंशुल पंच्करण
अगर हम बात करें मराठा साम्राज्य की तो हमारे ध्यान में छत्रपति शिवाजी महाराज का ही नाम आएगा| किन्तु छत्रपति शिवाजी महाराज की मृत्यु के बाद मराठा साम्राज्य के दुसरे छत्रपति, शिवाजी महाराज के प्रथम पुत्र सम्भाजी राजे भोसले या शम्भू राजे भी आये थे, जिन्होंने शिवाजी महाराज के स्वराज के सपने को साकार करने का भरपूर प्रयास किया था| कहते हैं कि सम्भाजी ने अपने जीवन काल में 120 से ज्यादा लड़ाइयां मुगलों के साथ लड़ीं थी और एक भी लड़ाई नहीं हारी थी|
सम्भाजी का जन्म मई 14, 1657 को पुरन्दर के किले में हुआ| वह मात्र २ वर्ष के थे जब उनकी माता जी का निधन हो गया| उनकी देख रेख उनकी दादी जीजाबाई ने की| शस्त्र के साथ कैसे शास्त्र भी जरूरी हैं यह उन्हें उनकी दादी जी ने बचपन में ही सिखा दिया था| दादी जीजाबाई संभाजी जी को महाभारत, रामायण काव्यों के बारे में बताती कि कैसे बुराई पर हमेशा अच्छाई की जीत होती रही|
सम्भाजी जब 9 वर्ष के थे तब औरंगजेब ने उनके पिता छत्रपति शिवाजी महाराज को झूठी मित्रता के जाल में फंसा कर उन्हें और सम्भाजी को आगरा की जेल में बंदी बना लिया| कोई और 9 वर्ष का बालक होता तो शायद डर जाता किन्तु सम्भाजी ने डरने की बजाए अपने पिता जी का साथ दिया और औरंगजेब के लाखों सैनिक होने के बावज़ूद उनकी कैद से निकल कर वह बाहर आये । 10 साल के हुए तो उन्होंने उस समय ही साथ के राजाओं को जोड़ना शुरू कर दिया| वह मात्र 23 साल के थे जब उनके पिता जी की मृत्यु हो गयी और उनके पिता कोई मामूली पिता नही थे| कहते हैं, एक महान राजा की मृत्यु के बाद उसका साम्राज्य भी बिखर जाता है किन्तु सम्भाजी ने अपने पिता छत्रपति शिवाजी के साम्राज्य को बिखरने नहीं दिया| उन्होंने छत्रपति शिवाजी महाराज के स्वराज के सपने को जिंदा रखने का प्रयास किया |
मात्र 20,000 की सेना के साथ सम्भाजी महाराज ने 8 लाख मुगलों को हराया वो भी एक बार नहीं बार बार| जब औरंगजेब ने सम्भाजी को हराने के लिए पुर्तगाली नौसेना की मदद लेनी चाही तो सम्भाजी महाराज ने उन्हें भी हरा दिया| सम्भाजी महाराज संस्कृत के साथ 13 और भाषाएं बोलना जानते थे| यह कहना बिलकुल गलत नही होगा की अगर स्वराज को छत्रपति शिवाजी महाराज से जोड़ा जाता है तो उनकी मृत्यु के बाद स्वराज को जिसने ज़िंदा रखा वे सम्भाजी महाराज ही थे| मुगलों की नाक में दम करते हुए सम्भाजी महाराज के नेतृत्व में एक बार फिर मराठा साम्राज्य का विस्तार होने लगा| बुंदेलखंड, राजस्थान, पंजाब आदि जगहों में मुगलों का परचम हट कर भारतीय परचम लहराने लगा| एक बार फिर भारतीय साम्राज्य का विस्तार होने लगा|
किन्तु फिर अपनों ने ही छत्रपति सम्भाजी महाराज को धोखा दिया | गणोजी शिरके सम्भाजी महाराज जी की पत्नी येसूबाई के भाई थे| गणोजी द्वारा सम्भाजी से वतन्दारी मांगी गयी जिसके लिए सम्भाजी महाराज द्वारा मना कर दिया गया क्यूंकि यह बात छत्रपति शिवाजी महाराज के स्वराज की नीति के विरुद्ध थी| गणोजी शिर्के को यह बात बिलकुल पसंद नही आई और इसका बदला लेने हेतु एक दिन जब सम्भाजी महाराज किसी गुप्त रास्ते से जा रहे थे तो गिणोजी शिर्के ने यह सुचना औरंगजेब तक पहुंचा दी और सम्भाजी महाराज पकड़े गये| सम्भाजी महाराज को शारीरिक व मानसिक रूप से प्रताड़ना दी गयी और औरंगजेब द्वारा तीन शर्तें सम्भाजी महाराज के समक्ष रखी गयी |पहली शर्त थी कि सम्भाजी मराठों की सारी संपत्ति मुगलों को दे दें , दूसरी शर्त थी कि वह औरंगजेब को बादशाह मान लें, और तीसरी शर्त थी कि सम्भाजी अपना धर्म परिवर्तन कर लें | अगर सम्भाजी यह शर्तें मानते तो औरंगजेब द्वारा उनकी जान बक्श दी जाती |किन्तु हमारे द्वितीय छत्रपति को इन तीनों शर्तों में कुछ मंजूर नही था | उन्होंने सब शर्तों को मानने से इंकार कर दिया |
औरंगजेब को यह बात बिलकुल पसंद नही आई | उसने लगातार 40 दिन तक सम्भाजी महाराज पर शाररिक व मानसिक अत्याचार किये| एक एक कर उनके शरीर के अंगो को काटा जाने लगा| गर्म सल्लियाँ उनकी आँखों में डाल दिया गया, जिससे वो अंधे हो गये और लगातार 40 दिनों तक उनके साथ ऐसे अत्याचार होते रहे| रोज उनसे पूछा जाता की क्या यह तीनों शर्तें तुम्हे मंजूर है तो सम्भाजी महाराज मना कर देते कि मुझे कुछ मंजूर नहीं| ठीक 40 दिन से शारीरिक व मानसिक यातनाएं सहते हुए 41वें दिन उनकी मृत्यु हो गयी| मृत्यू के बाद भी उन्हें भारतीय परम्पराओं अनुसार अंतिम संस्कार नही मिला | उनके शरीर के छोटे छोटे टुकड़े कर उन्हें नदी में बहा दिया गया | अगर सम्भाजी महाराज चाहते तो औरंगजेब की तीनों शर्ते मान कर अपना जीवन आराम से जीते | किन्तु द्वितीय छत्रपति को अपने जीवन से ज्यादा मातृभूमि से प्रेम था, अपने धर्म से प्रेम था इसलिए उन्होंने औरंगजेब की शर्तों को न मान कर मृत्यु को गले लगाना ठीक समझा|
लेकिन आज के समय में बहुत कम लोग हैं जो छत्रपति सम्भाजी महाराज के इस बलिदान के बारे में जानते हैं | इतनी यातनाओं को सहकर भी छत्रपति सम्भाजी ने मुगलों के सामने अपने घुटने नही टेके| वह अपनी अंतिम सांस तक लड़ते रहे|