– रमेश चंद शर्मा एवं ज्ञानेंद्र रावत
सात फरवरी को राष्ट्रीय युवा योजना के संस्थापक, विश्व में शांति और सद्भाव कायम करने की दिशा में अपना पूरा जीवन खपाने वाले भाई जी के नाम से विख्यात स्वर्गीय डा एस एन सुब्बाराव का 95वां जन्म दिन उल्लास, उमंग और सद्भाव के वातावरण में सद्भावना दिवस के रूप में धूमधाम से मनाया गया।
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के बल्लभगढ़ स्थित बालाजी कालेज के डॉ एस एन सुब्बाराव सभागार में आयोजित समारोह में जिसकी अध्यक्षता भाई जी के सहयोगी डा सुरेंद्र नाथ दुबे ने की में ग्वालियर अंचल में बंजारा समुदाय के बच्चों में शिक्षा की अलख जगाने वाली प्राध्यापिका रामसेवी चौहान को व टीकमगढ़ अंचल में शिक्षा के प्रसार -प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निबाहने वाले शिक्षक रामगोपाल रायकवार को बालाजी महाविद्यालय की ओर से डॉ एस एन सुब्बाराव स्मृति सम्मान से सम्मानित किया गया। सम्मान स्वरूप दोनों को 11,000 रुपये की राशि, एक स्मृति चिन्ह, शाल व सम्मान पत्र भेंट किया गया।
डॉ एस एन सुब्बाराव का जीवन एक नदी की तरह रहा जो सदैव सक्रिय रहती है। चाहे पहाड़ हो या धरातल, ऊंचाई हो या ढलान, गांव हो या शहर, बस्ती हो या जंगल, देश हो या विदेश, बंगलौर, दिल्ली हो या चंबल, सुनसान हो या बीहड़ वही स्वभाव, निडरता, पहनावा, सक्रियता, शांति, सौह्रार्द साझापन, सदभावना, श्रमदान, सर्व धर्म प्रार्थना, गीत, खेल भारत से लेकर अमेरिका तक।
हर आयु वर्ग, स्थान से भाईजी संपर्क, संवाद साधने की विशेष क्षमता रखते थे, चाहे गांव की सभा हो या संयुक्त राष्ट्र संघ। एक तरफ बच्चों के लिए जेब से गुब्बारा निकलता, किशोर, युवा जवान, अधेड़ आयु के लिए गीत, खेल, श्रम, संदेश। जिसके लिए जो सार्थक, उपयोगी उसकी समझ, क्षमता के अनुसार उसके सामने रखना। संवाद, संपर्क में इतनी व्यापकता की आज भी बड़ी संख्या में लोगों के पास भाईजी का लिखा हुआ निवास, शिविर, सभा, सम्मेलन, प्लेटफार्म, रेल, प्रवास से लिखा हुआ पत्र, अन्तर्देशीय पत्र, पोस्ट कार्ड आसानी से मिल जाएगा। आजकल फोन करके हालचाल पूछते, बात करते।
जवानी में आह्वान पर अपना बंगलौर का घर छोड़कर दिल्ली आए मगर देश दुनिया में इतने घर बन गए कि आज सब की गिनती करना कठिन है। डॉ एस एन सुब्बाराव अपने आप में किसी समूह, संगठन से ज्यादा प्रभावी, व्यापक रहे। उन्होंने राष्ट्रीय युवा योजना नामक संगठन बनाया। भाईजी के स्वभाव के कारण यह संगठन कम परिवार के रूप में ज्यादा विकसित हुआ। इसकी यह बड़ी विशेषता है। ना सदस्यता रजिस्टर, ना सदस्यता शुल्क, ना विशेष बंधन, शर्तें एक व्यापक सोच समझ विचार लिए परिवार की तरह सबके लिए खुले दरवाजे। सबका स्वागत, सब अपने कोई पराया नहीं। लोग जुड़ते गए और कारवां बनता गया।
बाल मेले, बाल महोत्सव के माध्यम से बालपन से ही बच्चों को शांति, एकसाथ रहने, रचना, निर्माण, सदभावना के लिए संस्कारित करना। कहानी किस्से, गीत, नाटक, भाषण, अंताक्षरी, खेल, चित्रकला, पेपर कार्य, मिट्टी कार्य, भिन्न-भिन्न भाषा सीखना जैसे विभिन्न कलाकारी के अवसर प्रदान करना। अलग-अलग घरों में रहना। विविधता में एकता का संदेश। भाईजी स्वयं अनेक भाषा समझते बोलते, जानते थे।
किसी भी समाज, देश में बदलाव की असली ताकत युवा पीढ़ी होती है। भाईजी ने युवाओं को दिशा देने, उनकी दशा सुधारने के लिए सतत प्रयास किए। युवाओं को रचना, निर्माण से जोड़ा।
त्याग और प्रेम के पथ पर चलकर मूल ना कोई हारा,
हिम्मत से पतवार संभालो फिर क्या दूर किनारा।
नौजवान आओ रे, नौजवान गाओ रे,
लो कदम मिलाओ रे, लो कदम बढ़ाओ रे।
जय जगत पुकारे जा, सर अमन पर वारे जा,
सबके हित के वास्ते, अपना सुख बिसारे जा।
बागी पुनर्वास एक बड़ा महत्वपूर्ण कार्य रहा। बागी परिवारों से संबंध उनकी देखभाल। खुली जेल में बागियों से मिलना, उनकी समस्याओं का समाधान करना, करवाना कोई आसान काम नहीं रहा। विभिन्न विभागों से संबंधित कार्य को साधना।
भारत की संतान गीत के माध्यम से जिसमें विभिन्न भाषा सुनने का अवसर मिलता, एकता, मिलकर रहने, अनेकता में एकता का संदेश प्रसारित होता। देश में कहीं भी हिंसा, मारपीट, दंगा फिसाद हुआ, भाईजी के आह्वान पर, उनके नेतृत्व में सैकड़ों युवा, साथी शांति, सदभावना के लिए पहुंच जाते। कश्मीर से कन्याकुमारी, अरुणाचल से द्वारका अर्थात पूर्व से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण। इसमें अण्डमान निकोबार, लक्षद्वीप जैसे स्थान भी शामिल है।
शब्द, बोल, विचार, सर्व धर्म प्रार्थना, गीत संगीत, अच्छे कर्म, साधना, मौन,श्रम कभी मरते नहीं हैं। कभी विविध कारण से धूंधले या मंद पड़ सकते है मगर जिंदा रहते है। समय के साथ वे फलते फूलते रहते है। लोगों की वाणी में, कंठो में, विचारों में, यादों में, इतिहास में, दिलों में, दिमाग में आते रहते है, गूंजते हैं, उभरते हैं, फलते फूलते, फूटते हैं झरने की तरह।
सहज सरल सुलभ सादा साझा जीवन- भाईजी के पास यह सब बहुत सहजता, सरलता, स्पष्टता के साथ उनका अंग बन गया। सोते-जागते, आते-जाते, उठते-बैठते, चलते-फिरते, खाते-पीते, सोचते-विचारते, कथनी-करनी में यह साफ झलकता रहता, स्वच्छ हवा, पानी की तरह सबको सहज उपलब्ध। एक चुंबकीय क्षेत्र बनाता था जिसका आकर्षण अपनी ओर खींचता है। जिन खोजा तिन पाईंया।
ऐसे व्यक्ति का पंचतत्व का भौतिक शरीर जाता है। उसका विचार, चिंतन, मनन, संस्कार, काम अनेक लोगों में रम, बस जाता है जो आगे चलता रहता है। अब भी भाईजी ऐसे जिंदा है, जिंदा रहेंगे। भाईजी के विचार आज भी जिंदा है, आगे भी रहेंगे। भाईजी का नारा, एकजुटता, भाईचारा।
बालाजी कालेज के समारोह में मुख्य अतिथि राष्ट्रीय युवा योजना के प्रमुख गुरुदेव सिंह सिद्धू ने कहा कि आज सबसे बड़ी जरूरत समाज में एकता की भावना, समरसता, सांप्रदायिक सद्भाव, नशा मुक्त भारत के निर्माण और हिंसा के वातावरण के खात्मे की है। इसके लिए हमें एकजुट रहना बेहद जरूरी है। इस हेतु भाई जी ने अपना पूरा जीवन खपा दिया। हमें यदि भाई जी के सपनों को साकार करना है तो आपसी मतभेदों को तिलांजलि देनी होगी और एक नये भारत के निर्माण का संकल्प लेना होगा।
समारोह के प्रारंभ में बालाजी शिक्षण संस्थान के प्रमुख डा० जगदीश चौधरी ने भाई जी के जीवन वृत्त पर विस्तार से प्रकाश डाला और उनके कालेज में विभिन्न अवसरों पर आने के कारणों की जानकारी दी। उन्होंने कहा कि आज बालाजी शिक्षण संस्थान भाई जी की स्मृति में शिक्षा के प्रचार -प्रसार में अपना अमूल्य योगदान देने वाली दो प्रतिभाओं को डा० एस०एन० सुब्बाराव स्मृति सम्मान से सम्मानित कर रहा है। यह सिलसिला अब प्रतिवर्ष जारी रहेगा। आने वाले वर्ष से भाई जी की जयंती पर पांच अन्य विधाओं में भी यह सम्मान प्रदान किये जायेंगे।