मीरा, दिल्ली में रहने वाली मासूम गुड़िया (असली नाम नहीं) की कहानी सुनकर दो दिनों से खुद गुम है और सोच रही है कि कोई व्यक्ति, मामू बनकर उस नाबालिग के साथ कैसे लगातार अमानवीय कृत्य करता रहा? चर्च में हुई दो परिवारों की दोस्ती ने किस तरह से एक बालिका को शारीरिक और मनोवैज्ञानिक रूप से बीमार बना दिया?
मीरा के पास शब्द कम पड़ रहे हैं। यह घोर निंदनीय है। यह अपराध तो है ही किंतु उससे बढ़-चढ़ कर घिनौना पाप भी है। मीरा अक्सर ही लड़कियों की चिंता करती रहती है। जिस सामाजिक संस्था से वह जुड़ी है, वहाँ पर इसी प्रकार के केसों से रोज ही दो-चार होना पड़ता है। किंतु दिल्ली सरकार के बाल एवं महिला विभाग में कार्यरत यह उप निदेशक प्रेमोदय खाखा महीनों तक अपने दोस्त की अनाथ एक 14 वर्षीय नाबालिग बालिका को लूटते खसोटता रहा। इस नाबालिग लड़की के पिता की मृत्यु अक्टूबर 2020 में हो गई थी। मीरा सोच रही थी कि यह पुरूष इतना खूखांर क्यों हो गया? क्या उसने जीवन में स्त्री को माँ-बहन और मित्र के रूप को नहीं देखा? निर्भया के साथ जो दरिंदगी हुई, वह मात्र कुछ घंटों की थी किंतु 14 वर्ष की बालिका को लगातार बार-बार इस संताप से गुजरना पड़ा।
यह घटना चिंता करने के साथ-साथ करूण विलाप करने की भी है। क्योंकि इस घटना में एक और अन्य स्त्री जो अपराधी की पत्नी है, उसकी भूमिका भी न केवल शर्मसार करने वाली है अपितु समस्त नारी जाति पर कलंक है। उसके घर में बार-बार यह घटना होती रही और वह मूक दर्शक बनी देखती रही। जब उसने यह बात आरोपी की पत्नी को बताई तो महिला ने उसे धमकाया और यहाँ तक कि बालिका के गर्भवती हो जाने के बाद उसने उसको गोलियाँ खिलाकर उसका गर्भपात भी करा दिया। इसके चलते लड़की तनाव और दबाव में रही।
यहाँ पर उनके दोनों बच्चों पर भी सवाल उठते हैं। जिनको घर और स्कूल में किसी अन्य बच्चे के साथ होने वाले व्यवहार को नहीं सिखाया गया है। अभी दोनों पति-पत्नी पुलिस की हिरासत में हैं। यह बहुत ही गंभीर विषय है क्योंकि इसने सभी रिश्तेदार, दोस्तों और जान-पहचान वालों की भूमिका पर सवालिया निशान लगा दिया है। वैसे ही देश में विश्वास की कमी बढ़ती जा रही है और सच कहूँ तो इस अविश्वास ने ही अवसाद, एनजाइटी और अकेलेपन को जन्म दिया है। यह घटना, एक मात्र घटना न होकर समाज में आपसी विश्वास, रिश्तों की अहमियत और परिपक्वता को कहीं न कहीं खोखला करने का कार्य करती है।
इस घटना का प्रभाव बहुत व्यापक है। एक बिना पिता की बच्ची को एक परिवार अपने घर में प्यार, उचित संरक्षण और देखभाल के लिए लाता है और फिर यही परिवार उस बच्ची के यौन शोषण के लिए उत्तरदायी बन जाता है। यह बीच का अंतर कलेजे को चीरने वाला होता है। व्याकुलता से पीड़ित इस बालिका के दिल की धड़कन अप्रत्याशित रूप से बढ़ जाना और आत्महत्या के लिए अग्रसर होना, इस तथ्य का पुख्ता सबूत है कि उसको बार-बार प्रताड़ित किया गया। जब हम अपने घरों में आराम से सो रहे थे तब हमारी ही एक बेटी यौन पीड़ा की शिकार हो रही थी।
मनोवैज्ञानिक सिग्मंड फ्रायड ने कहा था कि बचपन में पड़े प्रभाव बालिका को जीवन पर्यन्त स्मृति में रहते हैं और उसके आगे के जीवन और व्यक्तित्व पर गहरी छाप छोड़ते हैं। मेरा सभी माताओं-बहनों से अनुरोध है कि अपने पुत्रों, भाइयों और पिताओं की गलतियों पर पर्दा डालना छोड़ दें। जब किसी भी बालिका या महिला के मान-सम्मान का प्रश्न आता है तो आप उस लड़की का साथ दो। इस समस्या का अन्यथा कोई निदान नहीं है।
सख्त कानूनी सजा आवश्यक हैं, लेकिन डर और भय से संस्कारों को आरोपित नहीं किया जा सकता। यह प्राकृतिक रूप से पहले घर में, फिर पड़ोस और स्कूल में अपने आप बालक में समाहित होते हैं। मीरा, मणिपुर, राजस्थान और दिल्ली सभी जगह हो रहीं हिंसक यौन अपराधों से आहत है। किंतु जिस प्रकार से दिल्ली की गुड़िया अपने मामू और उसकी पत्नी द्वारा यौन हिंसा का शिकार हुई है, उसने 21वीं शताब्दी में सभी मानवीय रिश्तों पर सवालिया निशान खड़े कर दिए हैं और इसकी भरपाई आसान नहीं है
*डॉ. शोभा विजेंदर दिल्ली स्थित एनजीओ, संपूर्णा की संस्थापिका और अध्यक्षा हैं, जिसकी स्थापना 1993 में हुई थी।
यह लेख पढ़कर ही आत्मा कांप गई तो।वो बच्ची जिस पीड़ा से गुजरी है उसका तो अंदाज़ा भी नही लगाया जा सकता।ऐसे दोषियों को तत्काल प्रभाव से फाँसी होनी चाहिए।