शर्म अल-शेख: आज कॉप-27, इजिप्ट में विश्व बैंक के पैनल में अनुभव को बांटने का अवसर मिला।वहां मैंने कहा कि विश्व बैंक को नदियों के पुनर्जीवन के लिए सामुदायिक संगठनों के साथ काम करना चाहिए। विश्व बैंक भी यदि सामुदायिक समझ को सम्मान देकर आगे आएगा, तो समाज भी आगे बढ़ेगा।इसी से बाढ़- सुखाड़ मुक्ति का रास्ता भी खुलेगा। इससे जिस उद्देश्य हेतु कॉप बना था, वह उद्देश्य भी पूरा होगा । इस कॉप की उद्देश्य पूर्ति सिर्फ सामुदायिक ज्ञान तंत्र से ही संभव है। हमें समाज के मूल ज्ञान को इस कार्य में लगाना होगा । इससे जल सुरक्षा भी मिल सकेगी।
मुझे प्रसन्नता हुई कि अंत में विश्व बैंक के निर्देशक ने कहा कि राजेंद्र सिंह द्वारा कही गई बात से सहमत हूँ। हम इस दिशा में काम करेंगे।
अभी तक का मेरा अनुभव कहता है कि प्रकृति, पर्यावरण, जलवायु परिवर्तन के लिए जितना ज्यादा पैसा आता है, उतना ज्यादा बिगाड़ हुआ है। जल को हमें जल की तरह स्नेह करके ही बचाना होगा। यदि यह स्नेह नहीं रहेगा तो बाढ़ – सुखाड़ बढ़ेगा और दुनिया बेपानी होती जायेगी। इस दुनिया को पानीदार बनने और बाढ़ – सुखाड़ मुक्ति के लिए सिर्फ पैसे से काम करना संभव नहीं है, बल्कि यह काम सहकार से ही संभव है। इसके लिए समाज में संबंध और चेतना जरूरी है। इस तरह से विश्व बैंक को भी जल के संरक्षण – प्रबंधन का कार्य करना होगा।
इस कॉप-27 में पिछले दिनों संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव अंटोनिओ गूटेर्रेस ने सही कहा कि दुनिया नरक के रास्ते पर बहुत तेजी से जा रही है। वास्तव में नरक के रास्ते पर ले जाने वाले पहले उत्तर के देश थे, अभी दक्षिण में भी चीन जैसा देश दुनिया को नरक के रास्ते पर ले जा रहा है। पहले हम कहते थे कि उत्तर के देश पूरी दुनिया को नरक में लेकर तेजी से चल रहे हैं।
यह कॉप दुनिया को नरक के रास्ते पर जाने से रोकने के लिए बना था । जिसकी शुरुआत 50 साल पहले स्वीडन में हुई थी । लेकिन पिछले 50 सालों में जिस उद्देश्य के लिए यह बना था, उसने 10-15% से ज्यादा काम नहीं किया। इसलिए दुनिया नरक के रास्ते पर जा रही है।
कॉप-27 में 12 नवंबर 2022 को सांस्कृतिक कार्यक्रमों के दौरान सम्बोधन में मैंने कहा कि जो देश अपनी संस्कृति को बचा लेगा, वह देश अपनी समृद्धि का रास्ता भी स्वयं बना लेगा। संस्कृति में प्रकृति की समृद्धि का रास्ता छुपा है। क्योंकि प्रकृति के साथ मानवीय व्यवहार विद्या के द्वारा बदलना उतना सरल काम तो नहीं है, लेकिन हम कोशिश करें तो व्यवहार में बदलाव लाया जा सकता है। इस बदलाव से प्रकृति की समृद्धि सुनिश्चित होगी। इस हेतु एक मत होकर जुटना चाहिए।
कॉप की ताकत शोषण, प्रदूषण और अतिक्रमण करने वाले लोगों के हाथों में है। जो कॉप दुनिया को बीमारी से बचाने के लिए बना था, उसने बीमारी से बचाने वाला कोई भी काम नहीं किया। इसमें हर साल दुनिया भर के मुखिया शामिल होते हैं, लेकिन इस वक्त संयुक्त राष्ट्र की आवाज़ कोई नहीं सुन रहा। तो फिर यह इस सर्कस को क्यों चला रहा हैं? इस सर्कस को रोकने के लिए दुनिया भर के मूल ज्ञान पर विश्वास रखने वाले लोगों को संगठित होकर,अपना कॉप बनाना होगा। इस कॉप में सिर्फ दुनिया को बचाने वाले लोग ही होंगे। अभी तक केवल पश्चिम के देशों ने विनाश किया था ,अब यह विनाश दक्षिण में भी आरंभ हो गया है। यह रास्ता दुनिया को नरक की ओर ले जा रहा है।
कॉप में पहले कुछ अच्छे निर्णय हुए थे जैसे – कोयला के उत्सर्जन और उपयोग को बंद करना। अब इसका उपयोग कुछ देशों तेजी से कर रहे हैं। जब कोयले से बिजली बनेगी तो तापमान 2.5 डिग्री तक चला जायेगा। जबकि दुनिया 1.5 डिग्री तापमान तक जिंदा रह सकती है। यह बात दुनिया के सभी लोग जानते हैं। लेकिन इसके समाधान के दिशा में कोई काम नहीं कर रहा। लेकिन भारत के राजस्थान में स्थित तरुण भारत संघ एक छोटे से संगठन ने अपने मूल ज्ञान रखने वाले समुदायों के साथ मिलकर 10600 वर्ग किमी जमीन को जलवायु परिवर्तन अनुकूलन, उन्मूलन कर दिया है। ऐसे काम पूरी दुनिया में क्यों नहीं हो रहे? यह देखना चाहिए कि, यह संगठन आज भी उसी जगह पर 40 सालों से निरंतर कार्य कर रही है।
जैसे तरुण भारत संघ ने सामुदायिक विकेंद्रीत जल प्रबंधन, जल ही जलवायु है और जलवायु ही जल है, इस सिद्धांत को मानकर एक सफल समय सिद्ध अनुभव प्राप्त किया है, आगे दुनिया की सरकारों और संयुक्त राष्ट्र संघ को इससे सीख लेना चाहिए। इससे वैश्विक जलवायु परिवर्तन संकट का समाधान स्थानिय सामुदायिक विकेंद्रित प्राकृतिक संसाधनों से ही संभव है। इस बात को मान लेना चाहिए। यह बात जमीन पर प्रत्यक्ष रूप से सिद्ध हुई है। हमें लगता है कि कॉप के अंतिम दौर में यह आवाज आनी चाहिए कि कॉप में प्रकृति को बिगाड़ने वाले अपनी जिम्मेदारी को समझकर, प्रकृति के पोषण का काम करें। इसके अलावा जो बिगाड़ कर चुके है,उसकी क्षतिपूर्ति करना चाहिए। यह इनका दायित्व है। यदि यह काम दुनिया के लोग जोर देकर कराएंगे तो हिंसा होगी। हम अहिंसा वाले लोग हैं, इसलिए प्रार्थना में विश्वास रखते हुए, हम यह बात यहां रख रहे हैं। प्रकृति के शोषण की प्रक्रिया रुके और पोषण की प्रक्रिया चले यही हम सभी का लक्ष्य है।
हमें दुनिया में प्रकृति के पोषण करने व दुनिया को समृद्ध बनाने के लिए मूल ज्ञान को आगे बढ़ाना होगा। प्रकृति का पोषण करने वाले लोग संगठित होकर आगे आएं और एक नया कॉप चलाएं।
*लेखक स्टॉकहोल्म वाटर प्राइज से सम्मानित और जलपुरुष के नाम से प्रख्यात पर्यावरणविद हैं। प्रस्तुत लेख उनके निजी विचार हैं।