भारत के भूजल भंडार खाली होने से हमारी सारी छोटी नदियां सूख कर मर रही हैं इसलिए छोटी नदियों को पुनर्जीवित करना सबसे पहला काम होना चाहिए। वेदों के अनुसार 14.6 किलोमीटर लंबाई वाली जलधारा को नदी कहा जा सकता है। आधुनिक में नदी की परिभाषा, विन्यास और स्वरूप के नाप में परिवर्तन आया है। पर भारतीय शास्त्रों में जिसे नदी का सकते हैं वह 14.6 किलोमीटर लंबी होना जरूरी है। इतनी या उससे अधिक लंबाई वाली जलधारा को भी भारत में नदी कहा जा सकता था।
यूं तो भारत की नदियां की लंबाई 2800 किलोमीटर तक है, परंतु इस 2800 किलोमीटर लंबी नदी में सैकड़ों और हजारों छोटी नदियां बन जाती हैं। इन छोटी नदियों को जब तक हम शुद्ध सदानीरा बनाकर, पुनर्जीवित नहीं करेंगे, तब तक भारत को पानीदार बने रहने में शंका है। भारत को यदि पानीदार बनना है तो छोटी नदियों को शुद्ध सदानीरा बनाने के लिए धरती का पेट पानी से भरना होगा। जब हम धरती का पेट पानी से भरेंगे, तब हमारी नदियां शुद्ध सदानीरा होकर बहने लगेंगी ।
आज नदियों का सतही प्रवाह, अधो भूजल और भूजल प्रवाह के साथ गहरा योग रखता है। इस योग को देखना और समझना बहुत जरूरी है। तरुण भारत संघ ने सबसे पहले अरवरी को पुनर्जीवित करने का काम किया था। इस नदी को पुनर्जीवित करने में 12 साल लगे थे। लेकिन इस नदी की लंबाई भी 60 किलोमीटर है। इस 60 किलोमीटर लंबी नदी में बहुत सारी छोटी धारा है जो 14.6 किलोमीटर से ज्यादा लंबी है; उन्हें नदी बोला जा सकता है। पर वहां का समाज केवल इसकी जो मुख्य धारा को ही “अरवरी“ नदी बोलते हैं । तरुण भारत संघ ने यह तनिक भी प्रयास नहीं किया कि, उसकी अलग धाराओं को कुछ नए नाम देकर नदी बोलें। क्योंकि ज्ञान, लोक विज्ञान और लोक समझदारी में नाम के निर्धारण है, उन्हीं को मानना और उन्हीं के अनुरूप आगे चलकर, काम करना ही अच्छा होता है। इसलिए तरुण भारत संघ ने उन्हें प्राचीन लोगों के दिए हुए नाम का पालन किया, उन्हीं को अपनाया है।
इसी तरह यमुना में कई सहायक, उपसहायक अलग-अलग नदियों को नदी मानना जरूरी है। आजकल भारत सरकार और राज्य सरकारें नदियों के पुनर्जीवन के लिए बहुत बातें कर रही हैं । नदी पुनर्जीवन का भारत सरकार ने एक अलग से मंत्रालय भी बनाया, लेकिन नदियां तो मंत्रालय बनने के बाद भी तेजी से सूख ही रही है। नदियां गंदे नाले बन रहे हैं और बेपानी होकर मर रही हैं। यह नदियों का मरना यह बताता है कि, जब किसी देश की नदियां सूखने लगती है, तो वहां की सभ्यताएं भी सूखकर मर जाती है। भारत एक सांस्कृतिक समृद्ध सभ्यता का धनी है। इस भारतीय सभ्यता और सांस्कृतिक समृद्ध राष्ट्र की नदियां यदि सूख रही है , फिर हम कैसे कहें कि, हमारी सभ्यता और संस्कृति समृद्ध है? सभ्यता और संस्कृति को जन्म देने वाली नदियां सूख गई है। हमे अपनी सभ्यता और संस्कृति का संरक्षण करने के लिए, अपनी सभ्यताओं को नदियों के साथ जोड़कर देखने की जरूरत है।
नदियों के पुनर्जीवन और भूजल के पुनर्भरण इन दोनों का गहरा रिश्ता है। भारत सरकार को अटल भूजल योजना और नदी पुनर्जीवन इन सबको एक साथ जोड़कर, एक बड़े अभियान के तौर पर काम शुरू करना चाहिए। यदि सरकार की भूजलपुनर्भरण का काम तेज नहीं करेगी, तो भारत की छोटी नदियां सूखती ही जाएंगी। साल में कभी भी एक महीना या दो महीना वर्षा देरी से होगी तो सब बेपानी होने लगेंगे। इसलिए भूजल के भंडारों को भरना होगा।
भारत में जब तक जल का संरक्षण करके, भूजल पुनर्भरण नहीं होगा, तब तक भारत समझदार, इज्जतदार और पानीदार नहीं बन सकता। भारत को वर्षा जल की एक-एक बूंद का संग्रह करके, भूजल में सुरक्षित रखना होगा। ऐसे काल में उस वर्षा जल से पुनर्भरण होने वाले जल को हम संरक्षित और सुरक्षित करके, अनुशासित होकर उपयोग करने के काम में लगे। तब भारत की बेपानी धरती व नदियां पानीदार बन जाएगी। इस हेतु नदियों के पर छोटे-छोटे काम भी बहुत प्रभावित परिवर्तन कर सकते हैं। छोटी नदियों के जल ग्रहण क्षेत्र में जितने भी जलधाराएं हैं, उनको उद्गम से लेकर संगम तक रक्षण-संरक्षण किनारों पर रहने वाले समाज के द्वारा करना जरूरी है । उस जल संरक्षण से ही वहां का भूजल पुनर्भरण होगा। भूजल पुनर्भरण से सूखी छोटे-छोटे झरने व जलधाराएं फिर से बहने लगेंगी। इस समय हमें छोटी जलधाराओं को बहने योग्य शुद्ध सदानीरा होकर, धरती को हरा-भरा बनाकर, धरती पर रहने वाले लोगों को नदियों के साथ जुड़ना होगा।
भारत छोटी नदियों को पुनर्जीवित करेगा, तो भारत का समाज नदियों के साथ जुड़कर, नदियों को शुद्ध सदानीरा बनाने में जुट जाएगा। इसकी शुरुआत सरकारों को करनी होगी क्योंकि समाज जब भी कोई नदी पर काम करता है, तो सरकार उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई कर देती है। इसलिए लोग नदी पर काम करने से डरते हैं। सरकारी यदि आगे आकर इस तरह के काम करेगी तो मेरी समझ में एक सुखद बदलाव होगा। जैसे महाराष्ट्र में ‘‘जल साक्षरता और चला जानूया नदीला’’ कार्यक्रम आरंभ होने से प्रदेश के युवा नदियों के साथ जुड़ गए और युवा लोगों ने अपने नदियों को पुनर्जीवित करने के लिए नदियों के संकट समाधान करने में लगे है। इससे छोटी नदियों को पुनर्जीवित करने बड़ा सहयोग हो रहा है। जब समाज एक साथ मिलकर ऐसे कार्य करे तो नदियां भी पुनर्जीवित हो जाती है।
*जलपुरुष के नाम से विख्यात जल संरक्षक