कोटा: चंबल तेरा पानी लूटा,अब रेत के बाद मिट्टी भी लूटी!चंबल नदी राजस्थान और मध्य प्रदेश की जीवन रेखा है। यह नदी मध्य प्रदेश के महू जिले से विंध्याचल पर्वतमाला से एक धार के रूप में निकलती है, मध्य प्रदेश और राजस्थान में लगभग 970 किलोमीटर का सफर तय कर उत्तर प्रदेश के इटावा के पचनदा पर यमुना में मिल जाती है।
चंबल के किनारे ही कोटा की सभ्यता का विकास हुआ कोटा में औद्योगिक इकाइयां, बिजली परियोजनायें, बांधों से चम्बल का नहरी तंत्र का और उस पर आधारित कृषि अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार रही है। एक काली सिंध पार्वती परवन, एरु आदि कई छोटी बड़ी नदियां चंबल की सहायक रही हैं।
कभी चंबल के बीहड़ डाकूओं के कारण प्रसिद्ध थे। चंबल के किनारे पर कई आध्यात्मिक केंद्रों का भी विकास हुआ। केशव राय पाटन का प्रसिद्ध मंदिर, कोटा शहर का गोदावरी धाम, अधर शिला, मोजीबाबा की गुफा, कराई के बालाजी, चांदमारी बालाजी रंगपुर घाट आध्यात्मिक धार्मिक संस्कृति के वाहक रहे। आधुनिक समय में चंबल रिवर फ्रंट के कारण चर्चा में रही।
पर्यटन विकास के दावों के बावजूद चंबल को लूटने का सिलसिला भी नहीं थम रहा। रेत और मिट्टी के खनन के कारण कोटा की तथाकथित अनियोजित विकास परियोजनाओं को पंख लग गए। प्राचीन एवं आधुनिक सभ्यताओं के विकास के साथ ही चंबल को भयानक प्रदूषण की मार भी कोटा क्षेत्र में ही झेलनी पड़ रही है सैकड़ो गंदे नाले इस चंबल में मिलकर उसे प्रदूषित कर रहे हैं।
चंबल का बहुत बड़ा भाग राष्ट्रीय घड़ियाल अभ्यारण क्षेत्र में आता है उसके बावजूद भी कोटा क्षेत्र में घड़ियाल नदारद है मगरमच्छ भी अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहे हैं। करोड़ों रुपए का रिवर फ्रंट बनाने के बाद भी चंबल प्रदूषण से मुक्त नहीं हुई है। चंबल डाउनस्ट्रीम तो गंदा नाला बन चुकी है और मैला ढोने की रेलगाड़ी से उसकी तुलना की जा रही है। चंबल की अपस्ट्रीम में चार बांध बने होने के कारण अभी पीने का पानी और सिंचाई का जल मिल रहा है लेकिन आज सरिता में भी बड़ी संख्या में गंदे नाले मल मूत्र लेकर चंबल में मिल रहे हैं इसकी चिंता हमारी सरकारों को नहीं है।
प्रशासनिक लापरवाही के कारण चंबल रेत और मिट्टी की लूट का भी बड़ा केंद्र बन गया है। नदी के किनारों को समतल कर अनेक अवैध बस्तियां इसके किनारे खड़ी हो गई हैं उन सभी का मल मूत्र सीधे चंबल में ही जा रहा है।
दुर्भाग्य से चंबल को भी पानी के लिए कम और मिट्टी और रेती की लूट के लिए जाना जाता है। कहा गया है कि जो समाज अपनी नदी की सुरक्षा नहीं कर सकता और उसमें लगातार प्रदूषण करता जाता है वह कभी स्वस्थ भी नहीं रह सकता। जहां की नदी बीमार हो तो वहां का समाज तो बीमार होना ही है। ऐसी अवस्था में सभ्यताओं को नष्ट होने में देर नहीं लगती। सरस्वती नदी के लुप्त होने पर समूचा क्षेत्र रेगिस्तान में बदल गया, यह तथ्य किसी को भूलना नहीं चाहिए।
ऐसा भी नहीं है कि सरकारें कुछ नहीं करती, सरकारें बहुत कुछ करती है लेकिन सही ढंग से नहीं करती। करोड़ों का धन व्यय करने के बाद भी चंबल की समस्या जैसी तेरी क्यों है? उम्मीद है राजस्थान की नई सरकार इस ओर ध्यान देगी।
*वरिष्ठ पत्रकार एवं संयोजक चंबल संसद