चम्बल घाटी की सैरनी नदी ने बना दिया है दस्युओं को फिर से इंसान। पहले पानी के लिए लड़ते-मरते-मारते थे। अब तो सभी के लिए पर्याप्त पानी उपलब्ध हो गया है। पहले जो चंबल घाटी की सैरनी नदी जो सूख चुकी थी, वह अब शुद्ध सदानीरा हो कर बह रही है। इस मई के महीने में भी सैरनी नदी में पूर्णतः जल प्रवाह है।
जब यह सैरनी नदी सूखी तो यहां की सभ्यता भी सूख कर मर गई थी।तब हजारों लोग लाचार, बेकार, बीमार होकर, गांव छोड़कर चले गए थे। गाँवों में पानी न होने के कारण जवान लोग खेती नहीं कर सकते थे, तब ये बहुत से हिंसक कामों में जुटे थे, इनका काम डरना और डराना बन गया था।
अब ये सब लोग इस जल प्रवाह को देखकर, समझकर उपयोग दक्षता बढ़ाकर, जल के उपयोग से डरना व डराना छोड़कर, पानीदार ,इज्जतदार और जमींदार बन गए हैं। अभी सैरनी नदी के शुद्ध सदानीरा बहने से यहां की सभ्यता, संस्कृति, सदाचार और संस्कारों के गहरे सरोकारों के साथ पुनर्जीवित हुई है।
जल उपलब्ध होने की कहानी बहुत पुरानी है। बामनवास की डांग, रिवाली, नीमाज ये सभी गाँव वर्ष 1990 के दशक और 2000 वर्ष तक केलादेवी, सपोटरा, खिजूरा के आस-पास के सैंकडों गाँव और महेश्वरा नदी ये सभी काम कैलादेवी की ढांग के कामों की दास्तान है। 1988 में अरावली पर्वतों की बर्बादी रोकने का संघर्ष हमने सरिस्का बाघ परियोजना से आरंभ किया था। 7 मई 1992 को अरावली बचाओ कानून बनवाया। 1993-94 में अरवरी नदी पुनर्जीवित होकर बहना आरंभ हो गई थी। यह समय हमारी संस्था तरुण भारत संघ के कामों के विस्तार का समय बन गया था। इस काल में हमारे जल संरक्षण और नदी पुनर्जीवन के कामों की सुगंध चारों तरफ फैलने लगी थी। यही समय था, जब चंबल नदी के शेरों ने तरुण भारत संघ को अपने क्षेत्रों बुलाया था, और हमने इनके साथ मिलकर काम आरंभ किया। हम अपने कार्यकर्ताओं को लेकर सबसे पहले चौडकिया कैलादेवी, करौली पहुँचे थे। वर्ष 2001 में कैला देवी क्षेत्र में बहुत काम हुए, इसके बाद सैरनी नदी क्षेत्र के विविध गाँवों में हमारे साथी चमन सिंह ने काम शुरू कराया।
यहाँ के ज्यादातर लोग लाचार, बेकार और फरार होकर घूमते थे। भगवती का पति भी इसी तरह बाहर घूमता था। इस को पकड़ाने वाले को इनाम दो लाख घोषित था।चौडकिया कैलादेवी, करौली, यह गांव रणथम्भोर बाघ परियोजना के अंदर का गाँव है, भगवती यहीं रहती है। भगवती ने तरुण भारत संघ से मिलकर अपने खेतों पर बहुत अच्छा बांध बनाकर, खेतों को पानीदार बना लिया। उसने तब अपने पति को बुलाया, वह गांव में अपने साथियों के साथ आया। भगवती ने अपने जल संरक्षण के काम से पहली बार हुई सरसों की फसल की आय से पचरंगा साफा, कुर्ता और धोती खरीदी कर लायी थी। इसने वस्त्र अपने पति को मेरे हाथों से दिलवाये। वस्त्रों को प्राप्त करके, भावुक होकर भगवती का पति बोला कि उनकी शादी के 12 वर्ष पूरे हुए लेकिन अपनी पत्नी को कुछ भी लाकर देने की शक्ति उसमें नहीं आयी। भारी बंदूक और असला लिए रात-दिन घूमता रहता। सबको डराता और डरकर रहता। उसने मुझे कहा आज से ‘डरूगाँ नहीं और डराऊँगा भी नहीं’’। बस यही क्षण था, जब हिंसक शेर अहिंसक बनना आरंभ हुए।
पहले कुछ चंद लोग ही 1994-95 में अहिंसक बने। यह बिना किसी प्रचार-प्रसार हिंसा छोड़कर, अहिंसा का रास्ता पकड़ने लगे। राजस्थान पुलिस एवं न्यायपालिका ने ईमानदारी और श्रमनिष्ठ से बहुत मदद करी तो लोग फरारी छोड़कर, समर्पण करने लगे।
अब तो बहुत बड़ी संख्या में लोगों का अपना जीवन, जीविका और जमीर समृद्ध बनने लगा है। अब मई 2023 तक यह संख्या 1500 से अधिक है। जिन पर अब कोई भी अपराधिक मुकदमा दर्ज नहीं है। ये सब सदाचारी लोग थे, परंतु लपेटे में आ गए थे। सभी ने पहले अपने आप को जल संरक्षण करके सदाचारी बनाया है। जिनके खिलाफ कुछ मुकदमे थे, उन्हें न्यायालय में हाजिर कराके, सभी मुकदमों से मुक्ति दिलाकर के खेती के काम में लग दिया। सभी सैरनी के शेरों की ऐसी ही कहानी है।
भूड़खेड़ा के लच्छू सिंह कहते है कि, “मेरे ऊपर 40 केस थे, अब सभी से मुक्ति मिल गई है। अब मैं नहीं डरता हूँ और न ही किसी को डराता हूँ। सभी मुझे प्यार करने लगे है, मेरा घर परिवार सभी प्रसन्न है।”
ऐसी ही सभी की कहानी है। अब सभी आनंद से रहते है। सभी से पूछने पर एक जैसा ही जबाव मिलता हैं। जब यहाँ जल नहीं था, तो जीवन भी संभव नहीं था। जीवन चलाने के लिए जीविका के अवसर नहीं बचे थे, तब जमीर कैसे बचता? जब जल आया तो जीवन मिल गया, जीविका के सभी अवसर मौजूद हो गए। सैरनी के उद्गम के सभी गांवों की स्थिति एक जैसी ही थी। अब जल आया तो सभी के हालात एक जैसे ही सुधार की तरफ आगे बढ़ने लगे।
*लेखक जलपुरुष के नाम से विश्व विख्यात जल संरक्षक हैं।
बेहद सराहनीय कार्य