कोटा: शहर में अनावश्यक सीमेंट कंकरीट बिछाने से कोटा में लाखों पेड़ों की मौत हो गई है। नगर निगम और सार्वजनिक निर्माण विभाग इस कुकृत्य को लगातार कर रहे हैं। सभी इंजीनियरों को पता है लेकिन रोकने की इच्छा शक्ति नहीं है। सरकार को चाहिए कि कार्यकारी एजेंसियों को पेड़ों को बचाने के निर्देश दे।
पर यहाँ पेड़ों को बचाने के लिए सारे नियम कानून की अवहेलना हो रही है। बिना सक्षम आज्ञा के कोई भी छांटने के नाम पर पेड़ काट कर संतुलन बिगाड़ देता है वह पेड़ बाद में मामूली सी हवा में गिर जाते हैं। सार्वजनिक स्थलों पर पेड़ों की नम्बरिंग कर सरकारी संपत्ति घोषित किया जाना चाहिए। प्रदूषण मुक्त शहर बनाने की योजना हो तभी शहर सांस लेने लायक बनेगा। सड़कों के मध्य डिवाइडरों पर स्थानीय प्रजातियों के बड़े और लम्बे चलने वाले पेड़ लगाए जाना चाहिए न कि सजावटी पौधे।सजावटी पौधों को गमलों में ही रहने दें, सार्वजनिक स्थलों पर कोई लाभ नहीं। पार्कों का भू उपयोग परिवर्तन किसी भी कीमत पर न हो। साथ ही, कोटा स्टोन स्लरी एवं भवनों का मलबा जमीन का उपजाऊपन खत्म कर रहा है। सरकारी कार्यालयों में तो पालना सुनिश्चत हो। स्लरी को गड्ढों के भराव या सड़क निर्माण में काम लिया जाना चाहिए।
चम्बल रिवर फ्रंट पर भी पेड़ों का अभाव है। केवल पत्थरों के स्ट्रक्चरों के कारण और भी तापमान बढ़ेगा अतः भविष्य में चम्बल रिवर फ्रंट पर घने पेड़ भी लगाने से ही यह स्थान रमणीक बनेगा।
चम्बल में सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांटों से अप स्ट्रीम के नालों को भी नहीं जोड़ा गया है। नाले अभी भी चम्बल नदी में ही जा रहे हैं। यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि नदी में एक भी गंदा नाला न गिरे। चम्बल नदी के डाउन स्ट्रीम के नालों की समीक्षा कर उन्हें भी सीवरेज ट्रीटमेंट प्लाण्ट से जोड़ा जाए। रिवर फ्रंट कई नाले अभी भी डाउन स्ट्रीम में ही जा रहे है। चम्बल नदी में अवैध खनन को बंद कर घड़ियालों के प्रजनन की व्यवस्था और घड़ियालों का संरक्षण कर चम्बल घड़ियाल अभय अरण्य को सार्थक किया जाना चाहिए।
पर्यावरण संरक्षण के नीति निर्धारण का पालन कराने के लिए पर्यावरण पुलिसिंग की प्रशासनिक व्यवस्था की भी ज़रुरत है।
कोटा स्मार्ट सिटी के तहत कचरा संग्रहण स्थल के नाम पर नया ट्रेचिंग ग्राउण्ड उम्मेदगंज में बनाना सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की अवहेलना है। ट्रेचिंग ग्राउण्डों के निस्तारण पर काम होना ज़रूरी है। पॉलीथीन प्लास्टिक का पैकेजिंग तुरंत प्रभाव से बंद होना चाहिए। प्लास्टिक पॉलीथीन रिसाईक्लिंग ईकाईयों के अभाव में कबाड़ी पॉलीथीन नहीं लेते हैं उसे सिस्टम से जोड़ कर पॉलीथीन प्लास्टिक रिसाईकिल यूनिटों को वार्ड स्तर तक पहुंचाया जाना भी ज़रूरी है। कचरे का पृथक्कीकरण किए बिना सफाई का कोई मतलब नहीं है। ठोस, तरल, संसाधन प्रबंधन ( एसएलआरएम-जीरो वेस्ट )पद्धति को अपनाया जाना चाहिए। अभी सूखे पत्तों को और पॉलीथीन ,प्लास्टिक कचरे में मिक्स किया जा रहा है। जैविक और अजैविक कचरे को पृथक किया जाए इसकी ठोस नीति बना कर क्रियान्वयन किया जाए। अभी सिर्फ दिखावे का काम हो रहा है जिसे यथार्थ में बदलने की जरूरत है।
हाल ही में यहाँ एक चम्बल संसद में कोटा एनवायरमेंटल सेनिटेशन सोसायटी,जल बिरादरी, और बाघचीता मित्र जैसे पर्यावरण पर काम करने वाली स्वयंसेवी संस्थाओं ने सरकार द्वारा नीति निर्धारण हेतु एक ग्रीन चार्टर तैयार किया और उम्मीद जताई कि राजस्थान की नयी सरकार उसपर अमल करेगी। उन्होंने कहा कि यहां प्रस्तुत सुझाव संपूर्ण राज्य व देश के लिए उपयोगी है।
पर्यावरण संरक्षण मात्र पश्चिमी देशों की अवधारण न हो कर भारतीय राष्ट्रीय संस्कृति को परिलक्षित करती है जो हमारे वैदिक संस्कृति का ही अंग है। इसी परिप्रेक्ष्य में राजस्थान की नई सरकार से अपेक्षा है कि अपने संकल्पों में पर्यावरण हितेषी विषयों को योजनाओं में शामिल कर कार्यक्रम का रूप देकर अमल में लाये। विकास परियोजनाओं को सतत यानी सनातन विकास के रूप में किया जाए न कि अंधाधुंध विकास। स्मार्ट शहर में अनियोजित विकास केवल सीमेंट कंकरीट के ढांचे बनाता है जो कि एक तरफा और आधा अधूरा विकास है जो विनाश का ही काम करता है। प्राकृतिक संपदा को सहेजते हुए विकास ही सनातन या सतत विकास है जो जीवन को सुगम बनाता है और आने वाली पीढ़ी के लिए अच्छी दुनिया देता है।
*वरिष्ठ पत्रकार