बांस घास के पोएसी कुल का पौधा है जो बहुत तेज़ी से बढ़ता है यह अपने प्रजाति के अनुसार एक दिन में 6 इंच से लेकर लगभग 1 मीटर तक बढ़ सकता है। इंडिया स्टेट ऑफ़ फारेस्ट रिपोर्ट 2019 के अनुसार वर्तमान भारत में 15000000 हेक्टेर भूमि में बांस लगा हुआ है। जिसकी 136 से अधिक प्रजातियाँ हैं।अगर भारत की बात करे तो 2750 लाख लोग प्रत्यक्ष या प्रत्यक्ष रूप से बांस पर निर्भर हैं।
बांस केवल अंटार्कटिक छोड़कर पूरे विश्व में पाया जाता है। दुनिया भर में इसके अनेकों उपयोग है। यह अन्य वनस्पति की तुलना में सबसे अधिक उपयोग होने वाली प्रजाति है और इसका उपयोग 1500 से अधिक प्रकार से किया जाता है।
बांस दूसरे पौधे की तुलना में ३३ प्रतिशत अधिक कार्बन डाइऑक्साइड प्रतिधारण करता है एवं 35 प्रतिशत अधिक ऑक्सीजन प्रदान करता है। बांस का उपयोग औषधी के रूप में भी किया जाता है और इसका उपयोग सदियों से भोजन के रूप में भी होता आ रहा है।
बारिश के मौसम में बांस के पेड़ों के किनारे नए अंकुर फूटते हैं इन्ही अंकुरों का उपयोग सब्जी, अचार, मुरब्बा आदि बनाने में भोजन के रूप में किया जाता है। इसमें उच्च मात्रा में एंटीऑक्सीडेंट और पॉलीफेनॉल होते हैं, इसमें बसा कम मात्रा में पाई जाती है। यह फाइटोस्टेरॉल, फ्लोवोनोइट और फेनोलिक एसिड जैसे स्वास्थ्य को लाभ प्रदान करने वाले बायोएक्टिव यौगिकों का एक उच्च स्रोत है।
बांस की कोंपलों के पोषण और बायोएक्टिव घटक कई प्रकार के स्वास्थ्य लाभ प्रदान करते हैं। बांस अंकुर के भोजन के रूप में उपयोग करने से कोलेस्ट्रॉल कम करना, भूख बढ़ाना, मोटापा कम करना, पाचनतंत्र मजबूत करना, मधुमेह विरोधी, केंसर विरोधी, हृदय रोगके खतरे से बचना, हड्डियों मजबूत बनाना, बच्चों की ऊंचाई बढ़ाना आदि स्वास्थ्य लाभ शामिल हैं।इसके अलावा बाँस का उपयोग मवेशियों के चारे के लिए भी किया जाता रहा है ।
यूनाइटेड स्टेट्स डिपार्टमेंट ऑफ़ एग्रीकल्चर के आधार पर 100 ग्राम ताजा कच्चे बांस के अंकुर में निम्नलिखित पोषक तत्त्व पाए जाते हैं जो हमारे शरीर को कई प्रकार की बीमारियों से बचाते हैं:
कैलोरी-27
पानी-91 ग्राम
प्रोटीन-2.6 ग्राम
कुल आहारित फाइबर-2.2 ग्राम
शर्करा-3 ग्राम
पोटेशियम-533 मिलीग्राम
फॉस्फोरस -59 मिलीग्राम
कैल्शियम -13 मिलीग्राम
विटामिन सी-4 मिलीग्राम
कुल वसा-0.3 ग्राम
संतृप्त वसा-0.1 ग्राम
सोडियम-4 मिलीग्राम
कार्बोहाइड्रेट-5 ग्राम
आयरन-0.5 मिलीग्राम
विटामिन बी6-0.2मिलीग्राम
मैग्नीशियम-3 मिलीग्राम
बारिश के दिनों में बांस के फूटने वाले मुलायम कोंपलों को काट कर घर ले आते है । उनको छोटा छोटा बारीक काट के उनका सब्ज़ी बनाते है। उत्तर प्रदेश से लेकर उत्तरांचल और पूरे देश में बांस का उपयोग होता आया है। जन्म से लेकर मृत्यु तक बांस का उपयोग बताया गया है । जब पूर्वांचल की बात करें तो शादी में माढ़व बनाने में किया जाता है जिसके नीचे मायन पूजन किया जाता है। शादी के पहले और बाद में भी उपयोग किया जाता है । मौत होने के उपरांत भी तिथि का उपयोग होता है।
अगर बात करें पूर्वोत्तर के राज्यों की तो वहां बांस के अन्दर चावल पकाते हैं और दही जमाते हैं। और सबसे बड़ी बात यह है कि इस में जमाये दही का स्वाद बहुत अद्भुत है। और सबसे बड़ी बात पर्यावरण संरक्षण का एक सुन्दर उदाहरण आपको बांस से मिलेगा बांस अम्लीय मिट्टी को न्यूट्रल कर और उपज बढ़ाता है। आज के समय में सबसे बड़ी बात बांस का उपयोग बायोफ्यूल के रूप में किया जा रहा है। बांस निर्मित कोयला वातावरण को दूषित नहीं करता। बांस का सदियों से आयुर्वेदिक चिकित्सा एवं चीनी हर्बल दवाओं में इस्तेमाल किया जाता रहा है । बांस का उपयोग खाँसी, अस्थमा के लिए किए जाता रहा है। जैविक रूप से सड़नशील होने, अपने मज़बूती लचीलेपन, एवं बहुतेरे उपयोग के कारण बांस लकड़ी और प्लास्टिक का विकल्प बन गया है। इसे प्लास्टिक के ईको फ़्रेंडली विकल्प के रूप में दुनिया में इसको देखा जा रहा।
पारंपरिक रूप से बांस का उपयोग भवन निर्माण कार्य सिल्क और काग़ज़ बनाने में किया जाता रहा है । परंपरागत उपयोग के साथ साथ वर्तमान में जैविक ईंधन एथनॉल, कपड़ा बनाने में इसका उपयोग जा रहा है।कपड़ा उद्योग में बांस का फ़ाइबर प्राकृतिक रूप से जीवाणु रोधी होने के साथ ही नमी संचित कर त्वचा को सुरक्षित एवं आरामदेह रखता है । इसके इंसुलेशन विशेषता शरीर का तापमान बनाए रखते हैं।
यह एक ऐसा पौधा है जिसका हर एक भाग का अलग अलग से उपयोग किया जाता है या किया जा सकता है।बांस के पत्तियों का उपयोग आप गाँव में लोग गोबर के साथ घूर में डाल का खाद बनाने में किया जाता है। जब गाँव में कोई नये मवेशी के बच्चे का जन्म होता है तो उसकी पत्ती खाने को दिया जाता है। बांस के टहनियों का उपयोग झाड़ू, टूथब्रश बनाने में किया जाता है। बांस के ऊपर वाले भाग का उपयोग बेलों के सपोर्ट के लिए किया जाता हैं । ऊपरीमध्य भाग का उपयोग आपको महाराष्ट्र में बहुत अधिक देखने को मिलेगा जैसे बांस के खंबे केला अंगूर आदि के बाग़वानी में सपोर्ट तथा अंगूर के डाली चढ़ाइ करने में उपयोग किये जाते हैं । निचला मध्य भाग का इस्तेमाल मचान बनाने में आज से हजारों साल से किया जाता जा रहा है जिसके ऊपर किसान रात में लेट कर बैठ के अपने खेती की रखवाली करते है । शूट्स का उपयोग खाद्य के रूप में, राइसोम का हस्तशिल्प में उपयोग, और बचे हुए भाग का उपयोग चारकोल, पल्प, बिकेट्स, फ्यूल्स आदि में किया जाता है ।
*पर्यावरण यात्री जो पर्यावरण के प्रति चेतना के लिए 2021 से देश भर में साइकिल से यात्रा कर रहे हैं।