काशी: असि नदी को अस्सी कहना छोड़ना चाहिए क्योंकि असि का अर्थ है तलवार जो अस्सी से बिल्कुल भिन्न है। हमारे शास्त्रों में असि नदी का बडा माहात्म्य बताया गया है। आज इसे अस्सी कहा जा रहा है। जिस तरह से अस्सी कहकर इस पौराणिक नदी का नाम बदला गया है वैसे ही इसकी दशा भी अब नाले जैसी हो गयी है जिस पर हम सभी को विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।
जिस प्रकार पुराण वर्णित पवित्र असी नदी को नाला बनाया जा रहा है नाला बोला जा रहा है शीघ्र ही वही हाल माँ गंगा का होने वाला है।भगवती गंगा के जल से 50 करोड़ लोग अपना जीवन यापन करते हैं।गंगा के न रहने पर पूरा उत्तर भारत रेगिस्तान हो जायेगा।
उक्त उद्गार उत्तराम्नाय ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामिश्रीः अविमुक्तेश्वरानन्दः ने आज श्रीविद्यामठ में आयोजित जल सभा के अवसर पर कही।
“भगवती गंगा बड़ी कृपालु हैं ।उनकी कृपा इसी बात से प्रमाणित होती हैं कि भगवती गंगा हमलोगों के पापों के प्रच्छालन हेतु ऊपर स्वर्ग से उतर कर धरती पर आई हैं।सामान्यतः लोग नीचे से ऊपर जाते हैं लेकिन मां गंगा जीवों को पापों से मुक्त कर उनका कल्याण करने हेतु ऊपर से नीचे आई हैं।गंगा आज किस हाल में हैं कितना प्रदूषित हैं कहना कठिन हैं माँ गंगा के अस्तित्व पर प्रश्न चिन्ह उठ खड़ा हुआ है।जगह जगह बांध बना कर उनको खण्ड खण्ड काटा जा रहा है,” स्वामिश्रीः अविमुक्तेश्वरानन्दः ने कहा।
जलसभा को सम्बोधित करते हुए असी नदी के अविरलता व निर्मलता हेतु संघर्षरत कपिंद्र तिवारी जी ने कहा कि “महाराजश्री के आशीष से प्राप्त ऊर्जा को हमलोग असी नदी का अविरल निर्मल बनाने में लगायेंगे”।
कार्यक्रम के प्रारंभ में वैदिक मंगलाचरण कर्ण पाण्डेय, त्रियुग तिवारी ने किया।जलसभा में कार्यक्रम के आयोजक डॉ अभय शंकर तिवारी ने आज आयोजित 61वीं जल सभा शंकराचार्य को समर्पित किया। कार्यक्रम के दौरान डॉ जयप्रकाश मिश्रा जी ने स्वरचित पुस्तक श्रीरामरक्षा स्त्रोत प्रत्यानुवाद,कैकेई खण्ड काव्य व बाल हनुमान अर्पित किया।कार्यक्रम का संचालन श्री सुनील शुक्ला ने क़िया।
– ग्लोबल बिहारी ब्यूरो