आलमपुर गांव पहाड़ियों के बीचों-बीच बसा हुआ है।करौली जिला के मासलपुर तहसील से 12 किलोमीटर दूरी पर यह गांव बसा हुआ है। इसमें 50 परिवार निवास करते हैं,यहां पर बहुत पुराना तिमनगढ़ किला भी बना हुआ है, इसलिए इसको हजारों साल पहले से बसा हुआ गांव मानते हैं। अभी यह किला खंडहर अवस्था में पड़ा हुआ है। इसकी तलहटी में ही आलमपुर गांव बसा हुआ है। आलमपुर के किनारे से बैना नाला निकलता है, जो काकड़ नदी को पुनर्जीवित करने का काम करता है। आज से 5 वर्ष पहले यह नाला सूखा रहता था, जो अब बह रहा है।
गांव में जब पानी का संकट था, तो युवाओं का पलायन बहुत तेजी से हो रहा था। उस समय यहाँ तरुण भारत संघ ने जल संरक्षण का काम लोगों के साथ मिलकर शुरू किया। गांव के जगदीश सिंह का कहना है कि पहले जब यहाँ का नाला सूख गया था, तो गांव में चारों तरफ पानी का बहुत बड़ा संकट था, तब सबसे पहले उसने बारीनकी पोखर का निर्माण तरुण भारत संघ के सहयोग करवाया था। बनने के पहली बारिश में ही पोखर पूरी भर गयी थी। उसने उसमें ₹100000 में सिंघाड़े की खेती की थी तथा 5 बीघा खेत में गेहूं की फसल की थी, जिसमें 60 क्विंटल गेहूं हुआ था। आगे कहा कि, 2019 में गांव में पानी का बहुत बड़ा संकट खड़ा हो गया था, तब उसने अपनी पोखर से नाले में पानी छोड़ने का काम किया था। जिससे गांव की 50 बीघा फसल जो सूख रही थी, उसमें लोगों ने पानी देने का काम किया। “पानी का मैंने ₹1 भी नहीं लिया और लोगों के 600 क्विंटल गेहूं का उत्पादन हुआ था,” उसने बताया।
गांव के सुगरे ने कहा कि उसने भी तरुण भारत संघ से पांची वाली पोखर बनवाने की प्रार्थना की थी। उस पोखर को बनने के बाद, आज सिंघाड़े की खेती करता है। उससे लाखों रुपए की आय होती है तथा बेना नाला पुनर्जीवित हो रहा है। इन पोखरों के निर्माण से गांव में जलस्तर भी बढ़ा है – जैसे उसके पास दो बकरियां तथा 20 भैंसें हैं, वह इसी पोखर में पानी पीती हैं। उनके लिए चारा भी हो जाता है। अब तो आनंद से जीवन कट रहा है।
रतन सिंह ने कहा कि वे 8 भाई हैं। आठों भाइयों ने तरुण भारत संघ की मदद से दो पोखर बनवाने का काम किया है। पीर के डेरा की पोखर है तथा गोंडे की पोखर, अब इन दोनों पोखरों में भरपूर पानी रहता है। “हमारे पशु पानी पीते हैं, उसमें नहाते है। गांव में चारों तरफ पानी ही पानी हो गया है,” उसने कहा।
युवा रामवीर सिंह ने कहा कि जब उनके पास पानी नहीं था तो बहुत संकट झेलना पड़ता था। इस संकट से निपटने के लिए तरुण भारत संघ की मदद से एक एनीकट बनवाया। “इसमें हम 6 साझीदार हैं। हमारी 25 बीघा जमीन , जो पहले बंजर पड़ी रहती थी, अब उसमें खेती होने लगी है और पशुओं के लिए चारा मिल रहा है,” उसने कहा।
अब इनके पास भरपूर्ण खाने को अनाज हो जाता है। इससे बैना नाला तो हमेशा के लिए पुनर्जीवित हो गया है, इस नाले से काकड़ नदी भी पुनर्जीवित हुई है। इसके सहारे बसे कई गांवों के लोगों को अब पानी मिल रहा है। लोगों का जीवन स्तर सुदृढ़ हुआ है तथा स्वास्थ्य और शिक्षा दोनों में मजबूत हुई है। अब इनका जीवन आनंद से गुजर रहा है। अब इनके गांव में लोगों के नए मकान बनने लगे हैं तथा साधन-वाहन खरीदने लगे हैं।
गांव वालों ने मिलकर कहा कि अभी उनके सामने एक अलग संकट खड़ा हो रहा है। जब उनके गांव में पानी नहीं था, तो जंगल नहीं था, खेती नहीं थी और पशु नहीं थे। एक सुनसान जीवन था। “सरकारों ने तब तो हमारी तरफ कोई ध्यान नहीं दिया। जब पानी आया और हमने जंगल बचाने का काम किया, खेती होने लगी, पशुपालन में वृद्धि हुई, बच्चे पढ़ने लगे तथा जंगल में जानवर आए तो सरकार हमारे साथ सौतेला व्यवहार करके, हमारे शहर क्षेत्र को बंधवा डाटा सेंचुरी घोषित करके, उजाड़ने का काम करना चाहती है। उस समय सरकार ने जंगल क्यों नहीं बचाया, जानवर क्यों नहीं बचाए और सरकार अवैध खनन करवाती थी। सरकार लकड़ियों का अवैध व्यापार करवाती थी, इसलिए बंद बरेठा वन्य जीव अभ्यारण घोषित होना हमारे जीवन के लिए बहुत बड़ा संकट है।”
संपति देवी ने कहा कि गांव में जब पानी नहीं था, तो महिलाओं के जीवन पर बहुत बड़ा संकट था। इस गांव में कोई अपनी बच्चियों को देने नहीं आता था, क्योंकि दूर-दूर से पानी लाना पड़ता था। चारों तरफ से पहाड़ थे, आलमपुर के सिवा और कोई गांव नहीं दिखता था। यहां लोग बहुत कम आते-जाते थे तथा महिलाओं का नहाना धोना भी बहुत कम होता था।
आगे कहा कि यहाँ उसने सबसे पहले बारीन की पोखर बनवाने का काम किया था। उसमें साधन वालों को वह भोजन खिलाने का काम करती थी। पोखर पर खड़ी होकर के टोकन देने का काम भी किया था। सुबह-शाम वहां पर पानी ले जाकर, उनको पानी पिलाने का काम करती थी। “मुसीबत के साथ मैंने पोखर बनाने का काम किया और मेरी पोखर को बनने से वन विभाग ने रोकने का काम किया। तब मैंने खड़ी हो करके मेरी पोखर बनाने का काम किया और कहा कि आप लोग जंगल कटवा रहे हो, पहाड़ों से अवैध खनन करवा रहे हो और मैं तो पानी का काम कर रही हूं, जिससे आपका जंगल बचेगा, आपके पहाड़ बचेंगे और आपका जानवर बचेंगे। तब बड़ी मुश्किल से पोखर बनने का काम होने दिया था। पोखर बनने के बाद मेरे बहुत अच्छी खेती होने लगी है। सिंघाड़े की खेती करती हूँ, 20 भैसे रखती हूं तथा दूध बेचने का काम करती हूँ। अब अच्छे से मेरी जिंदगी गुजर रही है।”
गांव में चारों ओर चहल-पहल रहती है, अब लोग आते-जाते हैं तथा युवा बच्चों का शादी संबंध भी बहुत अच्छे से हो रहा है। अब चैन से खुश होकर जिंदगी गुजर रही है।
*लेखक जलपुरुष के नाम से विश्व विख्यात जल संरक्षक हैं।