चंबल विशिष्ट दस्यु बीहड़ क्षेत्र है। निर्जन, चट्टानी, भयानक और खतरनाक, जैसे कि प्रत्येक पथरीली चट्टान के पीछे खतरा छिपा हो। यहां का जगदीश गुज्जर छोटे से दस्यु दल का नेतृत्व करता था। यह ऐसे व्यक्ति के रूप में था, जिसका जीवन त्वरित प्रतिक्रियाओं पर निर्भर करता था। वह डरे हुए समूह का नेवले से प्रभावित जंगल में तब तक नेतृत्व करना जारी रखता था, जब तक कि वे एक शिव मंदिर तक नहीं पहुंच जाते। वह कहते हैं, यहीं पर उन्होंने भक्तों को अपने पचफेरा-एक बंदूक जो एक बार में पांच गोलियां दागती है – से डराया और उनसे उनकी संपत्ति छीन ली।
जगदीश का ये कबूलनामा राजस्थान के करौली जिले में आम होता गया था। चंबल और बनास नदियों के किनारे पहाड़ी इलाके में एक खूंखार दस्यु राम सिंह गुज्जर के पसंदीदा के रूप में जगदीश एक सफल सरदार (गिरोह नेता) के रूप में स्थापित था। वह शिक्षित था और गिरोह का हिसाब-किताब रख सकता था। जबरन वसूली, अपहरण और डकैती के इर्द-गिर्द घूमती जिंदगी में यह कोई आसान काम नहीं था। लेकिन 28 वर्षीय व्यक्ति ने यह सब तब छोड़ दिया, जब उसे एक रिश्तेदार के घर पर राजेन्द्र सिंह मिल गए। ये इसके रिश्तेदार के घर पर तालाब बनवा रहे थे। इनसे जगदीश का यहां पर प्यार और सम्मान से मिलना-जुलना हो गया। दोनों में स्नेह और सम्मान की बातचीत के बाद जगदीश ने तरूण भारत संघ (तभासं) के साथ मिलकर काम करने की मंशा दिखाई। तभी राजेन्द्र सिंह ने आपने साथ इन्हें मोड़ लिया और तभासं के कार्यकर्ता चमन सिंह के साथ इनको जोड़ दिया।
हिंसक जीवन में अहिंसक बदलाव लाने हेतु जलपुरुष राजेन्द्र सिंह ने चार दशक पूर्व प्रयास शुरू किए थे। ये पीड़ितों की तलाश में कठोर ग्रामीण इलाकों में घूमते थे। वे लोगों के शुष्क, कठिन जीवन में बदलाव लाने के लिए उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम करते थे। अब इन्होंने पीड़ितों को ही हिंसा की पीड़ा से मुक्ति हेतु तैयार कर दिया है और इनके साथ मिलकर प्रकृति प्रेम से जल संरक्षण का काम करना सिखा दिया है।
30 वर्षीय सरदार सिंह बैरवा एक बांध निर्माण स्थल पर राजमिस्त्री बन गए हैं। इनसे जलपुरुष राजेन्द्र सिंह को जगदीश गुर्जर ने मिलावाया था। अलवर के तरुण भारत संघ के सफल जल संरक्षण प्रयासों के चमन सिंह लेखा-जोखा बन गए थे।
कुछ सप्ताह बाद, जगदीश ने सपोटरा पुलिस स्टेशन में आकर थानेदार को सूचित किया कि वह जल साक्षरता कक्षाएं आयोजित करने के लिए डकैती छोड़ रहा है। पुलिस अधिकारी, जिसने एक बार उसका कॉलर पकड़ा था और उसके साथ दुर्व्यवहार किया था, उसी ने एक कप चाय की पेशकश की। जगदीश कहते हैं, ’’मुझे जो सम्मान दिया गया वह एक नई जिंदगी की तरह था। राजेन्द्र सिंह से प्यार, सम्मान, विश्वास सभी कुछ मिला। सरकारी डर निकला, तो नई खुशी और आनंद सभी के प्रेम व्यवहार में बनने लगा।’’
जगदीश की तरह, कई अन्य कठोर दस्यु लोग करौली में राजेन्द्र सिंह द्वारा शुरू किए गए जल संरक्षण के कार्यों को देखकर बंदूक छोड़कर जल संरक्षण का काम करने के लिए जंगलों से वापिस अपने घर लौट रहे हैं। पुलिस वाले कहते हैं, ’’वर्ष 2001 से 2003 तक 100 से अधिक दस्यु और उनके साथी गांवों में लौट आए थे। 2024 तक आते-आते अब यह संख्या 3000 से ज्यादा हो गई है। ये अब जल, जंगल, जमीन संरक्षण का काम करके खेती कर रहे है। अमन-चैन के साथ अपना काम कर रहे है। क्षे़त्र में अब शांति है। इन डकैतों ने आखिरकार खेतों पर पानी देखा है और हथियार छोड़ने को तैयार हैं।’’ कई सालों में पहली बार, करौली में अपहरण के बिना साल बीतें है।
यहां सरासर पानी के बिना लाचारी, बीमारी, बेकारी की हताशा थी, जिसने इन लोगों को हिंसा के जीवन की ओर धकेल दिया। अन्यथा वे उस क्षेत्र में अपना जीवन यापन कैसे कर पाएंगें, जहां पक्की सड़क तक पहुंचने के लिए आपको 15 किमी पैदल चलना पड़ता था, जहां छात्रों को स्कूल तक पहुंचने में तीन घंटे लगते थे, हैंडपंप सूख जाते थे, जहां प्रसव के दौरान महिलाओं की नियमित रूप से मृत्यु हो जाती थी, दूर-दराज के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों के रास्ते पर मृत्यु, निराशा और सूखा था। हालांकि इस क्षेत्र में पर्याप्त वर्षा होती है, लेकिन सिंचाई लगभग न के बराबर थी।
विश्व बैंक के पूर्व निदेशक बास्टियन मुहर्रम कहते हैं कि नौकरशाही ने आसानी से इस तथ्य को नजरअंदाज कर दिया कि चट्टानें और खड्डें पानी बरकरार नहीं रखती हैं। ग्रामीण फसलें नहीं उगा सके और जंगल उजड़ गए। ऐसे में जीवन, जीविका और जमीर पर संकट मंडराने लगा था। तब पुलिस से डरने के बजाय, मरने-मारने हेतु इन्होने बंदूक उठाई।
28 वर्षीय शिक्षित डकैत जगदीश गुर्जर ने जल साक्षरता कक्षाएं शुरू करने के लिए धन का त्याग कर दिया था। तरुण भारत संघ ने इस क्षेत्र में 300 से ज्यादा तालाबों और जल संरचनाओं का निर्माण किया है। चार दशक के इन कामों से महेश्वरा, तिवारा, सैरनी नदी अब सदानीरा बन गई है।
65 वर्षीय नादान सिंह कहते हैं ’’हमारे दरवाजे पर अचानक बहुत सारा काम आ गया।’’ तीन दशक तक रावतसर के ग्रामीण नादान सिंह की हरकतों को झेलते रहे थे। वह एक घमंडी डाकू था, जो उसका विरोध करने वाले लोगों को बेरहमी से पीटता था। तब उनकी पत्नी करणबाई ने उनसे गांव में बांध बनाने के प्रयास में शामिल होने की बात कही। नादान न केवल सहमत हुआ, बल्कि उसने बाद में एक अन्य डकैत बानो द्वारा निर्माण स्थल से चुराए गए दो ट्रैक्टरों को वापस लाने में भी ग्रामीणों का नेतृत्व किया। नादान की कानूनी आय और पशुधन दस गुना बढ़ गए हैं।
इसी तरह, 38 वर्षीय हट्टे-कट्टे भगवान सिंह, जिनकी लंबी मूंछें नेनिया की गुआरी गांव में खतरे का प्रतीक थी, इसने जल संरक्षणवादी बनने के लिए, जंगलों में दस्यु जीवन छोड़ दिया था। अब दूसरों को जल संरक्षण के कामों में लगने हेतु तैयार करता था। क्रोधित पूर्व सहकर्मियों से खुद को बचाने के लिए, उन्हें पुलिस की अनुमति से फिर से बंदूक उठानी पड़ी, लेकिन उन्होंने मिट्टी के चेकडैम बनाने और पेड़ लगाने का काम शुरू कर दिया था। इसका इनाम उन्हें पिछले साल भरपूर फसल के रूप में मिला था।
65 वर्षीय नादान सिंह लोगों को जल संरक्षण के फायदों के बारे में बताते हैं। जैसे-जैसे लोग शुष्क मिट्टी को जीवन में लाने का प्रबंधन कर रहे हैं। हथियाकी गांव के हरि सिंह स्वीकार करते हैं, ’’मैं अनाज चुराता था और डकैतों को बेचता था।’’ पुलिस की छापेमारी के बाद वह घर से चला गया, लेकिन तालाब की खुदाई शुरू होने पर वापस लौट आया।
भगवान सिंह के साथी 60 वर्षीय सरदार सिंह बैरवा आज चोडकिया कलां में बांध बनाने वाले राजमिस्त्री हैं। एक साल जेल में बिताने वाले डकैतों के मास्टर गाइड 62 वर्षीय राम चरण जाटव ने तरुण भारत संघ के साथ मिलकर तालाब खोदा है और एक बांध बना रहे हैं। अब इसी काम में रात-दिन लगे हुए है। यह हिंसा छोड़कर, अहिंसामय जीवन जीना बहुत बड़ी व्यवहार परिवर्तन की घटना है।
आज पूरी दुनिया हिंसामय बन रही है। भारत का चंबल दस्यु क्षेत्र अहिंसा के रास्ते पर चलने हेतु तैयार हुआ है। चंबल की यह तैयारी स्वयं पीड़ितों की है। अब ये स्वयं पीड़ा से मुक्त होकर अपना जीवन आनंद से जी रहे है।
उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्य सचिव आर. के. तिवारी कहते है कि, ‘‘चंबल की यह घटना दुनिया को सीख देती है। जैसे भारत में शांति की क्रांति हुई है, वैसी आज पूरी दुनिया को शांति की जरूरत है। इसलिए सभी को चंबल में आकर देखना चाहिए।’’
जयनारायण विश्वविद्यालय, जोधपुर के कुलपति के. एल. श्रीवास्तव कहते है कि, चंबल का खनन धरती के ऊपर गहरा घाव है। ये घाव जल स्त्रोतों को सुखाते है। अब जल संरक्षण से यहां की सैरनी नदी पुनर्भरण से बहने लगी है। नदी को शुद्ध सदानीरा देखकर मुझे आश्चर्य नहीं हैं, क्योंकि यह तो भूजल वैज्ञानिक काम है, ऐसा काम पूरी दुनिया में हो सकता है।’’