विरासत स्वराज यात्रा 2022: पानी की कमी और पानी की अधिकता, दोनों ही आपदा है
कॉप-27
– डॉ राजेंद्र सिंह*
पानी की कमी और पानी की अधिकता, दोनों ही आपदा है। इसलिए जहां लोग अपने जीवन में इस जल आपदा में बच जायेंगे, वहां स्वास्थ्य और सुख-समृद्धि बनी रहेगी। जो लोग लोभी बनकर, अधिक लाभ कमाने के लालच में फंसे हुए हैं, वह लोग बेपानी होकर लाचार, बेकार बनेंगे। हमें अपने जीवन में प्रकृतिमय रखने के साथ-साथ, प्रकृति से व्यवहार और संस्कार सीखकर विद्या को ग्रहण करके आगे बढ़ना ही शुभ का रास्ता है। यही बातें मैंने आज बास से हबीबा पहुंच वहां एकत्रित हुईं महिलाओं से कही। यहां बहुत ज्यादा सुखाड़ हो गया है। यहां पेड़ बहुत ही कम बचे है।जब यहां के औसत वर्षा के वारे में पूछा तो बताया कि, सिर्फ 3 सेंटीमीटर होती है। हबीबा में युवा वैज्ञानिक महिलाओं और वेदर चेंजर के साथियों, करीब 22 लोगों के साथ एक बैठक आयोजित हुई। यहां रहने वाले साथी बहुत कम पानी में खेती करने के तरीके खोज रहे है। प्रस्तुतीकरण के माध्यम सेमैंने उन्हें राजस्थान में हुए अपने जल कार्यों को दिखाया।
इस वक्त दुनिया का आधे से ज्यादा हिस्सा बाढ़ और सुखाड़ से ग्रस्त है । एक तरफ जल अधिकता की आपदा है और दूसरी तरफ जल की कमी की आपदा है। यदि हमे अपने भविष्य को सुरक्षित करना है तो, इन दोनों आपदाओं से बचने के समाधान खोजने होंगे।इस काम को करने के लिए इजिप्ट के सिनाई पर्वत की पहाड़ियों में बड़ा काम शुरू हुआ है। अभी इस काम में इजिप्ट की कंपनी के साथ एग्रीमेंट करके बाढ़ के पानी को संग्रह करने का अभियान शुरू किया है। इस आयोग में सीधे तौर पर सिनाई पर्वत के सबसे ऊंचे शिखर से बहने वाली नदी को पुनर्जीवित करने का काम इजिप्ट की बहिन मोना और उनकी टीम हबीबा के साथियों के साथ मिलकर शुरू हुआ है।
आज कॉप-27 में बाढ़ -सुखाड़ विश्व जन आयोग द्वारा प्रेस कांफ्रेंस आयोजित हुई। इस कॉन्फ्रेंस में मैंने कहा कि, इस वक्त दुनिया का आधे से ज्यादा हिस्सा बाढ़ और सुखाड़ से ग्रस्त है । एक तरफ जल अधिकता की आपदा है और दूसरी तरफ जल की कमी की आपदा है। यदि हमे अपने भविष्य को सुरक्षित करना है तो, इन दोनों आपदाओं से बचने के समाधान खोजने होंगे।
इसके अलावा दुनिया भर से आए तीर्थ बचाव जुड़ाव के 80 सदस्यों ने कॉप-27 के लिए निम्नलिखित बातों पर सहमति बनाई है, वह इस प्रकार है:
1. जीवन दुनिया का सबसे बड़ा तीर्थ है। जो पंचमहाभूत जीवन को निर्मित करते हैं, उनके साथ मानवीय व्यवहार सम्मानजनक होना चाहिए। इसके लिए आधुनिक शिक्षा को रोककर, जो विद्या भारतीय ज्ञान तंत्र और जीवन को प्रकृतिमय व्यवहार से सम्मान करने का एहसास-आभास करती है अथवा जो बिना पुस्तकों व शिक्षकों के प्रकृति से सीखकर, ग्रहण की जाती है, इस प्रकार की विद्या को अपने जीवन में ग्रहण करना आरंभ करना चाहिए। जो शिक्षा हमें लालची-लोभी बनाती हैं, उसका बहिष्कार करें। शिक्षा का बहिष्कार और विद्या को ग्रहण करने का अभियान पूरी दुनिया में चलना चाहिए।
2. पंचमहाभूत में सबसे महत्वपूर्ण महाभूत जल है, जिससे जीवन की शुरूआत होती है। लेकिन वर्ष 1972 से पृथ्वी शिखर सम्मेलन शुरू हुआ था, अब वर्ष 2022 है । इस प्रकार पूरे 50 सालों में 27 पृथ्वी शिखर सम्मेलन हुए, लेकिन इन पृथ्वी शिखर सम्मेलन में अभी तक पृथ्वी को बचाने का सनातन समझौता नहीं हुआ है। जो छोटे-छोटे टुकडों में समझौते हुए, उनको सरकारें ने माना लेकिन उनकी पालना नहीं हुई। इसलिए कोप को प्रतिवर्ष आयोजित करने और प्रतिवर्ष खर्च बढ़ाने के बजाय, हम प्रतिदिन अपने जीवन को प्रकृतिमय- पृथ्वीमय कैसे बनाएं? पृथ्वी के साथ हमारा जीवन कैसे आत्मसात हो? वैसे व्यवहार और संस्कार को जीवन में जीने की कुशलता और दक्षता बढ़ाने की जरूरत है। कॉप को इस दिशा में निर्णय लेना चाहिए।
3. कॉप में अभी तक जितने समझौते हुए हैं, उन समझौतों में जल का समझौता केवल 2015 में शामिल हुआ था। इस हेतु सभी अंतरराष्ट्रीय सरकारों को उसके प्लान बनाने थे लेकिन आज तक कोप में जल के लिए जो क्षतिपूर्ति हुई है, उस हेतु अभी तक कोई बजट की प्रावधान नहीं हुई है। पानी को क्षतिपूर्ति के एजेंडे पर प्रस्तुत नहीं किया गया है। इस अधिवेशन में जल को एजेंडा में सम्मिलित कराना और उसके लिए बजट की व्यवस्था कराना, अत्यंत आवश्यकता है। जिस प्रकार 2015 में ‘जल ही जलवायु परिवर्तन है और जलवायु परिवर्तन ही जल को माना जाए’ इस बात को स्वीकार किया गया था, लेकिन इस सिद्धांत की स्वीकारोक्ति के बाद भी जल के लिए आज तक कोई बजट की व्यवस्था नहीं हुई है। संयुक्त राष्ट्र संघ का ध्यान दिलाना है कि, जल को अपने एजेंडा में प्राथमिकता देना चाहिए।
4. भारतीय ज्ञान तंत्र, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विज्ञान को आगे बढ़ाना चाहिए। विकास की वर्तमान परिभाषा को बदलकर, प्रकृति का कम से कम शोषण करना और प्रकृति का अधिक से अधिक पोषण करने वाले कार्यकर्मों व कामों को सरकारों को प्राथमिकता देना चाहिए।
5. कॉप की दृष्टि केवल लाभ पर आधारित नहीं होना चाहिए। लाभ के स्थान पर प्रकृति का पोषण, रक्षण और संरक्षण करने वाली प्रक्रिया-विधियों के कामों को सम्मान देना चाहिए। इस दिशा में अब नए समझौते तय होने चाहिए।
*लेखक स्टॉकहोल्म वाटर प्राइज से सम्मानित और जलपुरुष के नाम से प्रख्यात पर्यावरणविद हैं। प्रस्तुत लेख उनके निजी विचार हैं।