विरासत स्वराज यात्रा 2022
शोषण, प्रदूषण, और अतिक्रमण विस्थापन की जननी हैं
जब से अंग्रेजी हुकूमत के जमाने में शिक्षा का परिवर्तन आया तब से हमारी विद्या का विस्थापन हो गया। विस्थापन होने के कारण हमारे विकास की परिभाषा बदल गई। आज हम उसको विकास कहते हैं जिसकी शुरूआत विस्थापन से होती है। यह विस्थापन बिगाड़, विनाश करता है।दोबारा से इस वक्त इस बात की जरूरत है कि कैसे हम भारत के मूल ज्ञान तंत्र को पुनर्जीवित करें और उससे हम अपनी खोई हुए विद्या को वापस लेकर आएं?
9 अक्टूबर 2022 को विरासत स्वराज यात्रा परमार्थ निकेतन, ऋषिकेश, उत्तराखंड में आयोजित नारी संसद में पहुंची थी। इस संसद में देशभर की महिलाओं ने भाग लिया था।इस संसद में बोलते हुए मैंने कहा कि हम भारतीय लोग नीर , नारी और नदी को नारायण मानकर सम्मान करते थे। नीर – जीवन, नारी – जननी और नदी -जीवन के प्रवाह (आध्यात्मिक, सामाजिक, संस्कृतियों को जन्म देने वाली नदियां), इनको आज हम भूल गए है।
भारत और दुनिया के ज्ञान की राजधानी मानवीय व्यवहार और जीवन के संस्कार से हटती जा रही है। इसलिए आज ऋषिकेश में नारी संसद आयोजित करनी पड़ी। नारी और नर दोनों ही ब्रह्मांड में बराबर के हिस्सेदार हैं। फिर हमें अलग से नारी संसद की जरूरत इसलिए पड़ी क्योंकि हम भारतीय लोगों ने पश्चिमी शिक्षा के प्रभाव में आकर अपने को विखंडित कर दिया है। नारियों को संबल देने के लिए एक संसद की जरूरत है। यह संसद पवित्रता से बहने वाली गंगा की धारा के किनारे आयोजित हुई है। इसमें 17 तरह के रोगाणुओं को नष्ट करने की विशिष्ट शक्ति थी। प्रदूषण नाशनी, जीवनदायिनी की शक्ति अब समाप्त होनी शुरू हो गयी है। यह तब से शुरू हुआ जब से हमारा प्रकृति के साथ व्यवहार बदलता है। जब प्रकृति के साथ हमारा व्यवहार बदलता है तो प्रकृति का क्रोध बढ़ता है। ऐसा प्रतीत होता है कि इस साल प्रकृति बहुत क्रोधित है , क्यों कि इस साल पांच तरह के उफान और तूफान आए हैं।
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‘‘नीर, नारी, नदी नारायण है’’ के नारे के साथ मैंने कहा कि अभी भी वक्त है कि हम भारत के लोग अपने भारतीय ज्ञान तंत्र में जिस जीवन, जीवन मूल्यों, जननी, सभ्यता और संस्कृति की आधार नदियों का जो सम्मान था उसको वापस लौटा आएं। वह सम्मान यदि हम वापस लौटा के लेकर आएंगे, तो हमारी धरती पर प्रकृति का क्रोध कम होगा जिससे हमारे जीवन में शांति, सुख और समृद्धि आएगी। हम भौतिक साधनों से कितना भी आगे बड़ा कर लें, लेकिन तब संतोष और शांति भी चली जाती है और समाधान खोजने की क्षमता बची नहीं है। जब आपके अंदर यह विश्वास नहीं होता, तो फिर समाधान ढूंढने की जिज्भसा भी गायब हो जाती है। आज के हालात कुछ ऐसे ही है। इन हालातों में यदि अपने को दोबारा से खड़ा करने की कल्पना करना है तो हम भारतीय ज्ञान तंत्र से सीखें और समझें।
भारतीय ज्ञान तंत्र कभी किसी का शोषण, प्रदूषण, और अतिक्रमण नहीं सिखाता था। लेकिन आज जो तकनीकी और इंजीनियरिंग हमें पढ़ाई जा रही है, उससे हमारी प्रकृति के शोषण अतिक्रमण और प्रदूषण को बढ़ाने का तरीका ढूंढ रही है। यदि भारत को दोबारा से अपने नारीत्व से अपने पोषण का पाठ पढ़ाना है, तो यह शोषण, प्रदूषण और अतिक्रमण करने वाली शिक्षा को रोकना पड़ेगा। हमें भारतीय विद्या, जो हमें शुभ के लिए जीना सिखाती है, उस विद्या को अपनाना पड़ेगा।
विरासत स्वराज यात्रा का दूसरा पड़ाव उत्तराखंड में ऋषिकेश से श्रीनगर पहुंचा। यहां प्रवेश करते ही गंगा जी चौड़ी पाट में दिखाई देती है। श्रीनगर अलकनंदा के लिए सबसे खतरनाक जगह है। जहां बहुत चौड़ी है, वहां बहुत मजबूत दीवार खड़ी कर दी गई,जिससे मां अपनी आजादी से न बह पा रही। मुझे याद है, जब इसमें जो बांध बनाया है तब इसके विरोध में एक मजबूत आंदोलन हुआ था लेकिन उस आंदोलन को बहुत सताया गया। इस आंदोलन में मेरे साथ जी डी अग्रवाल, वैद प्रकाश वैदिक, मेजर हिमांशु, प्रेम निवास शर्मा आदि सत्याग्रह कर रहे थे, तब यहां की सरकार ने सभी को राज्य से बाहर निकाल दिया था। इस क्षेत्र में गंगा के विनाश को रोकने के लिए हरिद्वार के मातृ सदन से शिवानंद सरस्वती जी भी आए, किसानों को संबोधित किया और यहां धारी देवी के मंदिर को डूब क्षेत्र से भी बचाया था।
इस क्षेत्र में नदी बिल्कुल सूखी दिख रही है, क्योंकि बांध में पानी को रोक दिए हैं। दूसरी तरफ पानी छोड़ दिया है, जहां थोड़ा पानी दिखता है। यह यहां नदी की हत्या कर रहे है। इसको कई लोगों ने बचाने की कोशिश की, लेकिन 2014 से पहले जिस बात के लिए गंगा का सत्याग्रह हुआ, उसको सरकार ने गंभीरता से लिया और सब कामों को पूरा किया था। लेकिन 2014 के बाद गंगा के लिए जितने भी अनशन और सत्याग्रह हुए हैं, उनको एक भी सरकार ने नहीं सुना। उसका परिणाम यह हुआ कि जी डी अग्रवाल (स्वामी सानंद) को 118 दिन की तपस्या करके अपने प्राण देने पड़े। मैं यहां बहुत बार आया। उत्तराखंड जलबिरादरी की अध्यक्षा वीणा चौधरी ने बहुत कार्यक्रम आयोजित किए थे। अभी हम लोग स्वामी जी की स्मृति की इस यात्रा में बहुत घटनाक्रम याद आ रहे हैं। स्वामी सानंद जी को इस सरकार ने धोखा दिया। यह धोखा सिर्फ सानंद जी को ही नहीं बल्कि गंगा जी को भी दिया है। धारी देवी के बाद गंगा जी सड़क के साथ ऊपर से आ रही है। श्रीनगर का बांध बनने के कारण गंगा जी का जल स्तर सड़क के ऊपर बहता दिख रहा है। यहां एक पुल है, जो इस बार गंगा जी के पानी का स्तर बढ़ा और यह बांध टूट गया है। तभी से यहां टूटा पड़ा है। यह विकास का विस्थापन और विनाश है।
अभी यात्रा के दौरान बहुत ही बड़ा पुल देख रहा हूँ लेकिन वह एक साल भी चल नहीं पाया और पानी के बहाव में टूट गया। अर्थात् जब हम यह जो छोटे काम छोड़ देते हैं और बड़े प्रोजेक्ट बनाते हैं, तब ऐसा ही होता है। यह बडे प्रोजेक्ट बड़े लोगों के काम के होते हैं और छोटे प्रोजेक्ट छोटे लोगों के काम के होते हैं। आजकल हम छोटे काम छोड़ते जा रहे हैं और बड़े प्रोजेक्ट चला रहे हैं। यदि यहां देखें तो जो सैकडों साल पहले छोटा पुल बना है, वह चालू है और बड़ा टूट चुका है।
इसके बाद यात्रा ने रुद्रप्रयाग पार किया। हम जानते हैं कि रुद्रप्रयाग में मंदाकिनी, अलकनंदा में आकर मिलती है। इस देवप्रयाग से बद्रीनाथ यात्रा में पांच प्रयाग है। प्रयाग का अर्थ होता है कि जहां दो नदियों के मिलने से उनके जल की गुणवत्ता में बढ़ोतरी होती हो। एक नदी का जल कुछ रोगाणुओं को नष्ट करता हो, लेकिन दो नदी के जल मिलकर उससे दोनों के योग से भी ज्यादा गुणकारी हो, उसके जल की विशेषता बढ़ जाए तो उस स्थान को प्रयाग कहते हैं। जैसे अलकनंदा में पांच प्रयाग है- विष्णुप्रयाग, नंदप्रयाग, रूद्रप्रयाग, कर्ण प्रयाग, देवप्रयाग।
इसके बाद यात्रा जब गोचर पार कर रहे थे, मुझे बहुत अच्छे से याद आ रहा है कि जब पहली बार 1995 में सुंदरलाल बहुगुणा और हम सब गलता से गंगोत्री यात्रा कर रहे थे तब बद्रीनाथ भी गए थे। तब यहां के गोचर में एयरपोर्ट बन रहा था। इसके विरोध में हम सभी ने सत्याग्रह किया था। अब यह एयपोर्ट का बनना रूक गया है। गोचर एक तरह से रुद्ध प्रयाग जिले का बहुत खास केन्द्र है। 1995 में यहां के लोग एयरपोर्ट के लिए जमीन नहीं देना चाहते थे क्योंकि बहुत अच्छी खेती होती थी। इस लिए जब संगठित मन से लोग खड़े होते हैं तो कोई भी सरकार हो फिर भी लोगों को कामयाबी मिलती है।
यात्रा में सुबह से ही वर्षा हो रही थी, जब हम ऋषिकेश से चले तब पानी में भीगते हुए और अभी हम गोचर कमेड़ा थे। यह चमोली जिला है, बद्रीनाथ मार्ग एनएच 7 इस पर बारिश हो रही थी। यहां कई जगहों पर लैंड सिलाइड़ भी हुआ है। काफी कठिन रास्ता से चलते हुए कर्ण प्रयाग पहुंचे। यहां अलकनंदा में पींडर नदी आकर मिलती है। अभी फिर से अलकनंदा में उनकी तरुणाई दिख रही है। जब हम लोग यहां का पुल पार कर रहे थे, तब पिडंर नदी अभी बहुत सुंदर दिख रही है। इस नदी में तेज प्रवाह है।
जब हम लंगासू पार कर रहे थे, तब यहां पर ट्रक, ट्रैक्टर खड़े थे और अलकनंदा जी का विनाश कार्य चल रहा है। उसके बाद हम पीपलकोटी की तरफ बड़े। पीपलकोटी एक ऐसा प्रोजेक्ट है जिसमें 2013,2018 और 2019 में भयानक बाढ़ आई थी और पूरे का पूरा इलाका ध्वस्त हो गया था। इस प्रोजेक्ट को रूकवाने के लिए हम लोगों ने सतत् आंदोलन किया था लेकिन सरकारों से बन नहीं सका। सरकार ने देश का बहुत पैसा बर्बाद किया। यहां से चमोली पहुंचते-पहुंचते बहुत अंधेरा हो गया था, बारिश भी हो रही थी, पहाड़ दिरक कर कई जगहों पर गिर रहे थे और सड़क बहुत रिस्की हैं। यहां का नवनिर्माण बहुत भयानक है। देर रात यात्रा अपने गंतव्य स्थान पांडुकेशर पहुँची।
*लेखक जलपुरुष के नाम से विख्यात पर्यावरणविद हैं।