20 जून 2024 को विश्व शरणार्थी दिवस है। 4 दिसंबर वर्ष 2000 को विश्व शरणार्थी दिवस घोषित हुआ था। वर्ष 2001 में पहला विश्व शरणार्थी दिवस मनाया गया। यह संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 1951 कन्वेंशन विश्व की स्टेट की 50वीं वर्षगांठ के रूप में चिन्हित किया था। यह दिवस जो लोग लाचार, बेकार ,बीमार होकर या डरकर अपना घर मजबूरी में छोड़कर भटकते हुए दूसरे देशों में जाते हैं या युद्ध के कारण जाते हैं, उनको सरकार द्वारा रिफ्यूजी स्टेटस मिलने से सरकारें आश्रय दे देती है। लेकिन जो शरणार्थी जलवायु परिवर्तन के कारण उजड़कर जाते हैं, उनको यह सुविधा नहीं मिलती। जबकि आज सबसे ज्यादा संख्या जलवायु शरणार्थियों की ही है।
अभी तक हम केवल युद्ध शरणार्थियों को जानते थे, जो आपसी लड़ाई-झगड़े और विवादों के कारण अपना देश छोड़ने को मजबूर होते थे। लेकिन अब नए तरह के शरणार्थियों की संख्या सबसे ज्यादा तेजी से बढ़ रही है। यह शरणार्थी पूरी दुनिया में फैल रहे हैं जिन्हें जलवायु परिवर्तन शरणार्थी कहा जाता है। इन्हें अंग्रेजी में क्लाइमेट रिफ्यूजी कहते हैं।
जलवायु परिवर्तन शरणार्थियों को संयुक्त राष्ट्र संघ ने अभी तक कोई लीगल शरणार्थी स्टेटस नहीं दिया है। इनकी सबसे बड़ी संख्या आज युद्ध के कारण नहीं बल्कि जलवायु परिवर्तन के कारण है। यह कुछ शरणार्थी लगभग सभी देशों में देखे जा सकते है जैसे रोहिंग्या, इथोपियन, सोमालियन। जलवायु परिवर्तन के कारण इनके देशों की धरती की धारक क्षमता खत्म हो गई है; अब उनकी धरती अपने लोगों को जल, जीवन, रोजी, रोटी जीविका और जमीर को प्रदान करने में सक्षम नहीं है। इसलिए लोग लाचार, बेकार, बीमार होकर देश छोड़ते हैं और जहां उन्हें जल, जीवन जीविका व जमीर का अवसर मिलता उस देश में आश्रय ले लेते हैं। ऐसे लोगों को वो देश अपने ऊपर बोझ मानने लगते हैं। इसलिए उन्हें किसी देश में आश्रय नहीं मिलता जबकि युद्ध से विस्थापित शरणार्थियों को राज्य आश्रय मिल जाता है, परंतु इनको राज्य आश्रय भी नहीं मिलता। इसलिए आज ऐसी शरणार्थियों से पूरी दुनिया त्रस्त है।
भारत में भी मलेशिया, बांग्लादेश, पाकिस्तान, श्रीलंका, नेपाल आदि देशों से शरणार्थी आते रहते हैं। हमारे देश में लगभग 20 लाख रोहिंग्या बताये जाते हैं। इन शरणार्थियों के कारण देश की आर्थिकी, पर्यावरणीय और सामाजिकी, सांस्कृतिक और सभ्यता पर बुरा असर पड़ता है।
यह शरणार्थी जल संकट के कारण अपना देश छोड़ने को मजबूर हुए हैं, जैसे सोमालिया, इथोपिया, केन्या, सूडान, साउथ सूडान आदि।
20 जून को पूरी दुनिया में शरणार्थी दिवस मनाते हैं क्योंकि उनकी समस्याओं का स्थानीय, स्थाई समाधान मिल सके, लेकिन जलवायु शरणार्थियों के लिए विचार नहीं हो रहा है। हमें ऐसे अवसरों पर उनके स्थाई समाधान ढूंढने पर विचार करना चाहिए। मिसाल के तौर पर राजस्थान में ऐसे शरणार्थी जो लाचार, बेकार, बीमारी के कारण मजबूर होकर गांव से शहरों में चले गए थे, वो वहां स्वयंसेवी संस्था तरुण भारत संघ और स्थानीय ग्रामीणोंके प्रयास से पानी दोबारा उपलब्ध होने पर वापस अपने गांव में आ गए। उनका पलायन रूक गया और अब वो अपनी जमीन पर रहकर अच्छी खेती करने लगे हैं। जिससे अपनी जरूरतों को पूरा करके सुख-शांति और आनंद से अपना जीवन जी रहे हैं। इसी तरह के जल, जंगल, जमीन संरक्षण के काम संयुक्त राष्ट्र संघ को दुनिया से उजड़ने वाले लोगों की उन्हीं की जमीन पर सभी राष्ट्रों के साथ संवाद करके, जीवन की जीविका संपन्न कार्य कराने के लिए प्रतिबद्ध होना चाहिए। तभी दुनिया में सही शरणार्थी दिवस मनाने का लक्ष्य पूरा होगा।
*जलपुरुष के नाम से विख्यात जल संरक्षक