जमुना (यमुना) को जानना है तो यमुना घाटी की मिट्टी, खनिज, भूजल की उपलब्धता, तापमान, वाष्पीकरण, भौगोलिक वर्गीकरण, भूतल, वर्षा, जलग्रहण, सिंचाई, पानी का निष्कासन, पानी का उपयोग, भूमि का उपयोग, खादर और बाढ़ क्षेत्र, बाढ़ का प्रकोप, भूकंप का प्रकोप, फसलें, वन, जीव-जंतु, वनस्पति, पेड़-पौधे, घरेलू प्रदूषण, कृषि प्रदूषण, औद्योगिक प्रदूषण, नदी से संबंधित सरकारी एजेंसियां, सतलुज-यमुना नहर, दिल्ली में जमुना, नदियों से लोगों का लगाव, सरकार की नीति एवं सोच, स्थानीय निकायों की भूमिका आदि की जानकारी करनी होगी, समझ बढ़ानी होगी।
यमुना नदी घाटी में कछारी, मध्यम काली, लाल काली मिश्रित, गहरी काली, लाल एवं पीली, भूरी पहाड़ी, लाल बलूई तथा थोड़ी चूनेदार मिट्टी पाई जाती है।
खनिज के मामले में यमुना नदी घाटी धनी नहीं है। सीमित ही खनिज उपलब्ध है। चूना का पत्थर मसूरी हिल्स एवं राजस्थान में, पत्थर की खदान दिल्ली, झांसी, राजस्थान एवं मध्य प्रदेश में पाई जाती है। उदयपुर और खेतड़ी में तांबे खदान हैं। हीरा की खदानें पन्ना में है।
भूजल की उपलब्धता भी अलग-अलग क्षेत्र में अलग-अलग है। कहीं अच्छा, व्यापक भूजल है तो कहीं सीमित मात्रा में, तो कहीं बहुत ही कम तथा प्रतिबंधित है। कुछ क्षेत्रों में खारा एवं ब्रेकिश (सलाईन) पानी है।
तापमान पर नजर डालें तो सारे क्षेत्र में कमोबेश आमतौर पर लगभग एक जैसा ही मौसम है।मई में तापमान सबसे ज्यादा और दिसंबर- जनवरी प्रारंभ में सबसे निम्न स्तर पर रहता है। देहरादून, शिमला की बात अलग है। पहाड़ी क्षेत्रों को छोड़कर तापमान आमतौर पर 5° सेल्सियस से 42° सेल्सियस के बीच रहता है।
जमुना नदी घाटी में वाष्पीकरण भी सामान्यता एक जैसा ही पाया जाता है। दिसम्बर-जनवरी में निम्नतम तथा मई के आसपास अधिकतम होता है। फरवरी से बढ़ने लगता है, और वर्षा के साथ कम होने लगता है। सितम्बर-अक्तूबर में फिर हल्का बढ़ता है। अलग-अलग क्षेत्र में वाष्पीकरण 200 मी.मी. से 450 मी. मी. तक होता है। शिमला में निम्नतम तथा उज्जैन में अधिकतम वाष्पीकरण होता है।
भौगोलिक वर्गीकरण को देखते है तो पहाड़, छोटी पहाड़ी, पठार (फुट हिल्स एवं प्लेटू क्षेत्र), समतल एवं घाटी है। समुद्र तल से 600 मीटर से ज्यादा ऊंचाई 11,700 कि.मी. पहाड़ी क्षेत्र, 300 से 600 मीटर तक 1,72,917 कि.मी. छोटी पहाड़ी, पठार क्षेत्र तथा 100 से 300 मीटर 1,61,231 कि.मी. लगभग समतल एवं घाटी क्षेत्र है।
यमुना भूतल स्तर अलग-अलग स्थानों में बहुत अंतर रखती है। एक ओर समुद्र तल यमुनोत्री में 6,320 मीटर ऊंचाई पर है तो दूसरी ओर प्रयागराज, इलाहाबाद में जहां गंगा से संगम होता है वहां समुद्र तल से 100 मीटर ऊंचाई है। मोटेतौर पर तीन हिस्सों में बांट सकते है। पहाड़ी, छोटी पहाड़ियां एवं पठार तथा समतल एवं घाटी। इसमें चंबल के बीहड़ों का भी क्षेत्र पड़ता है।
वर्षा का औसत भी यमुना नदी घाटी क्षेत्र में भिन्न-भिन्न स्थानों पर अलग-अलग है। अधिकतम वर्षा 1600 मि.मी. तथा इससे भी अधिक सोलन, वाया सिरमौर, टिहरी पट्टी में होती है। कहीं 1000, 800 से 400 मि.मी. तक होती है।
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यमुना से सिंचाई के लिए पूर्वी-पश्चिमी यमुना नहरों के माध्यम से ताजेवाला से 6 बिलियन क्यूबिक मीटर (बीसी एम) पानी लिया जाता है। साथ ही बिजली पैदा करने, सिंचाई करने तथा पीने के पानी की व्यवस्था करने के लिए यमुना के पानी को मोड़ा, बदला, रोका भी जाता है, उसकी राह बदली जाती है।
यमुना से उद्योगों तथा शहर, बस्ती के लिए जो पानी लिया जाता है उसका सारा पानी तो नहीं मगर बड़ी मात्रा में पानी गंदगी, कचरा, खराब पानी के रूप में यमुना में ही वापिस मिल जाता है, जो यमुना को प्रदूषित करता है।
यहां कृषि योग्य और कृषि के अयोग्य दोनों तरह की भूमि है। वन क्षेत्र भी है। खदानें, उद्योग, मानव बस्ती, यातायात, सड़क एवं अन्य शहरी कार्यों में दोनों तरह की भूमि का प्रयोग किया जा रहा है। कुछ क्षेत्रों में कृषि भूमि समाप्त प्रायः हो गई है। भूमि पर दबाव बढ़ता जा रहा है। जमीन का प्रयोग तेजी से बदल रहा है। यमुना खादर पर कब्जा, निर्माण बढ़ता जा रहा है। यमुना को चारों ओर से भयंकर रूप से घेरा जा रहा है।
क्षेत्र में फसलें कम पानी की बाजरा, मक्का, जौ, मटर, चना, दालें आदि हैं तथा अधिक पानी वाली गन्ना, गेहूं, चावल आदि हैं। सिंचाई भूतल जल का प्रयोग कुएं, ट्यूबवेल से तथा नहर के पानी से। मानसून अलग है। पानी की कमी की पूर्ति के लिए गंगा नहर, गंगा -गंगा नदी घाटी क्षेत्र से पानी लिया जाता है। हरियाणा को भाखड़ा से भी पानी मिलता है। पानी की आवश्यकता एवं किल्लत दोनों बढ़ती जा रही है।
क्रमश: