रविवारीय: नवाब आसफ-उद-दौला की बिबियापुर कोठी
18 वीं सदी के अंत में अवध के नवाब आसफ-उद-दौला ने न्यू क्लासिकल शैली में एक बेहद खूबसूरत दो मंज़िल की इमारत अपने और अपने परिवार के विश्राम करने के लिए बनवाई थी जो आज अपने हाल पर आंसू बहा रही है। कल तक यहाँ महफिलों का दौर होता था, शामें सजतीं थीं और रातें रंगीन हुआ करती थीं। शाम ढलते ही कोठी क्या पूरे आसपास का माहौल जीवंत हो उठता था। नवाबों ने इस शाही भवन का उपयोग अपने और अपने परिवार के विश्राम करने के अलावे अपने कुछ चुनिंदा यूरोपीय अतिथियों के स्वागत – सत्कार हेतु किया था।
आज अपने पुराने अतीत को याद कर गौरवान्वित ज़रूर होती है, पर एक कूहक सी उठती है।
एंटोनी पोलियर द्वारा डिजाइन की गई यह इमारत आसिफ़ के स्वामित्व वाली अन्य इमारतों की तुलना में बेहद ही बेहतर ढ़ंग से सुसज्जित थीं – नवाबों के शहर लखनऊ की एक और ऐतिहासिक इमारत जो आज़ भले ही शांति पूर्वक खड़ी हो अपने बदहाली पर आंसू बहा रही हो, पर उसने एक बहुत अच्छा दौर देखा था।
” कल चमन था आज एक सहरा हुआ देखते ही देखते यह क्या हुआ। “
गोमती नदी के दाहिने तट पर, नगर के दक्षिण-पूर्वी भाग में स्थित शाही भवन बिबियापुर कोठी को जनरल क्लॉड मार्टिन के निर्देशन में तैयार किया गया था। यह भवन एक आयताकार तल-विन्यास में लाखौरी ईंटों और चूने के मसाले द्वारा निर्मित है तथा इस पर चूने का मोटा पलस्तर किया गया है। यह दोमंजिला भवन कहने को तो एक साधारण सा भवन है, परंतु इसकी रूप-रेखा बेहद ही आकर्षक है। इस भवन में विस्तृत कक्ष, शहतीरों एवं कड़ियों युक्त ऊंची छतें, घुमावदार सीढ़ियां तथा भव्य दोहरे स्तम्भ इत्यादि हैं। भू तल पर स्थित एक कक्ष को नीली व सफेद टाइलों द्वारा सुरूचिपूर्ण ढंग से सज्जित किया गया था, पर आज़ कहीं नहीं दिखाई देता है।
नवाब आसफ-उद-दौला की मृत्यु के पश्चात यहां सन् 1797 ई0 में आयोजित एक दरबार में सर जॉन शोर ने सआदत अली खां को सिंहासन का वैध उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था । सन् 1856 ई० में अवध का विलय हो जाने के पश्चात इस स्थल का विभिन्न उत्सवों आदि के लिए उपयोग अंग्रेजो, विशेष रूप से सैन्य आधिकारियों द्वारा किया जाने लगा। मुख्य भवन के उत्तर में स्थित कक्षों का उपयोग सम्भवतः सेवकों, परिचरों द्वारा किया जाता रहा होगा।
नवाब आसफ-उद-दौला की मृत्यु के बाद हुई एक महत्त्वपूर्ण घटनाक्रम में इस इमारत में वज़ीर अली खान को बंदी बना लिया गया था।
सन् 1917 में संरक्षित घोषित यह शाही इमारत आज़ अपने जीर्ण शीर्ण अवस्था में है। इसकी देखभाल हालांकि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग करती है, परन्तु जिस जगह पर यह शाही भवन स्थित है वो सेना के नियंत्रण में है और आप वहां उनकी इजाज़त के बगैर नहीं जा सकते हैं।