रविवार पर विशेष
रमेश चंद शर्मा*
शादी विवाह, काज या किसी बड़ी दावत, समारोह पर जब लड्डू बांधने का काम होता तो स्कूल के बच्चे बुलाए जाते। बच्चों के लिए सुनहरा अवसर होता पढ़ाई-लिखाई से बचने, कुछ मौज मस्ती करने, मौका मिलने पर लड्डू पर हाथ साफ करने। इसका स्वाद लेने के लिए तेज तर्रार बच्चों के पास कुछ अनूठे नुस्खे भी होते या तुरंत बना लेते।
लड्डू बांधने का काम समूह में होता पीतल की बहुत बड़ी बड़ी परातें जिसके गोल घेरे के आसपास दस पन्द्रह बच्चें बैठकर लड्डू बंधाई करते। कुछ बच्चें दोनों हाथ से बांधते, तो कुछ गीने चुने एक हाथ से ही लड्डू बांध सकते उनकी गति तेज होती। कुछ बड़े लोग इतने विशेषज्ञ होते कि एक हाथ से दो अर्थात दो हाथों से चार लड्डू बांधने की कला में निपुण होते। ऐसे मौके पर हंसी मजाक भी बीच बीच में होती रहती।
आस-पड़ोस, मौहल्ले में शादी विवाह का कार्यक्रम आता तो जवानों बच्चों की बांझे खिल जाती। काम सीखने, करने, अपनी कुशलता दिखाने का मौका मिल जाता। इनकी तैयारियां कई बार महिनों पहले शुरू हो जाती।
सामान की खरीद फरोख्त, उसकी सफाई, कुटाई, पीसाई, बनवाई में आस-पड़ोस मौहल्ले के सभी शामिल होते। महिलाओं का ज्यादातर काम सामूहिकता, साझापन में होता और वो भी गीत संगीत के साथ। कपड़े सीने के लिए दर्जी कई दिन के लिए पहले से बैठ जाता। सबके लिए कपड़े तैयार होते। सफेद के बजाए पट्टीदार पैजामा, पायजामा ज्यादा पसंद किया जाता, नीकर या पैंट के लिए मक्खनजीन का।
बाल संवारने के लिए नाई आता। चप्पल जूतियां तो गांव में ही तैयार होती थी। मगर फैशनबल जूते-चप्पल के लिए बाजार, शहर जाना होता।
टैंट हाउस का चलन गांव में नहीं पहुंचा था। हलवाई, शामियाना, सजावट, झंडी, गेट, भोजन बनाने, खिलाने, साफ सफाई सभी में सभी शामिल रहते। सजावट के लिए घरों से वस्त्र इकठ्ठा करना, पेड़ों के पत्ते, फूल, टहनियां लाना, रंगीन कागजों को काट कर झंडी बनाना। बारातियों के लिए घर घर से पलंग, चारपाई मांग कर लाई जाती। मौसम अनुसार बिस्तर एकत्र करते दरी, चद्दर, तकिया, रजाई आदि।
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गांव किसी के यहां से शामियाना, किसी के यहां से बड़ी बड़ी कढाईयां, पीतल कांसे की बड़ी टंकियां, कुंड, धामे, सागदान, बाल्टियां, पैट्रोमैक्स गैस लालटेन, तख्त, चोकियां आदि इकठ्ठा करते। सबकी सूची बनती। नाम लिखते, पहचान बनाई जाती।
काफी दौड़ भाग, हलचल रहती। बारात तीन चार दिन की होती। जिसमें हर रोज अलग-अलग नेग चार, रश्मों रिवाजों, कार्यक्रमों का आयोजन होता।
बारात का पहला स्वागत-सत्कार गांव की सीमा पर किया जाता। जिसमें कुछ प्रमुख लोग जाते। बरातियों और घरातियों के लिए अलग-अलग रश्मों रिवाज बने हुए थे। जिनका पालन करने में तरह-तरह की व्यवस्था बनाई जाती। दूल्हें को दूध पिलाना, गौरवा, द्वार पूजन, तोरण चटकाना, आरता, तोरण, बंदरवार बांधना, गांव में जुलूस निकालना, गीत, भजन, नाच गाना, मढ़ा पूजन, तनी बांधना, खांड पूडा, फेरे, लुढकन, थापा मारना, सींठने देना गीतों में ताने, व्यंग्य, गालियां दी जाती, सुहाग थाल, जंवाई भोज, पलंग बिछाई, पट्टा फेर, विदाई, पहरावनी, मिलनी, परिचय, जैसे कितने ही रीति-रिवाजों का पालन होता। नेगचार में ही खूब समय जाता।
सर्दी के मौसम में नहाने के लिए गर्म पानी बड़ी कुण्ड, कढ़ाई, बर्तन में तैयार रहता। साथ में सरसों, आंवले का खुशबूदार तेल, नहाने और कपड़े धोने का साबुन रहता। बाल संवारने के लिए नाई, शीशे कंघे का, जूते पोलिश का भी इंतजाम रहता। खेलने के लिए ताश। कुछ बारातों में भजन मंडली, नाचने गाने वालों का प्रबंध रहता। अपनी अपनी हैसियत के अनुसार बारातियों को लाने ले जाने की व्यवस्था की जाती। नजदीक होने पर अनेक बाराती पैदल-पैदल चलकर ही पहुंच जाते, एक दो साइकिल पर। बारात के लिए बैलगाड़ी, ऊंट गाड़ी, बहल, रथ, घोड़ा, ऊंट, जीप, बस, मोटरसाइकिल और बाद में ट्रैक्टर ट्राली, कार, ट्रक आदि का प्रबंध किया जाता। बस की छत पर दहेज का सामान लादा जाता। कोई ट्रक का भी इंतजाम करते।
दहेज में अगर लड़के को सोने की चेन, अंगूठी, रेडियो, साइकिल मिल जाती तो कहा जाता अच्छा विवाह हो गया। बारातियों को गिलास रुपया मिलता। इससे ज्यादा मिलने पर बहुत ही जोरदार विवाह कहा जाता। बहुत तगड़ी आसामी होने पर चांदी के सिक्के धडियों में तोले जाते एक धडी का मतलब पांच सेर।
नाश्ता भोजन आदि की व्यवस्था क्षेत्र, इलाके, मौसम,ऋतु के अनुसार होती। कभी कच्ची रसोई, अलग-अलग घर में, कभी चावल दाल, हमारे क्षेत्र में चावल दाल से पहले घी बूरा, बूरा घी, खांड (मीठा) दिया जाता, चावल के साथ घी परोसा जाता, जैसी व्यवस्था उतना घी, घी की कमी होने पर घी के छींटे ही लगते। घी की अच्छी व्यवस्था होने पर घी गंगा सागर से भी परोसा जाता था।
कभी सीरा अर्थात आटे का हलवा, हलवा सूजी का, लापसी आटे की कम घी में बनती जिसके ऊपर से घी दिया जाता, खीर पूरी, मीठे-मीठे चील्ले, बेसन के नमकीन चील्ले वे भी तरह-तरह के, कभी मिठाईयों का दौर, लडडू जलेबी, बर्फी तरह-तरह की, रसगुल्ले, गुलाब जामुन, पेठा, तरह-तरह के नमकीन, जितना बड़ा नामी गिरामी घर उतनी ही ज्यादा मिठाईयों के प्रकार। दावत के समय शर्त्ते लग जाती कौन कितनी ज्यादा मिठाई खा सकता है। इस पर इनाम घोषित होते, हार-जीत का फैसला, इज्जत, प्रतिष्ठा, सम्मान का प्रश्न बन जाता।
अपन ने अपने हाथों से पच्चीस चौकड़ी लड्डू, पच्चीस चौकड़ी जलेबी खिलाई हैं। कभी कभी दूध या किसी और मिठाई, रसगुल्ले पर बाजी लग जाती।
सब्जी में सीताफल जिसे पेठा, कोला भी कहते, सांगरी/ सींगरी, गाजर-मूली, ककड़ी, गंवार फली, भिंडी, तौरी, घीया, सेम फली, पकोड़ी की कढ़ी, गट्टे, टैट/ कैर, आलू, गोभी, मटर, कैरी कच्चा आम, अलग-अलग तरह की दाल, तरह-तरह का रायता, अचार में आम, नींबू, मीर्च, टैट/कैर, लसुडा/लेहसुवा आदि। तरह-तरह की चटनी धनिया, पौदिना, अमचूर, ईमली, मेथीदाना, आम आदि।
न्यौते के भी कई प्रकार, उसी के आधार पर न्यौता दिया जाता। नाई घर घर जाकर, मौहल्ले में आवाज लगाकर न्यौता देता। घरपती, पगहिचालते, परिवार का न्यौता, चूल्हा न्यौत। घरपती में प्रत्येक घर से एक एक व्यक्ति। पगहिचालते में जो चलकर जा सके, जो पहुंच सके। परिवार में सभी परिवार के सदस्य। चूल्हा न्यौत में परिवार के साथ जो घर में मेहमान भी हो वह भी शामिल।
कई कई दिन की बारात के कारण एक दूसरे के रिश्ते नातों से गहरी जान पहचान बन जाती। आपसी रिश्ते नातों के बारे में खुलकर बातें होती। अनेक बार इन्हीं बातचीत में रिश्ते तय हो जाते। या रिश्तेदारी की नींव पड़ जाती। एक दूसरे से गहरी जान पहचान बन जाती जो जीवन भर निभाई जाती। सामाजिक समरसता के दरवाजे खुलते। बारात में विभिन्न जाति के लोगों के रहने के कारण आपसी सहयोग सहकार सदभावना सौह्रार्द साझापन की समझदारी को मजबूती मिलती।
*लेखक प्रख्यात गाँधी साधक हैं।