– डॉ राजेंद्र सिंह*
निंग्बो: चीन के झेजियांग प्रोविंस का निंग्बो शहर तीन प्रकार की नदियों से घिरा है। उत्तर दिशा से आने वाली योंग नदी, दूसरी छोटी नदी फेंग्हुआ यह दोनों मिलकर, युयाओ नदी बनाती हैं। यह तीनों नदियां पहाड़ी क्षेत्रों से आकर पूरे शहर के अंदर से गुजरती हुई समुद्र में मिल जाती है। इन नदियों को सरकार ने दोनों तरफ तट बांधो में बांधने की अच्छी कोशिश की है और नदी के क्षेत्र को खुला रखा है। बाढ़ क्षेत्र को बांधा नहीं है। चीन के इस इलाके में बाढ़ न के बराबर आती है। यहां के विकास ने विस्थापन और बिगाड़ तो किया है लेकिन उतनी मार लोगों पर नहीं है। बहुत व्यवस्थित करने का प्रयास किया है। यहां भौतिक साधन बहुत अधिक दिखते हैं और इन साधनों से लोगों के अंदर जीवन, जीविका पहले से बेहतर हुआ है।
यहाँ की प्रमुख योंग या योंगजियांग नदी के किनारे बसे निंग्बो में यह पता चला कि चीन ने यहाँ नदी के विकास के लिए पश्चिमी मॉडल ही अपनाया है। लेकिन पहले नदी की जमीन को सीमांकन, चिन्हीकरण और राजपत्रितकरण किया है। जिसके कारण यहां की नदियां अतिक्रमण मुक्त रही है। नदी के दोनों तरफ बहुत विस्तार से नदी क्षेत्र को छोड़ा है। जब कभी बाढ़ भी आए तो इसका का दुष्प्रभाव शहर पर नहीं होता। यहां के शहर सीढ़ी नुमा है और बीच बीच में नदियों के किनारे घना जंगल लगा दिया है। यहां कुछ पुराने पेड़ भी देखने को मिलते है।यह बहुत अद्भुत है । हमारे यहां भी इस प्रकार के नदियों पर काम करने का प्रयास हुआ है, लेकिन ज्यादातर स्थानों पर नदी का स्वरूप बिगाड़ दिया, जिससे अब ज्यादा ही बाढ़ आने लगी हैं जैसे – मूला मोथा (पुणे), गोमती (लखनऊ), वैगाई (मदुरै), साबरमती (अहमदाबाद), आदि। लेकिन चीन के इस राज्य में नदी को, नदी की पूरी जमीन दी है तथा नदी का पर्यावरणीय प्रवाह बना कर रखा है। यह नदी बहुत साफ दिखाई देती है। नदी को बांध बनाकर, पानी रोका है लेकिन पूरा बांधा नहीं है। नदी के पर्यावरणीय प्रवाह का ध्यान रखा गया है। यह शहर के गंदे पानी को साफ करके, उद्योग के लिए इस्तमाल कर रहे हैं। यह शहर 1250 साल पुराना है। फिर नया शहर बनाया है और यहां के लोग एक होकर अपना नया देश बनाने का काम कर रहे है।
इसके बाद निंग्बो राज्य की इकोनॉमिक मैनेजर कैथी, पीआरओ और अन्य अधिकारियों के साथ लंबी बैठक हुई। जिस तरह से भारत में कलेक्टर होते है, यहां एरिया मैनेजर यांग ने प्रस्तुतिकरण करके, अपने इलाके की जानकारी दी।
निंग्बो के प्रबंधक ने कहा कि, हम “व्यापक टेलेंट” कार्यक्रम के अन्तर्गत दुनिया से युवाओं को लाते है। इनके लिए रहने की व्यवस्था और खूब पैसा देते है, जिससे उनके टेलेंट को दुनिया के लिए उपयोग कर सकें। निंग्बो इंडस्ट्रियल जोन भी है। गरीब देशों के युवाओं को यहां लाकर, इस हेतु सहमति बनी है कि, एक इंस्टीट्यूट का निर्माण करके, नए तरीके के वैज्ञानिक को लायेंगे।
इस देश से सीखने की जरूरत है कि, कैसे पूरे विश्व को चीजें पहुंचाता है और अपने यहां कम प्रदूषण करता है। यहां मैंने हजारों साल पुराने बड़े मंदिर देखे। इन मंदिरों को देखकर पता चलता कि जिस तरह से भारत में गुरुकुल होते हैं, वैसे ही यह मंदिर है। पुराने काल में यहां के गुरुओं का बहुत आदर, सम्मान था। जहां यह गुरु रहते थे, उस जगह को मंदिर कहते थे। एक प्रधान गुरु और 5 सहायक गुरु होते थे व एक बार में 180 विधार्थी शिक्षा लेते थे। यहां बहुत बड़ी बात है कि मंदिर के चारों तरफ सिर्फ शाकाहारी भोजन ही मिलता है। यह भोजन स्वास्थ्यवर्धक गुणवत्तापूर्ण होता है। यहां के लोग उतने कर्मकांडी धार्मिक तो नहीं हैं, फिर भी उन्होंने अपनी मर्यादा और आस्था को बचा कर रखा है। यहां के सभी भिखारी ही मंदिर में साफ-सफाई का काम करते है और जो काम नहीं कर पाते, उनकी सेवा करते हैं। इस दौरान पुरानी और नई शिक्षण पद्धतियों को देखा, समझा, जाना। इन्होंने बहुत कुछ पुरानी शिक्षा पद्धति से ही सीखा है। यह पहले सांस्कृतिक गांव था, अब यह आर्थिक गांव बन गया है।
*जलपुरुष के नाम से विख्यात जल विशेषज्ञ।