सैरनी से परिवर्तन 14: तब भोजपुर गाँव में बादल बरसते ही नहीं थे
– डॉ राजेंद्र सिंह*
एक समय था जब भोजपुर गाँव में बादल बरसते ही नहीं थे। भोजपुर गांव राजस्थान के मासलपुर तहसील से 7 किलोमीटर की दूरी पर उत्तर दिशा में स्थित है। यहां मासलपुर से चलकर बंद बरेठा को जाने वाली बेनर काकड़ नदी बहती है। नदी का उद्गम मासलपुर और ऊपर बसे गांव की पहाड़ियों से होता है। यह नदी हमेशा सूखी रहती थी।
भोजपुर गांव में सवा सौ परिवार निवास करते हैं। सभी का मुख्य व्यवसाय पशुपालन, कृषि और जंगलों से लकड़ी काटकर बेचना था। पानी की कमी के कारण कृषि और पशुपालन भी बहुत कम हो पाता था।
गांव के अमर सिंह पटेल कहते हैं कि उन्होंने इस नदी को पहले बहते हुआ देखा लेकिन बीच के दिनों में लोगों ने जब प्राकृतिक संसाधनों का दोहन किया, तो कुओं का पानी सूख गया तथा जंगलों को काटना शुरू किया। इस कारण बादल आते थे, लेकिन बरसते नहीं थे। उड़कर दूसरी जगह चले जाते थे। गांव में पानी का बहुत संकट खड़ा हो गया। यह नदी सूख गई तो लोग रोजगार और जीवन चलाने के लिए पहाड़ी के ऊपर चार माह रहते और दूध बेचने का काम करते हैं। उससे जो आय होती थी, उससे अपने परिवार का भरण पोषण करते थे।
पशुओं का भी पलायन होता था। यह पलायन मथुरा यमुना किनारे तक होता था। सभी लोग वर्षा होने पर वापस घर आते थे। इस जल संकट के बारे में उन्होंने तरुण भारत संघ के सदस्यों को बताया। तब उन्होंने गांव में आकर के लोगों को पानी संग्रहण करने के लिए तैयार किया और बैठकें करी और गांव में चार पोखर बनाने का काम किया।
पोखर का चयन सभी लोगों ने इस तरह से किया कि यह नदी हमेशा-हमेशा के लिए बहती रहे। अभी 4 जल संरचनाओं का निर्माण किया है, पहली मावईयों की पोखर, दूसरी कामरों की पोखर, तीसरी मावइयों की खिरकारी की पोखर और चौथी कोलहरे वाली पोखर। इन पोखरों के निर्माण से अभी नदी बारह माह बहती है। गांव में खूब खेती होती है। मवेशी को हरा चारा मिलता है। कुओं में पानी ऊपर दस फीट तक आ गया है।
गांव के नादान सिंह ने कहा कि गांव में पहले पानी बहुत कम था, तो वह दूध खरीद मासलपुर बाजार में बेचने का काम करता था। उसके पास दूध कम था इसलिए वो अधिक दूध बनाने के लिए दूध में रिफाइंड मिला देता था। एक दिन दूध की शुद्धी के टीम ने उसके दूध का सैंपल लिया, जिसमें दूध में कमी मिली। इस मामले में उस पर एफ आई आर दर्ज हुई थी। गांव में अभी पानी हुआ तो उसने दूध में रिफाइंड मिलाना छोड़ दिया। अभी उसके पास काफी दूध हो जाता है एवं खेती करता है। खेती में चारा हो जाता है तथा अब हम उसके परिवार का गुजारा हो जाता है।
गांव की राजेंद्र सिंह ने कहा कि, पहले जब पानी नहीं था, तो उसके पास 50 गाय थी एवं 20 भैंसें थी। उनको बहुत दूर हिंडौन के पास सूरोठ में चराने ले जाता। अभी पानी हुआ है तो घर पर ही रखता है और हरा चारा डालता है। अब वो ₹200000 का दूध बेच देता है और ₹100000 की खेती में फसल हो जाती है ₹50000 का गाय एवं भैंसों का खाद बेच देता है तथा घर को खाने के लिए देसी खाद में फसल करता है, जो स्वास्थ्य के लिए बहुत अच्छा रहता है।
बंटी ने कहा कि उसने पानी के अभाव में पढ़ाई बीच में छोड़ दी थी। पढ़ाई तो छूट गई लेकिन पानी आया है तो खेती होती है तथा पशु घर पर ही रहते हैं। घरवाले इस काम को अच्छे से कर लेते हैं तथा वो अब बीएसटी कर रहा हूँ।
हरिओम ने कहा कि पहले वो हैदराबाद मार्बल का काम करने के लिए जाता था। वहां पर मुझे ₹300 हर दिन मिलता था। घर से दूर रहने का बहुत दर्द रहता था लेकिन क्या करता, गांव में पानी नहीं था, तो कुछ रोजगार नहीं था। अब गांव में पानी आ जाने से घर पर ही खेती करता है और खेती से ₹300000 की सालाना आय कमाता है। परिवार के साथ रहता है तथा परिवार के सुख दुख का भागीदार बनता है।
गांव के लाखन सिंह ने बताया कि, गांव के चारों ओर जल स्रोतों में सिंघाड़े की खेती की जाती है, जिससे गांव को ₹200000 की सार्वजनिक आय सालाना हुई है। गांव में सार्वजनिक कामों में प्रतिवर्ष लगाने का काम किया जाता है। गांव में अब दिन-प्रतिदिन सुधार आता जा रहा है। गांव की जो जन समस्याएं थी, उनके निराकरण में यह पैसा लगता है जिससे उस समस्या का निराकरण होता रहता है।
भोजपुर गांव जैसा ही हाल मासलपुर से उत्तर की ओर 13 किलो मीटर की दूरी पर पहाड़ियों की तलहटी में ऊमरी गांव का था। इस गांव में पहले मात्र 50 बीघा जमीन पर खेती होती थी तथा रोजगार के लिए लोग बाहर मजदूरी करने के लिए जाते थे। गांव में ऐसा एक भी परिवार नहीं है, जिसमें से कोई सदस्य बाहर मजदूरी के लिए नहीं जाता हो। मजदूरी के अलावा पशुपालन भी था। पशुओं का चारे के अभाव में पलायन होता रहता था। यहां दो पोखर संजागिर की पोखर तथा शिव ताल के बनने के बाद गांव में पानी का प्रबंधन तो हुआ लेकिन पूरा समाधान नहीं हुआ।
इस संकट से निपटने के लिए तब पिटार का ताल बनवाया। तालाब बनने से गांव में पानी की पर्याप्त मात्रा हो गई। अब एक वर्ष वर्षा नहीं होने पर भी गांव में पानी का कोई संकट नहीं आएगा।
इस तालाब के बनने से सिंगपुर, जमूरा, चीलपुरा, टिमकोली तक नदी में पानी रहता है। अब इन गांवों के लोग खेती करते हैं। पहले एक ट्यूबवेल लगाने में ₹ 500000 खर्च होते थे पर फिर भी पानी नहीं मिलता था, अब यहां सभी कुओं और ट्यूबवेलों में पानी हो गया है। गांव के अमान सिंह ने कहा कि, पहले वे निठल्ले रहते घूमते रहते थे, कोई काम नहीं था। आज इतना काम है कि, कहीं आने-जाने की भी फुर्सत नहीं मिलती है। जवाहर सिंह ने कहा कि पहले उनकी दुकान बहुत कम चलती थी, अब दुकान में सौ क्विंटल गेहूं, सरसों आ जात है। मेरी दुकान अच्छे से चल रही है। बाबूलाल शर्मा ने कहा कि, पहले सिर्फ चने की खेती होती, अब तो मेरे गेहूं, सरसों और बाजरे की अच्छी खेती हो रही है। सब बहुत ही खुशहाल, अच्छे से रह रहे हैं।
*लेखक जलपुरुष के नाम से विश्व विख्यात जल संरक्षक हैं।
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