रविवारीय: बच्चों के साथ एक संवाद
– मनीश वर्मा ‘मनु’
बच्चों तुम बड़े ही खुशनसीब हो कि तुम आज़ के दौर के बच्चे हो। तुम्हारे लिए तो बस एक ही बात कहना काफी है। आकाश ही सीमा है। ज़िंदगी जीने के लिए बिल्कुल खुला आसमान है तुम्हारे पास। अवसरों की भरमार है। सामने दूर तक नज़र जाने वाली दृष्टि है। बस तुम्हें तय करना है कि तुम्हें क्या चाहिए। तुम्हारे पास बुद्धिमता और ज्ञान का भंडार। है। हमारे समय के बच्चों से तुम कहीं ज्यादा ज्ञान और बुद्धिमता रखते हो। तुम्हारा होराइजन कुछ ज़्यादा ही विस्तृत है।
पर, गड़बड़ी कहां हो रही है यह सोचने की बात है। सोशल मीडिया ने तुम्हें ‘बहुत कुछ’ दिया है। उड़ने के लिए एक विस्तृत आकाश दिया है पर, इसी ‘बहुत कुछ’ के साथ ही साथ उसने ‘कुछ’ ले लिया है। यह सब इतना हौले से होता है कि पता ही नही चलता कि कब बंद मुट्ठी से रेत फिसल गई।
अपनी बातों को, अपने दिल के उद्गार को व्यक्त करने के लिए कोई सार्थक प्लेटफार्म नही है तुम्हारे पास। फ़िर से वही कहीं न कहीं विश्वास की कमी। एक दूसरे के प्रति भरोसे का ना होना। दुनिया कहने को आज़ बहुत बड़ी दिखाई दे रही है पर, वास्तव में दुनिया सिमट सी गई है। कल संयुक्त परिवार हुआ करता था। कुछेक बुराइयों के बावजूद बच्चे एक सहारा महसूस करते थे। एक दूसरे पर विश्वास और भरोसा था।संयुक्त परिवार उनके सर्वांगीण विकास में सहायक होता था। बेतकल्लुफी की जिंदगी जीते थे। कब सुबह से शाम हुई, कुछ पता ही नहीं चलता था। वक़्त पड़ने एक दूसरे को मिल जुल कर सम्हालते थे।सुख- दुःख साथ बांटते थे।
बच्चे बहुत कुछ कहना और सुनना चाहते हैं पर, हम हैं कि बस अपनी ही कहते और सुनते रहे हैं। दरअसल , हमलोगों को भी विरासत में कुछ ऐसा ही मिला है। पर, जिंदगी हमेशा से ही सीखने और सिखाने का नाम है।
उनसे पूछिए, जिन्होंने संयुक्त परिवार में अपना जीवन गुज़ारा है, ज़रा उनसे बात करें। फ़र्क साफ़ दिखेगा। आज़ के बच्चे दायरा बढ़ने के बावजूद जीवन में अकेले पड़ गए । पर, समस्या कहां है ।यही तो सोचने की बात है। हमारे समय में हम लोग वर्चुअल वर्ल्ड में नहीं जीते थे। वर्चुअल वर्ल्ड क्या है पता ही नहीं था ।दुनिया तो बस आमने सामने की बात थी। झगड़ा भी किया तो आमने सामने। प्यार भी किया तो हमेशा आमने सामने ही।
टेलीविजन का ज़माना आया। पर कहां , वहां भी हम सभी सामुहिक रूप से बैठ कार्यक्रमों का आनंद उठाया करते थे। शुरूआती दौर में तो ऐसा होता था कि पुरे मुहल्ले में चूंकि दो चार टी वी सेट ही हुआ करता था सो सभी सामुहिक रूप से ही कार्यक्रम देखा करते थे। ऐसा नहीं था कि अकेले में बैठ हाथ में मोबाइल या फ़िर लैपटॉप पर नजरें गड़ाए अपनी दुनिया में मशगूल हो गए।
कहां था, तब फेसबुक और व्हाट्स ऐप या फ़िर ऑनलाइन? वर्चुअल नाम की तो कोई चीज ही नहीं थी। अपने सपनों से आगे निकल कर खुलकर सामने आते जाते थे। आज कहां !दुनिया बड़ी जरूर हो गई है पर, बच्चों तुम्हारी दुनिया इतनी सिमट गई है जहां तुम खुलकर अपनों से बातें नहीं कर सकते एक अविश्वास का वातावरण तो कहीं न कहीं रहता ही है।
पर,आज के बच्चों के कॉन्फिडेंस का जो स्तर है वो इतना बढ़िया है और उत्कृष्ट है कि पूछो मत। चीजों को समझने और सोचने की जो उनका नज़रिया है, जो परख है वो इतनी अच्छी है कि मन करता है काश मैं फ़िर से अपने बचपन में आ जाऊं अपने उन वर्षों के अनुभव के साथ और खुलकर साझा करूं अपनी तमाम तरह की बातें उनके साथ । फ़िर से खुलकर जीऊं। बड़प्पन और छुटपन की दीवार के परे उन्हें अपने साथ ले चलूं, उनके आभासी दुनिया से थोड़ा दूर, थोड़ी देर के लिए ही सही और उन्हें बताऊं कि जो अनुभव हम लोगों ने अपने बड़ों से, परिवार से और समाज से प्राप्त किया है वो किताबों और सोशल मीडिया की दुनिया से परे है। यह अनुभव आपके व्यक्तित्व में झलकती है। आपको एक बहुआयामी व्यक्तित्व का स्वामी बनाती है। आपकी प्रतिभा को निखारती है। उसे एक पहचान देती है।
बच्चों एक समय के बाद अब तुम्हारी पढ़ाई खत्म होने को है। अब इसके बाद तुम एक वैसी दुनिया में प्रवेश करने जा रहे हो जहां कोई तुम्हारा दोस्त , बैचमेट्स या फ्रेंड नहीं होगा।अब वह तमाम लोग जो तुम्हारी जिंदगी में आएंगे वह तुम्हारे सहयोगी होंगे । तुम्हारे जानने वाले होंगे, पहचानने वाले होगें पर वो सभी तुम्हारे बचपन के दोस्त, वो तुम्हारे बैचमेट्स से कहीं अलग होंगे। बिल्कुल ही अलग दुनिया , अलग ही माहौल होगा। तुम्हें बहुत सावधानी से अपने कदम रखने होंगे। एक- एक क़दम तुम्हें बड़े ही सावधानी से उठाने होंगे। यहां तुम्हारे उठते हुए हर क़दम की समीक्षा होगी। एक बार नहीं बार- बार होगी। शायद हर बार होगी। तुम्हें हर वक्त अपने आप को साबित करना होगा। तुम्हें हर वक्त तैयार रहना होगा। तैयारी से मेरा मतलब अलर्ट रहना होगा। विश्वास और अविश्वास के बीच एक झीना सा आवरण होगा। उस आवरण के दूसरी ओर देखना है या नहीं यह तुम्हें खुद तय करना है। वहां कोई अपना नहीं होगा तुम्हें रास्ता बताने के लिए। तुम्हारी शिक्षा, तुम्हारी बुद्धिमता और बड़ों से मिला ज्ञान और अनुभव ही तुम्हारे साथी होंगे। इन्हीं सब के सहारे तुम्हें आगे बढ़ना होगा। फिर भी कुछ समझ में न आए तो बस दो मिनट के लिए आंखें बंद करो और तब निर्णय लो। कुछ भी मुश्किल नहीं है पर इतना आसान भी नहीं।
दिल और दिमाग़ के बीच संतुलन बनाना होगा। कुदरत ने वैसे भी दिमाग़ को दिल के ऊपर स्थान दिया है।यह एक ऐसी दुनिया होगी जहां लोग तुम्हें हमेशा एक प्रतियोगी के रूप में देखेंगे। पर, यही वो दुनिया होगी जहां जीवन में तुम जो चाहो वो मुकाम हासिल होगा। सफलता पर दुनिया तुम्हारी क़दम चुमेगी। पर, असफलता से निराश नहीं होना है। यह तो सफल होने की पहली सीढ़ी है। जो दौड़ेगा वही तो जीतेगा या फ़िर गिरेगा। वो क्या ख़ाक जिंदगी का अनुभव ले पाएगा जिसने अभी चलना ही नहीं शुरू किया है।
वैसे भी जिंदगी के टेढ़े मेढे रास्तों पर जब आप चलना शुरू करते हैं और रास्ते में कोई कठिनाई नहीं आ रही होती है तो यकीन मानिए आप ग़लत रास्ते पर चल रहे हैं। विघ्न बाधाएं तो आनी ही है। आपको तो बिल्कुल उनके बीच से ही रास्ता बनाना है। ज़िंदगी ख़त्म होने तक ज़िंदगी रूकती नहीं है। अनवरत चलती ही रहती है। खैर!
Writeups on children of this age are rare. You have dwelt upon this topic very minutely and sensitively. Really the children of these times are very intelligent in terms of information of their syllabus and due to social media they have artificially matured befre time which is very dangerous not only for their career but also for their family.
Thank you
सामयिक सुंदर प्रस्तुति
अपने अनुभवों के आधार पर आज के बच्चों के जीवन स्तर पर आज के माहौल का चित्रण एवं वर्चुअल वर्ल्ड के गुण – दोषों को आंकती यह रचना सच्चाई का आईना दिखाने में बखूबी समर्थ हो रही है ।
Beautiful description of positive & negative points of virtual world.