ज्ञान वापी मस्जिद प्रकरण
– स्वामिश्रीः ‘१००८’ अविमुक्तेश्वरानंदः सरस्वती*
‘शनिवार को हम स्वयं करेंगे आदि विश्वेश्वर का पूजन’
वाराणसी: विगत वैशाख पूर्णिमा दिन सोमवार को काशी में शताब्दियों से तिरोहित श्रीविश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग के पुनःप्रकट होने से पूरे देश के सनातनधर्मावलम्बियों में ख़ुशी का माहौल है ।करोड़ों लोग प्रकट प्रभु के दर्शन-पूजन के लिये उत्सुक हैं और इसके लिए काशी की यात्रा करना चाहते हैं ।
शास्त्रों में प्रभु के प्रकट होते ही दर्शन करके उनकी स्तुति करने का, रागभोगपूजा-आरती कर भेंट चढ़ाने का नियम है ।कौशल्या जी के सामने श्रीराम के प्रकट होने पर कौशल्या जी द्वारा रामजी की स्तुति और देवकी जी के सामने कृष्ण जी के प्रकट होने पर देवकीवसुदेव के द्वारा स्तुति करने का वर्णन मिलता है ।इसी तरह उन्हें विविध पूजोपचार और भेंट चढ़ाने के वर्णन भी मिलते हैं।
प्रभु के प्रकट होते ही उनकी स्तुति पूजा, राग-भोग होना चाहिए था । परम्परा को जानने वाले सनातनियों ने तत्काल स्तुति पूजा के लिये न्यायालय से अनुमति माँगी जिनमें शृंगार गौरी और आदि विश्वेश्वर सम्बन्धित मुक़दमों के अनेक पक्षकारों सहित पूज्यपाद शंकराचार्य जी की शिष्याएँ अविरलगंगातपस्विनी साध्वी पूर्णाम्बा और शारदाम्बा तथा काशी विश्वनाथ मंदिर के महन्त परिवार के सदस्य भी थे । पर दुर्भाग्यवश न्यायालय ने इस मामले की गम्भीरता और एक आस्तिक हिन्दू के नज़रिये को नहीं समझा और आवेदनों की सुनवाई के लिए तारीख़ पर तारीख़ देते हुये अब 4 जुलाई की तारीख़ लगा दी है। जबकि पूजा और रागभोग एक दिन भी रोका नहीं जाना चाहिए ।
शास्त्रों में तो यह बात बताई ही गई है कि देवता को एक दिन भी बिना पूजा के नहीं रहने देना चाहिए । तदनुसार भारत के संविधान में भी यह स्पष्ट रूप से उल्लिखित है कि कोई भी प्राण प्रतिष्ठित देवता 3 वर्ष के बालक के समकक्ष होते हैं। जिस प्रकार 3 वर्ष के बालक को बिना स्नान भोजन आदि के अकेले नहीं छोडा जा सकता उसी प्रकार देवता को भी राग भोग आदि उपचार पाने का संवैधानिक अधिकार है। इसी कारण किसी भी मन्दिर की सम्पत्ति देवता के नाम पर होती है परन्तु उनकी सेवा के लिए सेवईत पुजारी आदि अनिवार्य रूप से नियुक्त होते हैं जो देवता की सेवा करते हैं। भगवान आदि विश्वेश्वर अब प्रकट हुए हैं अतः उन्हें राग भोग से वंचित करना संविधान के भी विपरीत है।
न्यायालय को चाहिए था कि एक अन्तरिम आदेश पारित करते हुये वे इस सन्दर्भ में कोई (अस्थायी ही सही) व्यवस्था बना देते । यदि उन्हें क़ानून व्यवस्था के बने रहने के सन्दर्भ में कोई डर था तो वे किसी एक व्यक्ति को नियुक्त कर सकते थे जो आस्तिक हिन्दू समुदाय की ओर से दी गई पूजा सामग्री श्रीविश्वेश्वर तक पहुँचा सकता था। या इसी तरह की कोई व्यवस्था बना देते।
इस सन्दर्भ में जब मध्य प्रदेश में स्वास्थ्य लाभ कर रहे पूज्यपाद अनन्तश्रीविभूषित उत्तराम्नाय ज्योतिष्पीठाधीश्वर एवं पश्चिमाम्नाय द्वारका शारदापीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती जी महाराज को बताया गया तो उन्होंने तत्काल मुझे यानि अपने शिष्य स्वामिश्रीः अविमुक्तेश्वरानन्दः सरस्वती को आदेश किया कि जाओ और आदि विश्वेश्वर भगवान् की पूजा शुरू करो।
भगवत्पाद आद्य शंकराचार्य द्वारा रचित मठाम्नाय महानुशासनम् के अनुसार उत्तर भारत का क्षेत्र ज्योतिष्पीठ का कहा गया है और इस समय ज्योतिष्पीठ पर हमारे पूज्य गुरुदेव स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती जी महाराज विराजमान हैं। ज्ञानवापी काशी में होने से इस क्षेत्र का धार्मिक उत्तरदायित्व पूज्यपाद ज्योतिष्पीठाधीश्वर के अन्तर्गत आता है। धर्म के क्षेत्र में शंकराचार्य का ही निर्णय सर्वोपरि होता है। अतः उनके आदेश का पालन समस्त हम सभी सनातनियों को करना चाहिए।
शास्त्रों में भगवान् शिव के अतिरिक्त अन्य ऐसे कोई देवता नहीं है जिनके सिर से जलधारा निकलती हो। जो मनुष्य सनातन संस्कृति को न जानते, भगवान् शिव के स्वरूप एवं उनके माहात्म्य को नहीं जानते वे किसी के शिर से पानी निकलते हुए देखकर उन्हें फव्वारा ही तो कहेंगे। मुसलमान लोग भगवान् शिव को नहीं जानते और न ही उनको मानते हैं। इस्लाम में देवता आदि की परिकल्पना दूर दूर तक नहीं है। ऐसे में वे सभी अबोध हमारे भगवान् शिव को फव्वारा नाम से कहकर स्वयं यह सिद्ध कर दे रहे हैं कि वे ही भगवान् शिव हैं। हमने इण्टरनेट पर मुग़लों की बनवाई इमारतों के अनेक फ़व्वारों को देखा पर एक भी शिवलिंग की डिज़ाइन का नहीं मिला। तब बड़ा प्रश्न उठता है कि आख़िर क्या कारण हो सकता है काशी में शिवलिंग के आकार का फ़व्वारा बनाने के पीछे? मानना होगा कि मुसलमानों के ज़ेहन में भी शिवलिंग के आकार का फ़व्वारा बनाने की बात नहीं आ सकती ।
हमारे शास्त्रों में स्थाप्यं समाप्यं शनि भौमवारे कहकर शनिवार को शुभ दिन कहा गया है। प्रकट हुए स्वयम्भू आदि विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग भगवान् के पूजन के लिए शनिवार का दिन अत्यन्त उत्तम है। अतः इस दिन शुभ मुहूर्त में हम स्वयं पूजा पद्धति को जानने वाले विद्वानों एवं पूजा सामग्री के साथ भगवान् आदि विश्वेश्वर के पूजन के लिए जाएंगे।
इस सन्दर्भ का 1991 का क़ानून न्याय के मूल सिद्धांतों के विपरीत है । इस समय केन्द्र की सरकार बहुमत में है। उनको चाहिए कि वे उपासना स्थल अधिनियम 1991 को तत्काल समाप्त करे ताकि हिन्दू पुनः अपने स्थान को ससम्मान प्राप्त कर सकें और न्याय हो।
*शिष्य प्रतिनिधि – ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती। प्रस्तुत लेख उनके निजी विचार हैं।