विरासत स्वराज यात्रा
– डॉ. राजेंद्र सिंह*
गौ पालन कोई अंधविश्वास का काम नहीं है
राजकोट के जल संकट समाधान हेतु सात अक्टूबर को गहन चिंतन हुआ। इस चिंतन में यहाँ के विधायक, सामाजिक कार्यकर्ता, वैज्ञानिक, पत्रकार आदि सभी शामिल हुए। इन सभी ने बहुत गहन चिंतन करके राजकोट को पानीदार बनाए रखने की विधि व जलवायु परिवर्तन के संकट पर समाधान की बातचीत करी। इस बैठक में मैंने कहा कि यदि इस धरती को पानीदार बना के रखना है, तो यहाँ की खेती को बाजारीकरण से मुक्त करके, प्रकृति के अनुकूल बनानी पड़ेगी। जैसी खेती पहले थी, उसमें फसल चक्र, वर्षा चक्र के साथ जुड़ा हुआ था। अभी फसल चक्र और वर्षा चक्र अलग-अलग हो गए है। इसलिए यहाँ का किसान केवल धरती के पेट से पानी निकालता जा रहा है, जिससे धरती यहाँ मैंने पहली बार सुना कि किसानों ने खेती करने के लिए 2200 फिट गहरे बोरबेल लगाकर रखे है। इतना मँहगा पानी, इतनी मेहनत से निकालना खेती के लिए अनुकूल नहीं है। इसलिए इन लोगों को नियम बनाना होगा कि हम जितना धरती के पेट से निकालते है, उससे ज्यादा धरती के पेट में डालेंगे। यदि इस नियम से बाहर रहकर काम होगा, तो राजकोट कभी पानीदार नहीं बन सकेगा।
राजकोट को पानीदार बनने के लिए धरती के लेने और देने के रिश्ते बराबर बनाने पड़ेंगे। वर्तमान में राजकोट के लोग धरती से ले ज्यादा रहे हैं और दे नहीं रहे हैं। 20 साल पहले जब मैं यहाँ आया था तब अकाल और बाढ़ की मार थी और सब तालाब बेपानी थे। अब इस नई तकनीक से 2200 से 2500 फिट तक के बोर-वेल लगाकर पानी दिख रहा है। लेकिन एक दिन यह गहरे कुएँ भी सूख जायेंगे, तब राजकोट कैसे जियेगा? इसलिए राजकोट को पानीदार बनाने के लिए योजना बननी चाहिए। राजकोट पानीदार हो सकता है, उसे केवल अपने पानी का अनुशासित होकर उपयोग करना चाहिए। यहाँ एक जल साक्षरता का अभियान चलाने की आवश्यकता है।
राजकोट के आस-पास की गौशालाओं को भी मैंने देखा। गोबर के खाद् और गाय के मूत्र से किस प्रकार से जमीन खेती के लिए उपयोगी और उपजाऊ बन रही है? इसे जानने के लिए यहां की गौ शाला में पहुँचा। यहाँ पर गौ-शालाओं से किसान समृ़द्ध बन रहे हैं। इसलिए दोबारा से राजकोट के आस-पास गौ-पालन की बहुत सी गौशालायें और गौ-पालन का काम शुरू हुआ है। यह अच्छे संकेत है।
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प्रकृति में गाय लेती कम है और देती ज्यादा है। गाय हमारी प्रकृति और मानवीय दोनों के लिए बहुत उपयोगी है। इसलिए गाय की पर्यावरणीय पारिस्थिति का मूल्य बहुत है। इसलिए गौ पालन को हमें बढ़ावा देना चाहिए। इस प्रकार से जो गौ पालन का चलन बढ़ रहा है, यह शुभ संकेत है। इनको आगे लेकर जाना चाहिए। गाय भारत की विरासत है। गाय को भारत के लोग माँ की तरह मानते है। तो गाय एक तरफ जीवन विरासत है, वही भारत की जीविका और जमीर है। गाय भारत का गौरव है, इसलिए उसका ठीक से पालन, पोषण और प्रबंधन करना आवश्यक है। हम गौ उत्पाद से अपनी जीवन-जीविका और जमीर को बना सके, वैसा गाय पालन में सोचने की जरुरत है।
गौ पालन कोई अंधविश्वास का काम नहीं है। यह बहुत ही वैज्ञानिक, सांस्कृतिक, पर्यावरणीय, भारतीय ज्ञानतंत्र, आर्थिक, सामाजिक सभी रूप से बहुत अनुकूल है, लेकिन इसको केवल परम्परागत अंधविश्वास और केवल पूजा करने से काम नहीं चलेगा। गाय की आरती और पूजा, गाय को सुखी और समृद्ध नहीं बना सकती, न ही जीवन को सुखी-समृद्ध बना सकती है। गाय की आरती-पूजा बंद करके, गाय का सम्मान सहित रक्षण, संरक्षण, पोषण करना होगा। गाय से जो भी प्राप्त हो रहा है, वह मानवीय जीवन के लिए सर्वोत्तम उपयोगी है। इसलिए उसको उस तरह से देखने की जरुरत है।
21वीं शताब्दी में गाय भारत और दुनिया दोनों के लिए पारिस्थिति और पर्यावरणीय महत्व का प्राणी है। यह कोई अंधविश्वास नहीं, यह तो सूझबूझ के साथ हमें हमें विश्वास पैदा करता है। गाय को हम अपनी आज की आर्थिकी और जीवन का वैज्ञानिक तरीके से आधार बना सकते है। जब वैज्ञानिक शब्द बोलता हूँ, तो उसका अर्थ वह विज्ञान है जो संवेदनाओं के साथ काम करने वाला होता है। जो सत्य को सर्वोपरी मानता है, ऐसा विज्ञान गौ-पालन में है। उसको उसी तरह से बढ़ाने की जरुरत है। मुझे खुशी है कि, राजकोट के आस-पास यह बढ़ रहा है।
*लेखक जलपुरुष के नाम से विख्यात पर्यावरणविद हैं। प्रस्तुत लेख उनके निजी विचार हैं।