– डॉ. राजेन्द्र सिंह*
हमारे यहां मानव ही सर्वोपरि मूल्य नहीं था। यह सभी जीवों की तरह प्रकृति का एक ही अंग मात्र है। इसलिए मानव के लिए प्रकृति ही सर्वोपरि मूल्य था।
मानव जीवन में गीता से लेकर भारतीय सभी शास्त्रों में दोहन की अनुमति है और शोषण नहीं करने का आदेश मिलता है।
किसान खेती में प्राकृतिक दोहन ही करता था, शोषण नहीं करता है। मिट्टी के पोषण हेतु निराई, खुदाई-गुड़ाई करता रहता है, जितना प्राकृतिक दोहन वह करता है। प्राकृतिक खेती में वह उतना पोषण करके ही फसल चक्र निर्धारण करके उत्पादन भी करता है। यही प्रक्रिया खेती कहलाती है। खेती प्राकृतिक संतुलन बनाये रखने वाली प्रक्रिया का नाम है।
आज खेती को कृषि उद्योग और कृषि व्यापार बनाने वाले तीनों कृषि कानून उद्योगपति और सरकारी समझौते ‘कानून’ के रूप में आये है। इन कानूनों को रद्द कराना किसानों का अहिंसक सत्याग्रह है।
किसान सत्याग्रह को तोड़ने के प्रयास हो रहे है। समाधान का रास्ता खोजना जरूरी है। हमने सभी को एक करने हेतु सात बार अलग-अलग स्तर पर प्रयास किये है। प्रयास आज भी जारी है।
साथ ही यह भी जानना ज़रूरी है कि जल के निजीकरण और व्यापारिकरण से कृषि प्रभावित हो रहा हो रहा है ।बेपानी भारत में विस्थापित होने की सम्भावना बढ़ रही है। सभी लोग पानी पीने और खेती के लिए खरीदकर जीवित नहीं रह सकते हैं। बड़ी कम्पनियां भारत के पानी को दूषित करके पानी का व्यापार बढ़ा रही है। पानी पर से भारतीयों के अधिकार खत्म हो रहे है। घर-खेत, जीवन-जीविका पर जल संकट आ गया है। चेतना का अभाव ही भारत में जल व्यापार बढ़ाकर भारत को बेपानी बना रहा है। स्वयं जल संरक्षण और प्रबंधन करके पानीदार भारत को बनाना है। सामुदायिक विकेन्द्रित जल प्रबंधन द्वारा ही भारत पानीदार बनेगा।
अब भारत भर में जवानों की बेरोजगारी बहुत बढ़ गई है। बढ़ती बेरोजगारी-बेपानी से भी जन्मी है। सरकार की बाजारू औद्योगिक विकास नीति अब जननीति नहीं रही है। सरकार और उद्योगपतियों ने मिलकर जलवायु, जीवन, जीविका और जमीन का संकट पैदा कर दिया है। बेरोजगारी चरम पर है। लाचार-बेकार व बीमार बनकर जवानी गांवों से उजड़ रही है। बेघर बन रही है।
किसानी पानी और जवानी से जुडे़ तीनों विषयों की चेतना जगाने में विश्वास रखने वाले भारत के सभी संगठनों को एक साथ लाकर संघर्षरत होने हेतु चेतना-निर्माण-संगठन संघर्ष, सत्याग्रह, अहिंसक रास्ते पर चलकर करना है। यही भारत को स्वावलम्बन और स्वराज्य का रास्ता बनाता है। इसी हेतु 2 अक्टूबर को देश भर की सभी राजधानियों से स्वराज्य यात्रा आरम्भ करके सभी सांस्कृतिक व सामाजिक तीर्थो पर चेतना जगाते हुए 26 नवम्बर 2021 को पूरे भारत के सभी यात्रा दलों को दिल्ली पहुंचना तय हुआ है।
* लेखक जलपुरुष के नाम से प्रख्यात पर्यावरणविद हैं । प्रस्तुत लेख उनके निजी विचार हैं ।

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