– ज्ञानेन्द्र रावत*
विगत दिवस महान पर्यावरणविद और चिपको आंदोलन के प्रणेता सुंदरलाल बहुगुणा की प्रतिमा का दिल्ली विधान सभा में अनावरण किया गया। इस अवसर पर दिल्ली सरकार के मुखिया अरविंद केजरीवाल ने बहुगुणा जी के परिवार को सम्मानित भी किया। यही नहीं उन्होंने बहुगुणा को भारत सरकार से भारत रत्न देने की मांग भी की। केजरीवाल द्वारा बहुगुणा की मूर्ति दिल्ली विधान सभा में लगाने और उन्हें भारत रत्न दिये जाने की मांग किये जाने से हालांकि सियासत गरमा गयी है पर हेतु देश के सभी पर्यावरण कार्यकर्ता उनकी मांग का समर्थन करते हैं। बहुगुणा को भारत रत्न दिया जाना संपूर्ण राष्ट्र और पर्यावरण जगत का सम्मान होगा।
बहुगुणा के बारे में कुछ कहना ऐसा लगता है जैसे सूरज को दिया दिखाना। असलियत में बहुगुणा प्रकृति पुत्र थे। यही एक अहम कारण था कि वह प्रकृति के साथ किसी भी किस्म के खिलवाड़ को बर्दाश्त नहीं कर पाते थे।फिर वह चाहे नदी हो, जल हो या पेड़ हो । पेड़ों के प्रति उनका प्रेम जगजाहिर था। पेडो़ं की रक्षार्थ गौरा देवी की जगाई अलख को परवान चढ़ाने में उनकी भूमिका को नकारा नहीं जा सकता। यही वजह रही कि उनको वृक्ष मित्र और चिपको आंदोलन के प्रणेता के रूप में ख्याति मिली। टिहरी आंदोलन ने तो उनको समूची दुनिया के महान पर्यावरणविद के रूप में प्रतिष्ठित किया। जहां तक पुण्यदायिनी, मोक्षदायिनी और पतितपावनी गंगा का सवाल है, उसकी दुर्दशा से तो वह काफी दुखी थे। गंगा की दुर्दशा की पीड़ा अक्सर बातचीत में उजागर हो जाती थी। सन् 1995 में जब वह टिहरी बांध के दैत्य से बचाने हेतु नदी तट पर कुटी में अपना डेरा जमाये बैठे हुए थे, तब उन्होंने बडे़ दुख के साथ कहा था कि हमारी गंगा मां अब संकट में है। कारण हमारी भोगवादी सभ्यता के कारण गंगा शोषण और प्रदूषण से ग्रस्त है। हम चाहते हैं गंगा को अविरल बहने दो। गंगा को निर्मल रहने दो। जब सारे देश से गंगा को बचाने के लिए आवाज उठेगी, तब ही सरकार इस पर विचार करने को विवश होगी।
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यहां में एक उद्धरण देना जरूरी समझता हूँ कि 1997 में उन्होंने वरिष्ठ पत्रकार अरुण नैथानी को लिखे पत्र में अपनी पीड़ा व्यक्त करते हुए लिखा था कि “सरकार तो सत्य को दफनाने में लगी है।” अखबारों के संदर्भ में उन्होंने लिखा कि-” इस संकट काल में अखबार सत्ता, संपत्ति और साधन वानों के भौंपू मात्र बनकर रह गये हैं। अब मैं बहुत बोल चुका हूँ। अब मैं मौन हो गया हूँ, इसलिए कि दूसरे सुन सकें।”
सच तो यह है कि उन्होंने अपना सारा जीवन प्रकृति के लिए समर्पित कर दिया लेकिन दुख इस बात का है कि उनकी बातों को देश की सत्ता पर काबिज सरकारों ने गंभीरता से नहीं लिया और इस दिशा में अपने ही बनाये कानूनों को विकास की अंधी चाहत के चलते जमींदोज करने का काम किया। वह बात दीगर है कि सरकारों ने उनके योगदान का सम्मान किया और समय समय पर राष्ट्र के सम्मान से सम्मानित भी करती रहीं लेकिन उनकी चेतावनियों को उन्होंने कभी गंभीरता से नहीं लिया। उनका हमेशा यह कहना रहा कि प्रकृति के साथ छेड़छाड़ के जो गंभीर दुष्परिणाम होंगे, वह हमें भोगने ही होंगे। असलियत में वह भविष्य को देख रहे थे। मौजूदा हालात में पर्यावरण और पारिस्थितिकी की जो दुर्दशा है, वह उसी का जीता-जागता सबूत है। इस कटु सत्य को नकारा नहीं जा सकता।
वह आजीवन प्रचार से कोसों दूर रहे। बहुगुणा का सारा जीवन सादगी और सरलता का जीवंत प्रमाण है। यह उनके विचारों और व्यक्तित्व में भी परिलक्षित होता था। आज समूची दुनिया में प्रकृति और पर्यावरण संरक्षण की अलख जगाने वाला अनूठा और अप्रतिम पर्यावरण योद्धा हमारे बीच नहीं है। वह आज हमारे बीच सशरीर भले ना मौजूद हों, लेकिन उनके विचार और उनका बताया रास्ता हमारा मार्गदर्शन करता रहेगा। हम उनके बताये रास्ते पर चलकर उनके सपने को पूरा करने का प्रयास करें और भारत रत्न का सम्मान पर्यावरण चेतना के विलक्षण यायावर के योगदान के प्रति देशवासियों की सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
*लेखक चर्चित पर्यावरणविद और वरिष्ठ पत्रकार हैं। प्रस्तुत लेख उनके निजी विचार हैं।