सिटीजन्स कार्नर
– अंशुल पंचकरन*
“अमेरिका वासी भाइयों और बहनों” जब स्वामी विवेकानंद जी द्वारा यह पंक्तियां शिकागो में विश्व धर्म सम्मेलन के दौरान सेमिनार हॉल में कहीं गई तो पूरा हाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा।
बात उस समय की है जब 1893 में विश्व धर्म संसद का आयोजन शिकागो में होने जा रहा था।स्वामी जी को भी इस विषय के बारे में जानकारी प्राप्त हुई।अतः उन्होंने अमेरिका जाने का निर्णय लिया।शिकागो की धर्म संसद विश्व भर के सभी मतों, धर्मों में वैश्विक मत एवं संवाद स्थापित करने का प्रयास था।इसमें लगभग सभी धर्मों के लोगों को एक सुअवसर मिला था कि व परस्पर मिलकर एक दूसरे को पहचाने। स्वामी जी द्वारा जब उस धर्म संसद में प्रारम्भिक संबोधन किया गया तो वहां बैठे सभी श्रोता मंत्रमुग्ध हो गए।
स्वामी जी जब उस धर्म संसद में पहुंचे तो पहले तो उनके कपड़ों को देख कर उन्हें उस संसद में बोलने के लिए मना कर दिया गया, किन्तु बहुत कोशिश करने के बाद स्वामी जी को अंत में उस संसद में बोलने का मौका मिला। जब विवेकानंद जी को बोलने का मौका मिला ,तब संसद हॉल में बहुत कम लोग थे।किन्तु जब विवेकानंद जी द्वारा उस धर्म संसद में बोलना शुरू किया गया तो पूरा हॉल एक दम से भर गया।
स्वामी जी ने अपना भाषण शुरू करते हुए कहा
“अमेरिका के मेरे भाइयों और बहनों”
(पूरे एक मिनट तक पूरे संसद हॉल में तालियां बजती रही)
“आपने जो श्री स्नेह पूर्ण एवम् भावुक अभिनंदन हमें प्रदान किया है उसके प्रति मेरा हृदय अकथनीय आनंद से अभिभूत हो गया है। मैं विश्व की प्राचीनतम सन्यासी परम्परा की ओर से आपका धन्यवाद करता हूँ, मैं आपका धर्मों की जननी ( भारतीय संस्कृति) के नाम पर धन्यवाद ज्ञापित करता हूँ, ओर मैं सभी जाति एवं वर्गों के लाखों करोड़ों हिन्दुओं की ओर से कृतज्ञता प्रकट करता हूँ ।
स्वामी जी ने कहा ” मुझे गर्व है कि मैं उस धर्म का प्रतिनिधि हूँ जिसने विश्व को सहनशीलता के साथ साथ वैश्विक सौहादर्ता का पाठ पढ़ाया है। हम केवल वैश्विक सहनशीलता में विश्वास नहीं करते अपितु सभी धर्मों को सत्य के रूप में स्वीकार करते हैं। मुझे गर्व है कि मैं उस देश से आया हूँ जिसने विश्व के किसी भी देश और किसी भी धर्म में निष्कासित अथवा प्रताड़ित सभी को अपने देश मैं आश्रय दिया है। मैं उस धर्म से अपना सम्बन्ध होने का गर्व करता हूँ ।”
विवेकानंद जी का यह भाषण उस संसद में बैठे सभी श्रोताओं का दिल जीतने में सफल रहा। 11 सितम्बर 1893 को विश्व धर्म संसद में दिए अपने संभाषण ने उन्हें सर्वत्र प्रख्यात कर दिया और उन्हें पश्चिमी जगत में भारतीय मनीषा का अभिनव अग्रदूत बना दिया।विश्व धर्म सम्मेलन में स्वामी विवेकानंद जी का यह संभाषण आज भी लोगों में धार्मिक चेतना जगाकर अपनी संस्कृति एवम् धरोहर के प्रति अभिमान का भाव जागृत करता है।
*लेखक गवर्नमेंट कॉलेज धर्मशाला में एम. कॉम. तृतीय सेमेस्टर के छात्र हैं।