विरासत स्वराज यात्रा
– डॉ. राजेन्द्र सिंह*
प्रख्यात गाँधीवादी श्री एस.एन.सुब्बाराव जी हम सभी के लिए और एक नई चेतना, ऊर्जा भरने वाले युवा है। मुझे हमेशा उनके साथ बैठने से ऊर्जा मिलती है। आज जयपुर में उनसे मुलाक़ात कर उनका आशीर्वाद प्राप्त किया उन्हें बताया बापू की विरासत को आधुनिक विकास की लीला से विनाश से बचाने के लिए जनचेतना करने और भारत की सम्पूर्ण विरासत को समझने, समझाने, सहेजने और उसको बचाने के लिए सत्याग्रह करना ही हमारी विरासत स्वराज यात्रा का उद्देश्य है । इस यात्रा में देश भर के ऐसी सभी विरासतों पर जायेंगे, जो भारत के राज, समाज के लिए महत्वपूर्ण है।
इस यात्रा में गाँधी साधक रमेश शर्मा मौजूद थे। रमेश शर्मा ने भी इस यात्रा के बारे में बताते हुए कहा कि, यह यात्रा गांधी की विरासत को बचाने की चेतना यात्रा है। इस चेतना यात्रा में हम सभी जुड़कर भारत में सादगी, सद्भावना आदि के सभी सवालों को जोड़कर आगे बढ़ने का रास्ता बनाने वाली यात्रा है।
जल हमारी सबसे बड़ी विरासत है। इस विरासत को सहेजने की जरूरत है। यह आधुनिक तकनीक से नहीं सहेजी जा सकती। इसे तो भारतीय समुदाय जब अपनी जिम्मेदारी मानकर, सहेजने का काम करेगा, जब समाज को जिम्मेदारी और हकदारी दोनों करने को मिलेगी ,तो समाज भी पानी के काम को अपना काम मानकर करेगा। इसीलिए हमें सामुदायिक प्रबंधन को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
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हमारी सरकार हर घर में नल तो पहुँचा सकती है, लेकिन हर घर में जल कैसे पहुँचायेगी। इसके लिए हमें जल संसाधनों का प्रबंधन करना जरूरी है। इसके लिए हमारे देश में सामुदायिक विकेन्द्रित जल प्रंबधन ही सबसे उचित उपाय है। आज की जो आधुनिक तकनीक है, उसने हमारी धरती का पेट खाली कर दिया है। आज सिर्फ 28 प्रतिशत पानी ही धरती के पेट में बचा हुआ है। जबकि हमारी जल की जरूरत बहुत तेजी से बढ़ती ही जा रही है। हम धरती के पेट से जल को निकाल ज्यादा रहे और धरती का पेट भर बहुत कम रहे है। यह हमारे भविष्य के लिए संकट पैदा कर रहा है। इस संकट से बचने के लिए हमें धरती से लेने और देने के रिश्तों को बराबर करना होगा। आप जानते है कि, हर घर में नल केवल पानी को धरती के पेट से निकालने का बढ़ावा दे रही है।
भारत को यदि पानीदार बनाना है, तो सामुदायिक विकेन्द्रित जल प्रबंधन को आगे रखकर, समाज को सम्मान सहित जिम्मेदारी और हकदारी देकर काम करना होगा। नही तो जिस तरह से पिछले सालों में अफ्रीकन, सीरिया, सैनेगल आदि देशों के लोग उजड़ रहे है। इन देशों से उजड़ने वाले लोगो को जलवायु परिवर्तन शरणार्थी कहा जाता है। भारत के लोगों को अभी जलवायु परिवर्तन शरणार्थी नहीं कहा जाता है। लेकिन जिस तरह से हम आगे बढ़ रह है? उससे अगले सात सालों में भारत वेपानी हो सकता है? भारत यदि बेपानी होकर उजड़ेगा तो, उसे भी जलवायु परिवर्तन शरणार्थी कहा जायेगा। यह भारत के लिए बहुत अपमानजनिक स्थिति होगी। इसलिए भारत को यदि पानीदार बनने पर विचार करना है, तो हमें सब कुछ छोड़ कर, ‘ बादलों से बरसने वाली हर बूँद को धरती के पेट में भरना और सूरज की रोशनी से बचाना होगा।’ ‘जितना जब जरूरी हो, उतना पानी को निकालकर जीवन चलाना होगा।’ इस अनुशासन के साथ हमें आगे बढ़ना होगा। एक तरफ हम जल का संरक्षण करें और दूसरी तरफ हम सामुदायिक विकेंद्रित जल प्रबंधन के द्वारा भारत के भू-जल के भंडारों को भरने का काम करना चाहिए। इसके लिए एक जल साक्षरता का अभियान चलाना बहुत आवश्यक है।
भू-जल को भरने के लिए भारत सरकार ने एक अटल भू-जल योजना बनायी है। उसका अभी शिक्षण-प्रशिक्षण तो चल रहा है, लेकिन काम का प्रभाव जब तक शुरू होगा, तब तक तो भू-जल के भंडार खतरे से खाली नहीं रहेंगे। तब तक हम बहुत जगहों पर बेपानी हो जायेंगे। इसलिए अटल भू-जल योजना पर सबसे ज्यादा ध्यान देना होगा और सामुदायिक विकेन्द्रीत जल प्रबंधन को साथ लेकर आगे बढ़ना होगा। तभी हम अपने आप को पानीदार बनाने की तरफ आगे बढ़ा पायेंगे।
*लेखक जलपुरुष के नाम से विख्यात पर्यावरणविद हैं। प्रस्तुत लेख उनके निजी विचार हैं।