– धर्मेन्द्र मलिक*
भारत सरकार द्वारा आज 8 सितंबर को फसलों की खरीद हेतु सीजन 2022- 23 की खरीद हेतु जो न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित किया है वह किसानों के साथ सबसे बड़ा मजाक है ।कृषि मूल्य आयोग द्वारा पिछले साल गेहूं की पैदावार की लागत बताई गई ₹ 1459 थी, इस साल लागत घटाकर ₹1000 कर दी गई है इससे बड़ा मजाक कुछ हो नहीं सकता।
अगर महंगाई दर की बात करें तो इस वर्ष 6% महंगाई में वृद्धि हुई है।
जिस तरह से पिछले वर्ष समर्थन मूल्य में इजाफा किया गया था अगर उस फार्मूले को भी लागू किया जाए तो किसानों को ₹71 कम दिए गए हैं जो सरकार एमएसपी को बड़ा कदम बता रही है उसने किसानों की जेब को काटने का काम किया है,दूसरी कुछ फसलों में थोड़े बहुत वृद्धि की गई है लेकिन उन फसलों की खरीद न होने के कारण किसानों का माल बाजार में सस्ते मूल्य लूटा जाता है। सरकार को किसानों को यह भी बताना चाहिए कि पंतनगर विश्वविद्यालय, लुधियाना विश्वविद्यालय और जो दूसरे गेहूं उत्पादन करने वाले अनुसंधान केंद्र हैं उनकी क्या लागत आती है?
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किसानों के साथ सरकारों द्वारा हमेशा अन्याय किया जाता रहा है 1967 में 2.5 कुंतल गेहूं बेचकर एक तोला सोना बेच कर खरीद की जा सकती थी ,आज अगर किसान को एक तोले सोने की खरीद करनी हो तो 25 कुंटल गेहूं बेचने की आवश्यकता है असली अन्याय यही है किसानों के साथ किसी भी सरकार ने आर्थिक न्याय नहीं किया है ।
इसी कारण आज देश का किसान ऊर्जावान ना होकर कर्ज़वान बन गया है ।
सरकार किसानों को ऊर्जावान बनाना है तो उन्हें उनकी फसलों की कीमत देनी ही होगी। करनाल में प्रशासन के साथ किसानों की वार्ता बेनतीजा रही है लघु सचिवालय करनाल पर किसानों का धरना जब तक जारी रहेगा जब तक किसानों को नया दाम नहीं मिल जाता और तत्कालीन अधिकारी के विरुद्ध मुकदमा दर्ज कर उनको बर्खास्त नहीं किया जाता
*लेखक भारतीय किसान यूनियन के मीडिया प्रभारी हैं। प्रस्तुत लेख उनके निजी विचार हैं