– रमेश चंद शर्मा*
धूल सने हीरे- जय जवान जय किसान
दुर्भाग्य देश का कुछ समय बाद 11 जनवरी, 1966 को फिर दुखद समाचार आया कि देश के प्रधान मंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री जी का ताशकंद, उज्बेकिस्तान, रूस में देहांत हो गया। देश भौचक्का रह गया। युद्ध जीता हुआ नेता समझौता करने गया था। अचानक यह कैसे हो गया। लोगों ने अनेक तरह की शंका भी जाहिर की। अनेक लोगों के मन में आज भी शंका बनी हुई है। समझौता करने का दबाव भी रहा होगा। जीता हुआ क्षेत्र लौटाने पर देश क्या कहेगा, देश समझौते को कैसे लेगा। इसका दबाव मन पर अवश्य रहा होगा। शास्त्री जी बहुत ही संवेदनशील इंसान थे। जीत के कारण उनके प्रति जनता का और भी अधिक लगाव, प्यार उमड़ पड़ा था। लाहौर की ओर हमारी सेना आगे बढ़ गई थी मगर अखनूर की ओर स्थिति कुछ डांवाडोल रही थी। राजस्थान सीमा क्षेत्र थोड़ा कमजोर पड़ा था। साधनों का भारी नुकसान तो युद्ध का अभिन्न हिस्सा होता ही है। अपना भी भारी नुकसान हुआ था।
शास्त्रीजी सादगी की मूर्ति, सरल जीवन, जय जवान जय किसान का नारा बुलंद करने वाला विजेता नेता, लोक सेवक मंडल से जुड़े, सोमवार का व्रत का आह्वान करने वाला त्यागी पुरुष अपनी धरती से दूर रहते हुए ही, इस दुनिया को छोड़ कर चले गए। यह समाचार अपन को दिल्ली में रहने के कारण जल्दी मिला। उनके दाह संस्कार में अपन भारी, दुखी मन से शामिल हुए।
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देश अनाज की कमी से जूझ रहा था। ऊपर से युद्ध आ धमका। शास्त्रीजी ने सप्ताह में एक दिन के उपवास का आह्वान किया, बड़ी संख्या में लोग आगे आए। कुछ लोगों ने तो इसे जीवन भर के लिए अपनाया। उस समय अपना देश अनाज का अभाव झेल रहा था। पीएल 480 के अंतर्गत लाल खराब सा बेस्वाद पतला गेहूं आयातित हो रहा था। जो मजबूरी में ही खाया जा रहा था। राशन की दुकानों पर लंबी लंबी लाइनें लगती थी। निश्चित मात्रा में ही नपा-तुला सामान मिलता था वो भी नगरों में। गांवों की स्थिति तो राम भरोसे ही थी, आजकल की तरह ही। राशन कार्ड पर गेहूं, चीनी, मिट्टी का तेल केरोसिन आदि मिलता था। बाजार से खरीदने पर ज्यादा दाम देना पड़ता था। चोरी छिपे सामान की खरीद फरोख्त भी चलती थी। देश में अलग ही माहौल बना हुआ था। गांव का देश कहलाने वाले देश में गांव पूरी तरह उपेक्षित रखे गए। आज भी गांव उपेक्षा भुगत रहा है। गांव उजड़ रहे हैं और स्मार्ट सीटी की बात की जा रही है। नगर की नरक जैसी जिन्दगी जीने को लोग मजबूर हैं। गांव के उद्योग धंधे चौपट कर दिए गए। किसान अपना गुड़ नहीं बना सकता। उसे चीनी के कारखानों को जबरदस्ती गन्ना बेचना पड़ता है। यह तो एक उदाहरण है।
इसके बाद ही हरित क्रांति का सूत्रपात हुआ। देश में अनाज का उत्पादन बढ़ा। बाद में सफेद क्रांति, पीली क्रांति जैसे कदम उठाए गए। अनाज में देश को आत्मनिर्भर बनाने में डाॅ. स्वामीनाथन जैसे कृषि वैज्ञानिक बड़े मददगार बने। किसानों मजदूरों की मेहनत रंग लाई। देश अपने पैरों पर खड़ा हुआ।
जय जवान जय किसान ने कड़ी मेहनत कर अपनी शक्ति का अहसास करवाया। दुःख के साथ लिखना पड़ता है कि इन्होंने तो अपना फर्ज निभाया मगर देश, समाज, सत्ता ने आज तक इनका ख्याल नहीं रखा। जवान तो संगठन के बल पर कुछ प्राप्त भी कर सके मगर किसान मजदूर तो आज भी और भी बुरी स्थिति में है। किसानों की आत्महत्याएं, मजदूर, श्रमिक, कामगार की मजबूरी देश, समाज, सत्ता के माथे पर लगा भंयकर कलंक है। इसे जितना जल्दी धोया जाएगा, उतना ही देश के लिए कल्याणकारी होगा।
लोक सेवक मंडल की स्थापना पंजाब केसरी लाला लाजपत राय ने की थी। लालाजी ने अनेक संस्थाओं, संगठनों की स्थापना की जो आज भी अपने अपने कार्य में लगे हैं। लोक सेवक मंडल के कारण शास्त्रीजी से सहज मिलना हो जाता था। सादगी, सरलता, ईमानदारी, सच्चाई, कर्तव्य पालन, निष्ठां, कर्मठता के उनके कितने ही प्रसंग, किस्से प्रसिद्ध हैं । एक प्रेरक, आदर्श, सक्रिय, सादे जीवन का उदाहरण उन्होंने रखा। सौभाग्य है ऐसे महापुरुष से सम्पर्क, संवाद बना। समीप से देखने का मौका मिला। सादगीपूर्ण सरल साफ सुथरा जीवन जीने वाले देश के प्रधानमंत्री पद तक पहुंचे। मंत्री मंडल में शामिल रहे। रेल मंत्रालय भी संभाला। देश का सच्चा लाल, लाल बहादुर शास्त्री को शत शत नमन।
*लेखक प्रख्यात गाँधी साधक हैं।
आभार धन्यवाद शुक्रिया। आशीर्वाद