– रमेश चंद शर्मा*
बैतूल स्टेशन, जहाँ एक बैलगाड़ी इंतजार कर रही थी
दिल्ली विश्वविद्यालय में मैडम नैनी बोस्ट एक सामाजिक संस्था चलाती थी। जिसका कार्यालय गाँधी भवन के एक कमरे में चलता था इंडियन काउंसिल ऑफ़ सोशल सर्विस लीग। इस संस्था की ओर से एक माह के शिविर के लिए विश्वविद्यालय से कुछ चुने हुए विद्यार्थियों का चयन किया जाता था। इनका साक्षात्कार द्वारा चयन किया जाता था। इसमें अपना चयन हुआ। विभिन्न महाविद्यालय के छात्र छात्राओं का चयन हुआ। हमारे समूह में हंसराज, मिरांडा हाउस, किरोड़ीमल, आत्माराम सनातन धर्म, रामलाल आनंद महाविद्यालय शामिल रहे। साथ में एक मार्गदर्शक अध्यापक का भी चयन किया जाता था। इसके लिए माता सुन्दरी महाविद्यालय से सुश्री इन्द्रजीत कौर गिल का चयन हुआ। छात्र छात्राओं में मालती तिमाराजू, आर्यभूषण भारद्वाज, नन्द पलाहा, राधेश्याम और छात्र नेता के रूप में अपना चयन हुआ। इस एक माह की यात्रा का पूरा खर्च संस्था वहन करती थी। आना जाना, खाना पीना, रहना सहना सब संस्था की ओर से था।
रेल से बैतूल स्टेशन पर पहुंचे, जहाँ एक बैलगाड़ी इंतजार कर रही थी। उसमें सवार होकर जयनारायण सर्वोदय विद्यालय करजगाँव पहुंचे। जहाँ सर्वोदय नेता श्री ग. उ. पाटनकर से मिले। यहाँ प्रार्थना, श्रम संस्कार, चर्चा, बातचीत, खेती, बागवानी, गाँव भ्रमण आदि कार्यक्रम के अंग रहे। गाँधी, विनोबा के बारे में भी विस्तार से सुनने, जानने, समझने, अध्ययन के साथ साथ रचनात्मक कार्यक्रमों को देखने, जानने, करने का भी मजेदार मौका मिला। यहाँ एक गौपुरी संडास भी था। शौचालय, मूत्रालय के विभिन्न प्रकार के प्रयोग, खाद के प्रयोग, खेती, गौ पालन, भोजन, शिक्षा, स्वास्थ्य, गाँव निर्माण के प्रयोग किए जा रहे थे। सुबह सवेरे प्रार्थना के बाद श्रम संस्कार में संडास सफाई सबके लिए आवश्यक कार्य था।
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शौचालय में ना बदबू थी, ना मल मगर दिमाग में मल भरा हो तो ऐसा काम करना आसान नहीं। बाल्टी, झाड़ू आदि लेकर काम पर पहुंचे, सबको मौखिक इसके बारे में पहले ही बताया गया था। अब सामने से इसको समझना, देखना, करना था। पहले दिन पाटनकर जी ने स्वयं पूरी प्रक्रिया को समझाते हुए पूरा किया। किस प्रकार शौचालय के पीछे बने छोटे से टैंक पर लगे नल को खोलकर बाल्टी में इसमें भरे पानी को निकालकर पेड़ पौधों को देना है। इसका पूरा प्रदर्शन करके दिखाया। टैंक से पीले रंग का पानी निकलता था। जिसे सीधे पेड़ पौधों को दिया जाता। बताया गया, यह उत्तम, उपयोगी खाद है। आजकल नगरों में चल रही व्यवस्था तो नदी, नालों, नहरों का सत्यानाश कर रही है। अपना सारा कूड़ा करकट, शौच, औद्योगिक कचरा नदियों, नालों में बहाया जा रहा है। जिसे आधुनिक, वैक्षानिक समझा जा रहा है। वह सत्यानाश का रास्ता खोल रही है।
इस प्रवास की सबसे महत्वपूर्ण बात रही गांधीजी के सेवाग्राम आश्रम, विनोबाजी के ब्रह्मविद्या मंदिर, परमधाम पवनार जाना, जहाँ विनोबा जी के साथ बातचीत, आश्रम में रहना। साथ ही मगन संग्रहालय, राष्ट्र भाषा प्रचार समिति, बजाज वाडी, जाजू वाडी, शिक्षा मंडल, गाँधी ज्ञान मंदिर, लक्ष्मी नारायण मंदिर, गो रस भंडार, सत्याग्रह आश्रम का वर्धा केंद्र, महिला आश्रम, गाँधी सेवा संघ, अ. भा, सर्व सेवा संघ, महारोगी सेवा समिति, दत्तपुर कुष्ठ धाम, खादी ग्रामोद्योग, ग्राम सेवा मंडल, गोपुरी, नलवाडी गौ सेवा चर्मालय, आदि को देखना। मजेदार बात यह रही कि सबने तय करके वर्धा से सेवाग्राम की यात्रा पैदल की। चौमासे का समय था इसलिए वर्षा का आनंद भी मिल रहा था। काली चिकनी मिट्टी के कारण जूजी तों चप्पलों से चिपककर वजन बढ़ा रही थी। चलने में कठिनाई का सामना करना पड रहा था। बार बार मिट्टी को हटाना पड़ रहा था। थोडा बहुत इस निर्णय पर रोष भी व्यक्त किया जाता। आखिर सब लोगों का संकल्प पूरा हुआ और हम लोग सेवाग्राम पहुँच गए। उस समय वर्धा से सेवाग्राम के मध्य खुलापन था। महिला आश्रम के बाद सुनसान नजर आता था। वर्धा जंक्शन मुख्य स्टेशन था। आजकल जो सेवाग्राम कहलाता था उसे वर्धा ईस्ट कहते थे। उस समय वर्धा से सेवाग्राम चौक तक तांगा भी चलता था। सेवाग्राम से पवनार जाने के लिए छोटा एक कच्चा रास्ता था, अन्यथा बहुत घूम कर जाना पड़ता। यहाँ फिर तय किया गया, चलो बाबा विनोबा भावे से मिलने चलना है तो पवनार भी पैदल ही कच्चे रास्ते ही चला जाए। इस प्रकार पैदल यात्रा का आनंद आया।
सेवाग्राम में वह पेड़ जहाँ गांधीजी सबसे पहले आकर ठहरे, प्रार्थना स्थल, आदि निवास, बा कुटी, बापू कुटी, आखिरी निवास, आश्रम रसोड़ा, परचुरे कुटी, महादेव कुटी, किशोर कुटी, कार्यकर्ता निवास, बापू द्वारा लगाया पीपल का पेड़, बा द्वारा लगाया गया मौलसिरी का पेड़, जो एक दुसरे से दूर होते हुए भी जिसकी टहनियां एक दुसरे से जुडी हुई है, रुस्तम भवन, गौ शाला, नई तालीम परिसर, गौरी भवन, कला भवन, आर्यनायकम कुटी, विद्या कुटी, शांति भवन, कबीर भवन, इंटरनैशनल कालोनी, कस्तूरबा हेल्थ सोसायटी आदि का दर्शन किया। बापू कुटी की सादगी, समग्रता, विशालता तो मन पर विशेष प्रभाव डालती है। सुबह सवेरे तारों की छावं में बापू कुटी के अंदर तथा शाम को खुले आसमान के नीचे प्रार्थना स्थल पर होने वाली सर्व धर्म प्रार्थना का अपना ही आनंद, प्रभा मंडल बनता है। इन सबका असर आज भी जीवन पर साफ नजर आता है। इनकी याद आज भी वैसे ही बनी हुई है, जैसी उस समय प्रभावित हुए थी या उससे से भी ज्यादा गहरी हुई है। यह कार्यक्रम एक विशेष यादगार, प्रभाव बनकर मन में व्याप्त है।
*लेखक प्रख्यात गाँधी साधक हैं।
Very nice description. Thanks.