– रमेश चंद शर्मा*
बागी क्षेत्र में शिविर
चंबल घाटी, बुन्देलखण्ड बागी पीड़ित क्षेत्र में भी राजघाट अहिंसा विद्यालय, गांधी शांति प्रतिष्ठान की ओर से शांति, अहिंसा के प्रयोग के अध्ययन, शिक्षण, प्रशिक्षण के लिए शिविर आयोजित किए गए। जब यह योजना बनी तो कुछ साथियों को लगता था कि यह योजना नहीं चल पाएगी, विशेषकर दिल्ली की छात्राओं के लिए यह कितना संभव होगा की वे इनमें भाग ले सकें। मगर पहले शिविर की भागीदारी, सफलता देखकर सबका उत्साह दो गुणा हो गया। बागी परिवारों से मिलना, बातचीत करना, उनके दुःख दर्द को सुनना, उनके जीवन के बारे में सुनना, परिवारों की दशा और दिशा, वे इस कार्य में क्यों शामिल हुए, समाज में चल रहे शोषण, लूट, अत्याचार, अन्याय, हिंसा, दबाव, नफरत, द्वेष, भय, छोटे बड़े, जाति बिरादरी, दबंगई, दादागिरी, परस्पर दुश्मनी, मनमानी, जमीन जायदाद के झगड़े, बंटवारा का क्या क्या असर हुआ। इन सबके बारे में सुनना, जानना, समझना अपने आप में नए अनुभव रहे।
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उस क्षेत्र में जाना, रहना, घूमना लोगों से मिलना ही अपने आप में एक बड़ा अनुभव था। गांधी भवन, छतरपुर, बुंदेलखंड शिविर में शिविरार्थियों को खजुराहो, जटाशंकर, पन्ना प्रवास के कारण विशेष आनंद का बोध हुआ। जटाशंकर पर तो एक बागी का साहस देखकर सभी आश्चर्यचकित रह गए।
पहाड़ी पर जाकर यह बागी भाई जो बहुत ही दुबला-पतला सा दिखता था, पहाड़ी से छलांग लगाकर नीचे कूद गया, सब घबरा गए। सब का सांस ठहर गया। अब क्या होगा, यह क्या हुआ मगर जब कुछ देर में राज खुला कि इन्होंने पानी में छलांग लगाई थी। पहाड़ी पर बावड़ी जैसा कुआं था जिसमें यह किया गया। फिर भी इतने ऊँचे से कूदना आसान काम नहीं था। बुंदेलखंड क्षेत्र में बागी चाली राजा, बागी छूटे राजा, बागी मूरत सिंह बड़े नाम थे। इनके परिवार की नई पीढ़ी नौजवान राज बहादुर सिंह बुंदेला, स्वर्गीय चाली राजा का बेटा। गजब का व्यक्तित्व, मजबूत शरीर, हंसमुख, मिलनसार युवा।
चाली राजा के बारे में कहते थे कि इनका निशाना बहुत ही अचूक था। इनके बारे में सुना कि सरकार प्रशासन चाहता था कि इनसे प्रशिक्षक का काम लिया जा सकता है, मगर परस्पर अविश्वास के कारण ऐसा संभव नहीं हुआ। ऐसा हो पाता तो एक नई राह बन जाती। इनके छोटे भाई छूटे राजा का शरीर देखने में आम लोगों जैसा ही लगता था। बागी सरदार मूरत सिंह के बेटे रामसिंह और उनके परिवारों से मिलना, बातचीत करना, साथ रहना एक अलग ही अनुभव था। राम सिंह को नशे की लत पड़ गई थी। जिससे उसका शरीर ठीक-ठाक नहीं रहा, अस्वस्थ रहने लगा।
चंबल में बागी मोहर सिंह, माधो सिंह से मिलने से पहले अपना राजा मान सिंह के बेटे तहसीदार सिंह, उनके समूह के नेता लुक्का पंडित, लोकमन दीक्षित से मिलना हुआ। देखने में पंडित जी बहुत हलके-फुल्के तो दूसरी ओर तहसीलदार सिंह हट्टे-कट्टे शरीर वाले थे। यह दोनों हमारे गांधी नगर वाले घर में भी आए थे। बागी गंभीर सिंह सहित कुछ अन्य बागी गांधी शांति प्रतिष्ठान में अनेक बार आए।
एक बार एक छोटे कस्बे में शिविर के दौरान रात को अचानक दूर कहीं आग की लपटे नजर आई। धीरे-धीरे आग बढ़ने लगी और फैलती, आगे बढ़ती दिखने लगी। सबके मन में अलग-अलग विचार आने लगे। सब हतप्रभ थे। कुछ साथियों को लगा कि हमें मौके पर पहुंचकर कुछ करना चाहिए। एक टोली हिम्मत कर घटना स्थल पर पहुंची और देखकर दंग रह गई कि आग एक ट्रक में लगी हुई है और वह सड़क पर चल रहा है। स्थानीय लोगों की बड़ी भीड़ चारों ओर खड़ी हो कर अलग-अलग निर्देश जारी कर रही है। ड्राईवर ने एक बड़े पेड़ के पास ट्रक को आगे पीछे करा जिससे पत्तों से टकराकर आग बूझ जाए। इसी उधेड़बुन में ट्रक एक ओर लुढ़क गया। ड्राईवर एवं अन्य लोगों को ट्रक से निकाला गया। अब तक ट्रक की बाॅडी में भी आग लग गई थी।
अब कुछ लोगों ने कहना शुरू किया कि अब इससे दूर रहना चाहिए क्योंकि विस्फोट होने का डर है। तेल की टंकी फट सकती है। देखते देखते ही धू-धू करके ट्रक जल रहा था। यह आग देर तक चली। इसमें बीड़ी पत्ता, तेंदू पत्ता जा रहा था। आग कैसे, कहां लगी किसी को कुछ नहीं मालूम। ड्राईवर को तो बहुत देर में मालूम पड़ा। जब बस्ती के लोगों ने बताया।
जब तक हमारी टोली वहां पहुंची नहीं तब तक हमारे मन में अलग-अलग बातें आ रही थी। बस्ती में अचानक आग लग गई है। किसी ने बदला लेने के लिए आग लगाई है। किसी बागी दल का काम है ऐसे अनेक विचार प्रकट किए जा रहे थे। सच्चाई, वास्तविकता वहां जाकर ही खुली। इस मध्य शिविर में भी खलबली मची रही कि यह सब क्या हो रहा है। एक साथी ने पहले जाकर शिविर को बताया कि ट्रक में आग लगी है। सुबह जले हुए ट्रक के लोहे के मजबूत हिस्से ही शेष पड़े थे। इस घटना का सत्य जब तक सामने नहीं आया तब तक मन में तरह-तरह के अलग-अलग ख्याल आते रहे। सोच में भय का माहौल बना हुआ था। असमंजस बरकरार था। क्या है, क्या हुआ है, आगे क्या होने वाला है के विचार मन को भयभीत कर रहे थे।
होनी अनहोनी से भरे तरह-तरह के अलग-अलग ख्याल साथियों ने बाद में साझा किए। अफवाह, कल्पना, सोच, भय, माहौल, क्षेत्र, समय, स्थितियां कैसे कैसे भाव मन में उत्पन्न करती है। व्यक्ति क्या क्या सोचने समझने विचारने लगता है। सपने की तरह काल्पनिक बातें कहां से कहां पहुंचा देती है। मन में उसके अनुसार भय, भेदभाव, नफरत, द्वेष, कड़वाहट, गुस्सा, हिंसा, डर, पश्चाताप, दूरी, अपनापन, प्रेम, लगाव अलगाव, झूठे सच्चे भाव आते हैं और मन को स्थिर या विचलित करते हैं। इनसे भरकर व्यक्ति उसी अनुसार सही गलत कदम उठा लेता है। बिना विचारे जो करे सो पाछे पछताय। बहुत सोच समझकर ही कदम उठाने चाहिए।
देश के विभिन्न हिस्सों में शिविरों का आयोजन किया गया। गांव, कस्बे, शहर, नगर, महानगर में शिविर लगाए गए। विभिन्न मौकों, अवसरों, पर्वों, त्यौहारों, स्थितियों, घटनाओं के समय भी शिविर लगाए गए। सामान्य तौर पर भी शिविरों का आयोजन किया जाता रहा है। शिविर एक सशक्त माध्यम है। बदलाव, रचना, सृजनशीलता, सेवा, साधना, संस्कार, संकल्प, सीखने, समझने-बूझने, जानने, पहचानने, खोजने का अवसर प्रदान करता है।
सर्वोदय समाज सम्मेलनों के अवसर पर कुरुक्षेत्र, हरियाणा, नकोदर, पंजाब में भी शिविर आयोजित किये गए। जिसमें सफाई, स्वागत, सुरक्षा, भोजन व्यवस्था में मदद करने का काम मुख्य तौर पर किया गया। शिविर में दिल्ली विश्वविद्यालय, जामिया मिलिया, दिल्ली इंजीनियरिंग कालेज आदि के छात्र छात्रा भाग लेते थे, साथ ही गैर छात्र युवा भी इसमें शामिल किए जाते थे।
शिविर में शारीरिक, बौद्धिक, सामाजिकता के विकास का अवसर दिया जाता। सत्य, अहिंसा, सद्भाव, सेवा, श्रम संस्कार, सर्व धर्म समभाव, प्रभात फेरी, चर्चा, बातचीत, भाषण, सांस्कृतिक कार्यक्रम, अध्ययन, मनन, चिन्तन, स्थानीय क्षेत्र और उसकी समस्याओं की जानकारी, ग्रामीण क्षेत्र की जानकारी, जीवन शैली, भारत दर्शन, खेल, गीत आदि का अभ्यास किया जाता।
*लेखक प्रख्यात गाँधी साधक हैं।