-रमेश चंद शर्मा*
दुश्मनी प्राकृतिक, जन्मजात नहीं होती बल्कि बदलती रहती है
महर्षि दयानन्द महाविद्यालय, श्री गंगानगर, राजस्थान में साहित्य परिषद की ओर से एक अंतर राज्य वाद विवाद प्रतियोगिता का आयोजन हुआ। इसमें विभिन्न राज्यों के छात्रों ने भाग लिया। दिल्ली विश्वविद्यालय से हम दो, रमेश चंद शर्मा एवं श्री ओमप्रकाश, सिरसा, हरियाणा से श्री बूटा सिंह कँवल एवं श्री जगदीश चोपड़ा, जोधपुर से श्री सुशील पुरोहित एवं श्री दिनेश सारस्वत, इसी प्रकार अन्य स्थानों से भी भागीदार पहुंचे। पचास साल बाद भी यह नाम इसलिए याद है की इनसे संपर्क संवाद लम्बे समय तक रहा, आज भी कायम है। इसे बचपन की तो नहीं कह सकते मगर जवानी की दोस्ती तो है ही। वाद विवाद प्रतियोगिता की अन्य बातें भूल गए मगर यह जो दोस्ती बनी थी वह आज भी यादों में बसी है, जारी है। श्री बूटा सिंह कँवल जी तो विशाखापट्नम, बंगलुरु, हैदराबाद भी जाकर बसे, देश विदेश का दौरा करते रहे मगर हमारा भाईचारा कायम रहा। विवाह शादी में भी याद करना नहीं भूले। जबकि विचार धारा की सोचें तो हमारे विचारों, सोच में मतभेद है, कार्य क्षेत्र में खूब दूरी होते हुए भी मनभेद नहीं हुआ। कृष्ण सुदामा की जोड़ी की तरह आज भी हमारे संबंध बने हुए है। एक दूसरे के बारे में आज भी वही पुराना लगाव बना हुआ है। कितने ही वादविवाद, भाषण, गीत, नाटक प्रतियोगिता में भाग लिया उनकी याद सोचने पर भी नहीं आ पा रही है। कुछ प्रसंग, घटना जीवन में ऐसे होते है जो भूल नहीं पाते है।
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श्री गंगा नगर से पाक सीमा बहुत दूर नहीं है। साथियों ने बातचीत में देश के प्रति बड़ा जोश प्रकट किया। बीच बीच में बातचीत इतनी भावुक हो जाती कि उस समय अगर कोई पाक नागरिक सामने हो तो न जानें क्या कर देते, क्या हो जाता। जवानी का जोश वैसे ही जोरदार होता है। मगर अनेक बार होता है दूध के उफान जैसा एक मिनट में आपे से बाहर और एक मिनट में भीगी बिल्ली भी बन जाता है। जिसका यह उफान देर तक चलता है वह देश, समाज के लिए कुछ कर गुजरते है। उनकी दशा और दिशा भिन्न बन जाती है। उनके मूल्य, मर्यादा, सोच, विचार, व्यवहार सबमें कुछ अलग ही नजर आता है। उनका जीवन अलग ही राह का चयन करता है। उनका जीवन सेवा, साधना, त्याग, सादगी, प्रयोग, मस्ती, कुछ नया करने पर उतारू रहता है। लहरों से भरा इनका जीवन अन्य लोगों की नजर में ज्यादातर अव्यवहारिक, पागलपन, दीवानगी, बेकार, गलत, नासमझी, समाज पर बोझ, परिवार के दुश्मन, नालायकी से भरा जैसे शब्दों से नवाजा जाता है। इससे विपरीत भी सोचने वालों की भी समाज में कमी नहीं है। जो मानते है कि यह समाज की मुख्य धारा में नहीं है, मगर इनका काम, सोच, विचार, चिन्तन, मनन, कदम देश, समाज, ही नहीं बल्कि मानवता के लिए आवश्यक है। ऐसे लोग ही अंधे की लाठी की तरह इनका सहारा बनकर सामने आते है, सहयोग करते है। साथ देते है, समर्थन करते है, उत्साह बढ़ाते है। यह सब बातें चर्चाओं में से निकली। देर रात तक बहस का दौर चला।
कुछ साथियों ने अगले दिन भारत पाक सीमा पर जाने का तय किया। सीमा पर पहुंचे उस समय सीमा पर इतनी रोक टोक नहीं थी, सीमा के चिन्ह भी कहीं दूर दूर लगे थे। कह सकते है कि सीमा खुली पड़ी थी। चलते चलते एक स्थान पर स्थानीय साथी ने बताया कि यहां से पाक सीमा शुरू हो गई है, आगे नहीं जाना चाहिए जबकि वहां कोई रुकावट नहीं थी। सभी रुककर इंतजार करने, देखने लगे। चंद साथी आगे बढ़े। कुछ दूरी पर जाने पर इन साथियों की देश भक्ति जागृत हुई और इन्होंने तय किया कि पाकिस्तान की धरती पर पेशाब करके ही अपना गुस्सा, देश भक्ति प्रकट की जाए। ऐसा किया गया। उस समय इस पर अलग ढंग की हंसी आई थी। मगर आज इस मानसिकता पर लगता है कि हम पढ़े लिखों की सोच भी कितनी हल्की, छोटी, संकुचित है। किसी धरती पर पेशाब करके अपनी बहादुरी का प्रदर्शन किस भाव को प्रकट करता है।
मनुष्य के दिमाग में पराएपन का भाव जब भर जाता है तो सगा भी कितना पराया हो सकता है। सगे भाई भी एक दूसरे से नफरत, भय, भेद, दूरी बना लेते है। कल तक जो एक थाली में खाते थे, वे भी एक दूसरे को फूटी आँख देखना नहीं चाहते। दुश्मनी प्राकृतिक, जन्मजात नहीं होती बल्कि बदलती रहती है। यह स्थायी भाव नहीं है। अगर मनुष्य की सकारात्मक सोच बनी रहे तो दुनिया में शांति, सद्भाव, प्रेम का माहौल संभव है। हमें अपने अहम्, अहंकार, स्वार्थ, लोभ, मोह, दिखावे को काबू में रखने की जरूरत है। मानवीय मूल्य विकसित कर व्यापकता बढ़ाते हुए सहज, सरल, सादा जीवन जीने की और कदम बढ़ाने की आवश्यकता है। हमारी संस्कृति में वे भाव है। उनको अपनाने, उन पर चलने की बात है।
इस अंतर राज्य कार्यक्रम से एक उपलब्धि के रूप में सामने आई मित्रता, मैत्री भाव, मतभेद में भी संवाद, संपर्क, संबंध संभव है। मतभेद रहेंगे, रह सकते है, तब भी मनभेद नहीं बनाए। विविधता ताकत है, सुंदरता है, कमजोरी, मजबूरी नहीं। स्वीकार करना, समझना, सहेजना सीखें। सामने वाले को भी मौका दे। कोई भी शत प्रतिशत ना सही होता है, ना ही शत प्रतिशत गलत। सामने वाले की स्थिति को गौर से समझने का प्रयास करना है।इसी से मानवीय संबंधों का विकास संभव है। मानव से मानव का मुक्त मिलन चाहिए। श्री गंगा नगर का यह प्रवास एक मीठी यादगार है। प्रतियोगिता के पुरस्कार से कितना ही बड़ा पुरस्कार इसने हमें दिया यह समझ में आया।
*लेखक प्रख्यात गाँधी साधक हैं।