भोपाल: भारत का भगवान मंदिरों में नहीं प्रकृति में विद्यमान था। हमारी संस्कृति दोहन की रही है लेकिन वर्तमान शिक्षा पद्धति ने उसे शोषण की प्रवृत्ति में बदल दिया है, जिसके कारण पृथ्वी पर पर्यावरणीय संकट पैदा हुआ। विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर यह बात देश के जाने माने पर्यावरणविद और जल संरक्षक डॉ. राजेंद्र सिंह ने ऑनलाइन संबोधन में कही।
शनिवार को विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय ने इंडियन फेडरेशन ऑफ यूनाइटेड नेशंस एसोसिएशन नयी दिल्ली के साथ मिलकर ‘जल संरक्षण, पर्यावरण और युवा’ विषय पर विशेष उद्बोधन का आयोजन किया।
कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए डॉ. राजेंद्र सिंह ने कहा कि दुनिया के कई हिस्सों में पानी खत्म हो रहा है और लोग बेघर हो शरणार्थी बन रहे हैं। यह इकोलॉजिकल डिजास्टर चूंकि मनुष्य के लालची विकास का ही परिणाम है। इसलिए मनुष्य को ही सुधार की पहल करनी होगी। उन्होंने कहा कि साधारण भाषा में जिसे जलवायु चक्र की गड़बड़ी कहा जाता है उसे मैं धरती का बीमार होना कहता हूं, जिसके इलाज की आवश्यकता है। डॉक्टर राजेंद्र सिंह ने पीपीटी के माध्यम से उनके द्वारा अपनाए गए परंपरागत भारतीय जल संरक्षण मॉडल की सक्सेस स्टोरीज को समझाया।
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इससे पूर्व स्वागत उद्बोधन में इंडियन फेडरेशन ऑफ यूनाइटेड नेशंस एसोसिएशन नई दिल्ली के महासचिव सुरेश श्रीवास्तव ने कहा कि पारिस्थितिकीय संतुलन धरती के लिए आवश्यक है, सस्टेनेबल डेवलपमेंट के बिना पर्यावरण संरक्षण नहीं हो सकता। उन्होंने बताया कि 1992 में ब्राजील में हुए अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के बाद ही दुनिया में पर्यावरण के प्रति चिंता गंभीर विषय बना।
कार्यक्रम में इंडियन फेडरेशन यूनाइटेड नेशंस एसोसिएशन के मीडिया सलाहकार और वरिष्ठ पत्रकार एवं ग्लोबलबिहारी.कॉम के प्रधान संपादक पत्रकार दीपक पर्वतियार ने कहा कि जल संरक्षण के लिए परिणामजनक कार्य करने के लिए तपस्या और जुनून की आवश्यकता होती है, सिर्फ सुधार के बारे में सोचना ही पर्याप्त नहीं है।
अध्यक्षीय उद्बोधन में कुलपति प्रो. के.जी. सुरेश ने कहा कि पर्यावरण सामाजिक सरोकार और पर्यावरण संरक्षण में युवा पत्रकार बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर विद्यार्थियों द्वारा तैयार किये गए समाचार पत्र ‘संज्ञान’ का ऑनलाइन विमोचन करते हुए उन्होंने कहा कि समाज में पर्यावरण के प्रति जागरूकता जाने में पत्रकारिता एक प्रभावी माध्यम है। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय सामाजिक सरोकारों के लिए प्रतिबद्ध है। विश्वविद्यालय जैसी संस्थाएं आइसोलेट होकर कार्य नहीं कर सकती। समाज के प्रति उनकी कुछ जिम्मेदारियां एवं दायित्व होते हैं। कोरोना संकट के दौरान माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय ने अपने सामाजिक दायित्व का निर्वहन करने का प्रयास किया है।
इस अवसर पर विश्वविद्यालय की शोध जर्नल “मीडिया मीमांसा” और छात्रों की अभ्यास पत्रिका “संज्ञान” के नवीन अंको का विमोचन भी डॉ. सिंह के कर कमलों द्वारा किया गया। इस ऑनलाइन परिचर्चा का संयोजन सहायक प्राध्यापक सूर्य प्रकाश ने किया, कार्यक्रम के अंत में विश्वविद्यालय के कुलसचिव प्रो. पवित्र श्रीवास्तव ने आभार व्यक्त किया।
– ग्लोबल बिहारी ब्यूरो