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– खुशबू
नयी दिल्ली: संघर्ष से भरी यह कहानी है 45 वर्षीय काके और 36 वर्षीय उनके भाई बिट्टू की जो नयी दिल्ली के जलविहार क्षेत्र में साथ रहते हैं। इनके घर में और कोई सदस्य नहीं है। माने या ना माने पर गुलामी प्रथा के वर्षों पहले उन्मूलन होने के बावजूद आज काके हमारे शोषित समाज में गुलाम की ज़िन्दगी जीने को विवश हो गए थे। लॉक डाउन के दरम्यान इन्हें किसी का गुलाम बनने के लिए मजबूर होना पड़ा था, और वह भी सिर्फ एक हज़ार रूपये के लिए।
यह गौर तलब है कि हादसा देश के कोई दूर दराज के गाँव का नहीं पर देश की राजधानी में हुआ जो सिर्फ शर्मनाक ही नहीं परन्तु यह दर्शाता है कि किस प्रकार आज भी शोषण जारी है और किस प्रकार क़ानून का मख़ौल उड़ाया जा रहा है।
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लॉकडाउन से पहले दोनों भाइयों का जीवन ठीक-ठाक से चल रहा था। काके दिहाड़ी मजदूर हैं और दिन भर दिहाड़ी मजदूरी करने के बाद 300 से ₹400 कमाते जबकि बिट्टू दुकान में झाड़ू पोछे का काम कर महीने के 6000 रुपए का पगार पाते।
परंतु लॉकडाउन के दौरान दोनों की स्थिति अत्यधिक खराब हो गई जिसके कारण दोनों को एक वक्त का खाना भी मिलना मुश्किल हो गया। क्योंकि लॉकडाउन के बाद दोनों के काम बंद हो गए । आर्थिक परेशानियों को देखते हुए बिट्टू ने अपने दुकान के मालिक को फोन करके अपने बकाया पैसों की मांग की परंतु दुकान के मालिक ने पैसे देने से इनकार कर दिया और साथ ही उससे कि ” लॉकडाउन खुलने के बाद भी उसे काम पर आने की कोई आवश्यकता नहीं है। यह सुनते ही बिट्टू परेशान हो गया और सोचने लगा कि अगर पैसे नहीं मिलेंगे तो वह खाएंगे क्या ? यह बात उसने अपने बड़े भाई को बताई। यह सुनने के बाद बड़े भाई ने उसे दिलासा दिया और कहा “तुम परेशान मत हो हम कुछ ना कुछ कर लेंगे”। बड़े भाई ने बोला “अभी हम आस-पड़ोस के लोगों से कुछ पैसे उधार ले लेते हैं और अपना घर खर्च चलाते हैं और जब लॉकडाउन खुलेगा तो हम उनके पैसे वापस कर देंगे”।
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परंतु आस पड़ोस से जो पैसा मिला उससे सिर्फ उनका घर खर्च 3 दिन ही चल पाया। 3 दिन के पश्चात उन्होंने जब दोबारा अपने पड़ोसियों से उधार मांगा तो उन्होंने पैसे देने से साफ इंकार कर दिया। उसके बाद दोनों ही काफी परेशान हो गए कुछ समय बाद उनका पड़ोसी उनके घर आया और उनसे पूछा कि उन्हें लॉकडाउन में इतने पैसों की आवश्यकता क्यों पड़ रही है? तो उन्होंने बताया कि घर में खाने के लिए कुछ नहीं है जिसके लिए उन्हें पैसों की जरूरत पड़ रही है। यह सुनकर उनके पड़ोसी ने उन्हें बताया कि सरकार की तरफ से गरीबों को मुफ्त में दो टाइम का खाना मिल रहा है और वह भी दो वक्त का खाना वही से लाते हैं तो पड़ोसी ने उन्हें सुझाव दिया की वह भी वहीं से अपना भोजन ला सकते हैं । दोनों ही भाई पड़ोसी की बात सुनकर प्रसन्न हो गए परंतु थोड़ी ही देर पश्चात छोटे भाई ने बड़े भाई से कहा”खाना तो ठीक है परंतु हमें फिर भी कुछ पैसों की जरूरत तो पड़ेगी”। यह सुनकर बड़ा भाई निराश हो गया और उसने कहा कि”पैसों की आवश्यकता तो पड़ेगी परंतु हमारे पास तो पैसे हैं नहीं और हम इस लॉकडाउन में पैसे कहां से लाएंगे?”
थोड़ी देर सोच विचार करने के पश्चात बड़े भाई ने छोटे भाई को बोला मैं एक ऐसे व्यक्ति को जानता हूं जो हमें इस लॉकडाउन में भी उधार पैसे दे सकता है। यह सुनकर छोटे भाई को एक उम्मीद की किरण नजर आती है। वह दोनों तुरंत उस व्यक्ति के घर गए, उन्हें अपनी हालत बताया और उनसे मदद मांगी। वह व्यक्ति उनकी मदद करने के लिए तैयार तो हो गया और कहा कि वह उन्हें हजार रुपए अभी दे तो देगा परंतु उसके लिए एक शर्त है कि उसे उसकी दुकान पर एक महीना फ्री में काम करना होगा जिसके लिए वे उसे कोई भी पैसा नहीं देगा। पैसों की तंगी के कारण बड़े भाई को इस शर्त के आगे झुकना पड़ा। दुकान के मालिक ने उन्हें हजार रुपए दे दिए जिससे दोनों भाइयों ने जैसे तैसे लॉकडाउन में अपना घर खर्च चलाया। अनलॉक एक लगने के पश्चात शर्त के अनुसार बड़ा भाई उस व्यक्ति की दुकान पर पूरे दिन काम करने लगा। जिस कारण से वह अपनी दिहाड़ी मजदूरी नहीं कर पाता था। शर्त के अनुसार उसे दुकान पर काम करने का कोई पैसा नहीं मिल पा रहा था जिस कारण मैं अपना घर खर्च चलाने में असमर्थ होने लगा और छोटे भाई का काम छूटने के कारण उसे भी कोई रोजगार नहीं मिल रहा था। जिसकी वजह से वह घर पर ही रहता था। रोजगार ना होने के कारण उन दोनों की आर्थिक स्थिति काफी खराब हो गई थी। दो-तीन दिन उस व्यक्ति की दुकान पर काम करने के बाद काके ने उसे अपना हाल बताने कि कोशिश की : “साहब पूरा दिन आप की दुकान पर काम करने के बाद मुझे 1 रुपया भी नहीं मिल रहा है जिसके कारण मेरे घर की आर्थिक स्थिति बहुत खराब हो गई है और मुझे एक वक्त की रोटी के लिए भी संघर्ष करना पड़ता है।” उसने विनती की कि वे उनको दुकान पर 2 से 3 घंटे काम करवाने के पश्चात दिहाड़ी मजदूरी के लिए छोड़ दिया करें ताकि वह अपने रोज की रोजी रोटी का खर्च उठा सके। दुकान का मालिक उसे याद दिलाता है कि शर्त के अनुसार उसे पूरे एक महीना उसकी दुकान पर ही काम करना होगा जिसके लिए उसने उसे हजार रुपए दिए थे। पर काके उसे बोलता है “यदि वह दिहाड़ी मजदूरी नहीं करेगा तो खाएगा क्या”? परंतु दुकान का मालिक ने कुछ ना सुनी और अपनी बात पर अड़ा रहा।
शाम को दुकान से घर जाते वक्त पैसे ना होने के कारण काके बहुत ही निराश थे। निराशा के कारण घर जाने की हिम्मत न होने के कारण वह वहीं सड़क के किनारे बैठ गए। सड़क पर जाते हुए एक पुलिस वाले ने उसकी तरफ ध्यान दिया और उसके पास आकर उससे पूछा की वे सड़क के किनारे क्यों बैठा है और इतना परेशान क्यों लग रहा है? पहले तो काके पुलिसकर्मी को देखकर घबरा गए कोई जवाब नहीं दिया । वह पुलिसकर्मी ने जब एक बार फिर से वही बात दोहराई तो काके ने उसकी तरफ देखा और खड़ा होकर उससे कहा: ” मजबूरी के कारण मैं किसी का गुलाम बन गया हूं और उस गुलामी से ना तो मुझे और ना ही मेरे भाई को एक वक्त का खाना मिल रहा है जिसके कारण मैं परेशान हूं और मुझे समझ नहीं आ रहा है कि अब मैं क्या करूं।”
पुलिसकर्मी ने उनसे सारी बातें विस्तार से बताने को कहा। काके उस पुलिस कर्मी को अपने साथ घटी घटनाओं को बताते बताते रोने लगे। काके को रोता देख पुलिसकर्मी ने उन्हें दिलासा देते हुए कहा कि वह रोए नहीं क्योंकि सब ठीक हो जाएगा। उसने काके को कहा कि परेशान होने की जरूरत नहीं है। तब उस पुलिसकर्मी ने उसे ₹100 दिया और कहा कि इनसे वह खुद एवं भाई के लिए कुछ खाने के लिए ले ले। साथ ही वह यह कहता हुआ चला गए कि अगले दिन सुबह वह उससे यहीं मिले।
अगली सुबह काके उसी जगह पर बेसब्री से उस पुलिस कर्मी का इंतजार करने लगे और फिर कुछ देर इंतजार करने के पश्चात उस पुलिसकर्मी को आता देख खुश हो गए। पुलिसकर्मी उनके पास आया और कहा कि वह उसके साथ चले और बताये कि किसने उन्हें गुलाम बना कर रखा था । काके उस पुलिसकर्मी के साथ उस दुकानदार के पास पहुँच गए और बताया कि यही वह व्यक्ति था जिसने उसे गुलाम बनाया हुआ था।
काके के साथ पुलिसकर्मी को देख वह दुकानदार पहले तो घबरा गए और पूछा कि क्या बात है। जब पुलिसकर्मी ने दुकानदार को सख्ती से कहा कि वह हजार रुपए के लिए किसी को अपना गुलाम नहीं बना सकता तो जवाब में दुकानदार ने कहा कि काके ने हजार रुपए लेते वक्त उससे वादा किया था कि वह उसकी दुकान पर एक महीना बिना वेतन के काम करेगा।
दुकानदार की बात सुनने के बाद पुलिसकर्मी दुकानदार को कहा कि यदि वह पूरा दिन उसकी दुकान पर काम करेगा और वह भी बिना वेतन के तो वह अपनी दिहाड़ी मजदूरी कैसे करेगा जिससे वह अपना पेट भर सके ? साथ ही उसने दुकानदार को समझाने की कोशिश की कि इंसानियत के नाते उसका इतना फर्ज बनता है कि वह कुछ घंटे अपने पास काम कराने के पश्चात उसे उसकी दिहाड़ी मजदूरी के लिए जाने दे।
परंतु दुकानदार तो अड़ गए और उसने कुछ भी मानने से इनकार कर दिया । पुलिस कर्मी के आगे दुकानदार की अकड़ देख बेचारे काके ने तो दुकानदार के पैर पकड़ लिए और लगे गिड़गिड़ाने कि ऐसे में तो वह भूखा मर जायेंगे । तब पुलिसकर्मी ने उन्हें उठाया और कहा कि वह उनके साथ थाने चल इस दुकानदार के खिलाफ एफ आई आर दर्ज कराये। इतना सुनते ही दुकानदार घबरा गया और कहने लगा कि “ठीक है आज से यह सिर्फ सुबह 2 घंटे मेरे पास काम करेगा और उसके बाद यह अपनी तिहाड़ी मजदूरी के लिए जा सकता है” । साथ ही उसने यह भी कहा की एक महीने पश्चात यदि यह चाहे तो आगे भी काम कर सकता है जिसके लिए उसे हजार रुपए वेतन प्रतिमाह मिलेगा। यह सुन काके की ख़ुशी का ठिकाना ना रहा। वह तो पुलिसकर्मी के आगे हाथ जोड़ अपना आभार प्रकट करने लगा कि उसने इन्हें इस गुलामी से बाहर निकाला। पुलिसकर्मी ने कहा कि इंसानियत के नाते यह उसका कर्तव्य बनता था और किसी भी बात का समाधान निराश होकर नहीं निकलता। यह बोलकर पुलिसकर्मी वहां से चला जाता है। फिर काके भी अपने काम में लग गए और 2 घंटे पश्चात फिर से दिहाड़ी मजदूरी करने के लिए निकल पड़े । शाम को वह 400 की दिहाड़ी करके घर पहुँच बिट्टू से खुशी जाहिर किया। पर एक और खुशखबरी उनका इंतज़ार कर रही थी। बिट्टू ने उन्हें बताया कि उसे भी रोजगार मिल गया है। एक बार फिर से दोनों अपनी आगे की जिंदगी जीने में सक्षम हो जाते हैं। सच है कि भगवान् के घर देर है पर अंधेर नहीं। परन्तु यह भी दुखदायी है कि किस प्रकार आज भी लोग मौका मिलते ही दूसरों का शोषण करने से बाज नहीं आते। यदि वह पुलिस कर्मी ने समय रहते काके को नहीं देखा होता तो कहानी शायद कुछ और ही होती।
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