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श्रद्धांजलि
– डॉ. राजेंद्र सिंह*
आज रघुवंश प्रसाद सिंह जी हमारे बीच नहीं रहे ।पर मैं इतना बता दूं कि वे सिर्फ बिहार के ही नहीं बल्कि इस देश के गरीबों और गांव के नेता थे। उनके कारण नरेगा जैसी योजनाएं शुरू हुई। मैं अच्छे से जानता हूं कि जब 2006 में इस योजना को शुरू करने की बात चल रही थी तो उन्होंने मुझे बुलाया और कहा कि तुम्हारा पानी का काम मुझे देखने आना है और वो आए ।पहले दिल्ली में आए गांधी दर्शन की एक सभा में ।हम यात्रा शुरू कर रहे थे ।वह भी आए। असलियत में रघुवंश प्रसाद सिंह एक सरल, अपनी माटी और अपने लोग उनके एक गहरे चिंतक थे। हमारे मित्र है पी. वी. राजगोपाल जो 2007 में जनादेश यात्रा लेकर आ रहे थे तो उसका जो समापन था जिसको संपन्न करने के लिए उनकी मांगों पर बातचीत करने के लिए उन्हें पूरा करने के लिए खुद रघुवंश प्रसाद सिंह रामलीला मैदान आए। तब मैं सभा का संचालन कर रहा था और मैंने देखा कि कितनी सरलता से और बराबरी से वो बात करते थे। उनके दिल में कदाचित ये भाव नहीं था कि राजगोपाल पच्चीस हजार लोगों के साथ इतनी दूर से चल के दिल्ली कुछ मांगने आए है। बल्कि रघुवंश बाबू का तो ये मानना था कि राजगोपाल ने तो देश को जगाने की लोकचेतना करने कि और लोगो में विश्वास पैदा करने की यात्रा की है और इसलिए इनकी बातें है वो सब बहुत जरूरी और कामगर है और वो पूरी होनी ही चाहिए। सबको उनकी जमीन मिलनी ही चाहिए। घरबार चलाने के लिए रोजी रोटी और जमीन ये सब मिलना ही चाहिए।
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मैंने देखा कि जब भी मैं कभी पटना जाता था रघुवंश प्रसाद सिंह जी को पता चल जाए कि मैं पटना आया हूं तो वो बिना किसी औपचारिकता के वो पटना में मिलने चले आते थे। मुझे तो बल्कि बहुत संकोच होता था कि वो मुझसे उम्र में इतने बड़े थे फिर भी मुझसे मिलने आ गए। एक तरह से उनके अंदर जो सादगी थी और क्षमता का भाव था वो मुझे बहुत प्रभावित करता था और मुझे लगता था जब वो ऐसे राजनेता है तो फिर दुसरे राजनेता ऐसे क्यों नहीं होते।
मुझे बहुत अच्छे से याद है वो कहते थे कि मैं बिहार की जिस मिट्टी से बना हूं उस मिट्टी में एक से एक बड़े लोग पैदा हुए पले बढ़े और उस मिट्टी में आज भी भारत के सबसे ज्यादा मेहनती लोग बनते है। मशीनों से, हाथ से, सब तरह का काम करने वाले बिहार के जो लोग हैं, वो बहुत शमनिष्ठ हैं, शमशील हैं। ऐसे लोगो को कभी कभी है देश बिहारी कह कर छोड़ देता है। लेकिन हम लोगों ने जिस तरह से इस देश को बनाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, वो यह देश नहीं जानता ये हमारी सबसे बड़ी विडम्बना है। तो जो अपनी आजकल कि विडम्बनाएं है वो उनसे हमेशा दुखी रहते थे पर वो दुखी होकर किसी चीज को छोड़ कर अलग हो जाए ऐसे ये उनके स्वभाव में नहीं था। वो अपने जीवन में सब चीजों को साथ लेकर पूरा करने की कोशिश में लगे हुए थे।
रघुवंश प्रसाद सिंह ने अपनी जीवन लीला को सदाचार, ईमानदारी और हकदारी से सच्चे – सफल बिहारी के रूप में देश दुनिया में विशिष्ठ पहिचान बनाई । सफल सक्षम बिहारी कैसा होता है? वे यह दिखाकर अचानक चले गये। देश-दुनिया हेतु बहुत कुछ करके गये। अमर रहेंगे। उन्होंने डॉ0 राजेन्द्र प्रसाद जी की विरासत को अपनी मानकर जिया था। उसी को स्वयं बनाकर बिहार का नाम रोशन किया।
बिहार ने देश को सबसे बड़े व्यक्तित्व दिये हैं। उन्हीं में एक हैं रघुवंश प्रसाद सिंह। रघुवंश बाबू जी सत्ता में रहकर समाज का सम्मान करते हुए राष्ट्र निर्माण में लगे रहे। नरेगा योजना निर्माण काल में इन्हें मैंने करीब से देखा। वे अपने समाज को स्वावलंबी बनाकर रखना चाहते थे। उन्होंने अपने समाज को कभी भिखारी या सरकार के आधीन रखने का पक्ष नहीं लिया था। वे चाहते थे कि भारत ग्रामीणों का गणराज्य बने। गांधी के ग्राम स्वराज्य में उनकी आस्था और पूरा विश्वास था। इसका प्रमाण उनकी श्रमनिष्ठा थी।
जब चारों तरफ से नरेगा में बिना काम मजदूरी देना तय हो रहा था, उनकी अध्यक्षता में बैठक चल रही थी। उन्होंने कहा अगली बैठक में तय करेंगे। उसके बाद वे मुझसे मिले। टुकड़ों-टुकड़ों में लम्बी कई बार बात करके कहा ‘‘महात्मा गांधी से सीखना है, नरेगा में बिना काम मजदूरी नहीं देंगे।’’ मैंने ही कहा था, बिना काम मजदूरी नहीं देंगे और वे इसी बात पर अड़े रहे। मुझसे भी उन्होंने कई बार सलाह ली थी। वे सहज और सरल राजनेता थे। उनकी राजनीति सीधी थी। जो करना है, वही करना। बोले कुछ और करें कुछ दूसरा ही ऐसे वे नहीं थे। इसलिए मुझे उनसे बातचीत करने में कोई संकट नहीं होता था।
मैं आज तक कभी अपने किसी भी निजी काम के लिए भारत और दुनिया के किसी राजनेता से नहीं मिला। रघुवंश प्रसाद जी ने मुझ से आज तक दलगत राजनीति की बात कभी नहीं की थी। राष्ट्रहित में क्या होना चाहिए? क्या नहीं? सब यही चर्चा होती थी। कभी-कभी आज भी भारत में प्रेरक कौन बन सकता है? हमेशा अच्छी बातें ही होती थी। वे बातचीत में किसी की निन्दा नहीं करते थे। सरल विश्लेषक बहुत ही अच्छे थे। खेती और सरकार गाँव और ग्राम सभा के संबंधों में आधुनिक राजनीति ने क्या बिगाड़ा है? आदि सुनना-सुनाना बस यही थी हमारी चर्चा। वे भी बहुत बड़ी-बड़ी बातें नहीं करते थे। मुझे तो बड़ी-बड़ी बातें पसंद ही नहीं हैं। मैं तो जो करता हूँ, बस उसी की चर्चा करता हूँ। इसलिए रघुवंश जी को भी मेरा पता चल गया था। इसलिए गाँव और तरुण भारत संघ के काम की मर्यादा हम नहीं लाँघते थे। उन्हें मैं भी पहिचान गया था।
अब तो कई वर्षों से केवल पटना में ही मिलना होता था। वे सहजता से मिलने आते थे। बिना किसी ताम-झाम के मिलते थे। आते ही बोलते थे बिहार में भी कुछ करो-कराओ। मैं कहता आप हैं, करने वाले। मुस्कराते हुए वे बताने लगते। वे आजकल क्या कर रहे हैं? क्या करने का विचार है? फिर मैं भी अपना चिन्तन बताकर, ग्राम स्वराज्य और महात्मा गांधी की चुनौतियाँ और मनरेगा राजस्थान मैं कैसा चल रहा है? आदि पर चर्चा खत्म नहीं होती थी। बिहार में क्या हो रहा है? वे बिहार की जल और हरियाली के विषय में मुझसे जरूर बात करते थे। मेरी बात सुनकर कुछ अच्छी टिप्पणी करके कहते राजस्थान में आप सरकार से ‘‘जल और हरियाली शुरू कराओ।’’ वहां बहुत अच्छे मुख्यमंत्री हैं। वे सदैव सृजनात्मक बातों के साथ चर्चा का सम्मान करते थे। गहरे ग्रामीण ज्ञान से ओतप्रोत घाघ कवि के कृषि ज्ञान की बहुत सी बातें उन्हें स्मरण थी। इसलिए देश-दुनिया की बड़ी बात को भी ग्रामीण देशज स्वयं के अनुभव से सिद्ध करने की उन्हें आदत ही थी। विश्व जलवायु संकट, विश्व गर्मी आदि को भी वे अपनी मूल ज्ञान में ही बोलते रहे हैं। उनकी आत्मा सदैव इसी प्रकार राष्ट्र सेवा में जुटी रहेगी।
वो राजनीति में बिल्कुल एक अलग तरह के राजनेता थे जिनके ऊपर कभी भी लोकसत्ता का असर नहीं होता था। वो सत्ता में हो ,सत्ता से बाहर हो, अंदर हो उसका उन पर कभी भी प्रभाव देखने को नहीं मिला। और एक जीवन को सिद्धांत के साथ उनका जो सत्य है वो सर्वोपरि, हम जहां है जैसे हैं, वही सही। वो जिस पार्टी में थे उन्हें मान सम्मान ना भी मिले तो भी वो आखिरी दिन तक वहीं बने रहे। उन्होंने कभी भी दल बदल, ये वो सब, नहीं किया।
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आज के राजनेताओं को रघुवंश प्रसाद सिंह जी से बहुत सीख मिल सकती है यदि कोई सीखना चाहे तो। मैंने जो उनसे सीखा वो ये कि जब वो नरेगा शुरू कर रहे थे तो वो जब भीकमपुरा में हमारे तरुण भारत संघ के आश्रम में आए और हमारी यात्राओं में शामिल भी हुए तो उन्होंने पूछा कि ये तुमने कैसे लोगो को प्रेरित करके ये सब लोगों से तालाब, बंध जोड़ करके काम कर लिया। तो मैंने कहा कि लोग तो इस काम को स्वयं करना चाहते है। तो फिर कहने लगे कि हमारे जो अफसर लोग है वो नरेगा में कहते है कि लोग काम नहीं करते हैं। वो बिना काम करे पैसा मांगते हैं। तो मैंने कहा कि यदि आप उनकी जरूरत पूरी करने वाला काम नरेगा में शामिल करेंगे तो फिर वो लोग काम करने लगेंगे। तो उन्होंने कहा कि वो क्या है? तो मैंने कहा पानी का काम है। तो फिर उन्होंने अपने मंत्री काल में पानी को प्राथमिकता दी और कहा कि ये बहुत सारे हमारे साथी लोग ये चाहते थे कि नरेगा में बिना काम करे मजदूरी मिले। लेकिन मैं हमेशा कहता रहा कि देखो बिना काम के पैसे, और बिना काम करे दिन उनका खराब ही होगा। तो वो यदि अपने लिए काम करें, अपने लिए गांव का तालाब बनाने में थोड़ी मेहनत करें , गरीब से गरीब आदमी जिसके पास जमीन नहीं है, उसका भी पानी पर तो अधिकार है। उसकी बकरी को ,उसके जो जानवर हैं, उन सब को पानी मिलेगा। यदि तालाब में होगा तो। और धरती के पेट में पानी होगा तो उनको पानी पीने के लिए भी नहीं मिलेगा। पानी और जमीन का जो अधिकार है वो अलग अलग है। इसलिए पानी पर उनका अधिकार कायम रहेगा यदि वो पानी की सभी समस्याओं का निवारण करेंगे ।
ठीक है जो भी आज भूमिहीन है तो भी उनका पानी पर अधिकार रहेगा। ये बात उनको बहुत अच्छे तरीके से समझ में आ गई कि ये पानी का काम तो लोगों को पानीदार बनाएगा, उनमें विश्वास बनाएगा। और उन्होंने फिर नरेगा में पानी का काम बहुत जोरों से शुरु किया। नरेगा बाद के दिनों में फिर मनरेगा हो गई। तब भी पानी का काम उसमें बना रहा। जब उनके काल में मनरेगा का नाम नरेगा था तब मैंने कहा कि इसके कारण वृक्ष आरोपण, खेती, और जो खराब जमीन है, जमीन की फैंसिंग कर वाले । ये सब तरीके के काम गरीबों को मदद करने के और काम करने की प्रेरणा देने के लिए हैं । गांव में एक स्वावलंबी इकोनॉमी है उसको मजबूत करना चाहिए नरेगा से।
आज आपके सामने इतना बता दूं आज रघुवंश प्रसाद सिंह जी हमारे बीच नहीं है लेकिन उन्होंने गरीबों को गांव में स्वावलंबी बनाने के लिए वो सब कार्यकर्म शामिल लिए थे जिनसे गरीब, भूमिहीन, बेघर, लाचार को काम मिले, रोजगार मिले सम्मान मिले, और उनके जीवन, जीविका, जमीन उसमें चढ़ाव आए, समृद्धि आए। इसलिए जब भी मैं आज कि मनरेगा को देखता हूं तो मुझे रघुवंश प्रसाद सिंह जी का स्मरण ऐसे आ जाता है कि हां उस काल में कांग्रेस ने भी उनको मदद किया। कांग्रेस ने उनको मंत्री बना कर इस कि शुरुआत करवाई थी। रघुवंश प्रसाद सिंह कांग्रेस में नहीं थे। फिर भी नरेगा में बहुत अच्छा काम बिना किसी रुकावट के रघुवंश प्रसाद सिंह जी के काल में हुआ।
रघुवंश प्रसाद सिंह जी का ही वो कार्यकाल था जो दोबारा मनमोहन सिंह को जिता उनकी सरकार बना सकती थी। उनका जीवन बिहार के लिए, देश की लिए और देश के गरीबों और लाचारों के लिए, बेकारों और बीमारों के लिए, बहुत ही उनको चाहने वालों के लिए, उनको आगे बढ़ाने वाले, उनके जीवन की सारी संभावनाओं की तलाश करने वाले, के लिए समर्पित रहा। मैं जब बिहार गया मेरी यात्रा थी। गंगा की उस यात्रा में वो शामिल हुए। जब मैं यमुना सत्याग्रह कर रहा था दिल्ली में २००७ में तो सत्याग्रह में वो मंत्री होते हुए तीन बार आए। वो ग्रामीण विकास मंत्री थे। उनके अंदर लोगों का, प्रकृति का ,सम्मान था और उसी सम्मान के कारण उनकी जो सहजता थी, जीवन की जो सरलता थी, वो तो बिल्कुल अद्भुत सैल्यूट करने लायक है। आज हमारे बीच वे प्रत्यक्ष रूप में नहीं है पर मैं कहना चाहता हूं कि इस तरह की सरलता, सहजता, सादगी उन्होंने अपने जीवन के अंत तक बनाए रखा। ऐसी सीख हमारे देश के बहुत से राजनेताओं को उनसे लेनी चाहिए। जिससे दूसरे राजनेता भी रघुवंश प्रसाद सिंह जी कि तरह सरलता, सादगी और सद्भावना एक तरह से समरसता ये सब अपने काम में शामिल करके देश को आगे बढ़ाने का काम करे और गरीब को आगे बढ़ाने का काम करें।
उनके जीवन की बहुत सारी घटनाएं मुझे आज स्मरण हो रही है। जब मैं पानी पर उनके सामने बात कर रहा था तो उन्होंने मुझे बादलों की कहानी सुनाई कि बादल कैसे बरसते हैं और गाँव के लोग कैसे बादलों से पहचानते है कि ये बारिश वाला बादल है या खाली बादल है और वो जो बादलों के बारे में बता रहे थे वो बातें आज भी बिल्कुल खरी है। इसी तरह से जब वो ग्रामीण विकास मंत्री नहीं रहे तो गांव के तालाबों का पुनरुद्धार का काम सबसे जरूरी मानते थे। इसलिए उन्होंने अपने आप को अपने गांव से और गांव के लोगों से जोड़कर रखा। इसलिए आज कि राजनीति में गांव और गांव के लोग यदि इस कोविड – १९ में आत्मनिर्भर बनने के प्रधानमंत्री द्वारा दिखाए गए सपनों कि साकार करना चाहते है तो फिर रघुवंश प्रसाद सिंह जी का जो रास्ता था वो अपनाएँ कि गांव का अर्थतंत्र, गांव का संसाधन, और गांव के लोग उन सब का स्वावलंबन हो। जब तक गांव स्वावलम्बी नहीं होगा तब तक देश आत्मनिर्भर नहीं बन पाएगा। आत्मनिर्भरता कि सबसे पहली सीढ़ी है गांव का स्वावलंबन। गांव के स्वावलंबन के बिना राष्ट्र भारत जैसे राष्ट्र का स्वावलंबन होना कदाचित संभव नहीं है। यह उनका हमेशा हमारी बातचीत में संदेश रहता था। वो यह भी मानते थे कि भारत गांव का गणराज्य है। यदि भारत के गांव अपनी जरूरत गांव में पूरी कर लेंगे तो फिर शहरों पर निर्भरता नहीं रहेगी। इसलिए गांव में स्वावलंबन होना पहली जरूरत है। फिर हम आगे की बात कर सकते है।
वो एक राजनेता थे, राष्ट्रनेता थे मैं उनको शत शत नमन करके उनको बस इतना ही कहना चाहता हूं कि रघुवंश प्रसाद सिंह जी आपकी आत्मा जहां भी होगी वहां इस धरती के लिए, इस देश के लिए शांति से गरीबों को आगे बढ़ाने का काम करती रहेगी। आपकी आत्मा की शान्ति के लिए मैं प्रभु से प्रार्थना करता हूं। जय हिन्द ।
*लेखक जलपुरुष के नाम से विख्यात, मैग्सेसे और स्टॉकहोल्म वॉटर प्राइज से सम्मानित, पर्यावरणविद हैं।
– प्रस्तुति: लता
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