विरासत स्वराज यात्रा
– डॉ. राजेंद्र सिंह*
हरियाणा के मेवात क्षेत्र के मेवली गांव के स्थानीय निवासी शेरू का कहना है कि यदि यहां पहाड़ के ऊपर जोहड़ बन जाए तो पूरे साल उनके जानवरों को पानी पीने के लिए मिल जाएगा।
मेवली गांव में अभी खारा पानी है, यह पानी खेती और पीने के लायक नहीं है। इसलिए यदि यहां बांध बन जायेगें तो पानी मीठा हो जायेगा क्योंकि बारिश के भूजल पानी से जीवन चल जायेगा। यहाँ पहाड़ के नीचे के पुराने सभी सरकारी बांध टूटे हुए हैं। यहाँ के पहाड़ वीरान नंगे हैं और चोरी से चलने वाला खनन जारी है।
मेवात में महात्मा गांधी की एक भूमिका रही है और महात्मा गांधी के बाद विनोवा भावे ने यहां सामाजिक काम करके मेवात को बचाने का काम किया था। मेवात और गांधी का ऐतिहासिक रिश्ता रहा है। परबापू का ध्यान आजादी के समय यहां कटते जंगलों पर नहीं गया, क्योंकि तब पेड़ से पहले इंसान बचाना उनका लक्ष्य था। जोहड़ इंसान के लिए जरूरी है। इसलिए गांव के जोहड़ों पर उनका ध्यान जरूर गया। उन्होंने जोहड़ों के रखरखाव और सफाई पर कई बार गांवों में लोगों से कहा था। तालाब-जोहड़ो की सफाई भी कराई थी। गुजरात के उनके घर और राजकोट पोरबंदर ये सब मेवात जैसे जल संकट के क्षेत्र हैं। इसलिए उन्हें जोहड़ की जरूरत और महत्व का अहसास था। जोहड़ के निर्माण को जौहर ही समझते थे। तभी तो जोहड़ की सफाई आदि का आभास उन्हें हो गया और ग्राम स्वावलंबन कार्यों की सूची में जोहड़ भी शामिल कर लिया गया था।
सर्वोदय और भूदान में जोहड़ों पर कुछ काम हुए लेकिन बस औपचारिक काम की तरह से ही किए गए। जबकि जोहड़ को जौहर की जरूरत होती है। ग्राम समुदाय के सामूहिक निर्णय से स्थान चयन निर्माण की विधि-विधान सभी कुछ साझा श्रम, समझ, शक्ति से निर्मित जोहड़ 21वीं शताब्दी में भी खरा और जरूरी बन गया है क्योंकि आज धधकते ब्रह्मांड और बिगड़ते मौसम के मिजाज का समाधान जोहड़ ही है। जोहड़ समाज को जोड़ता है।
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जल के लिए होने वाले विश्व युद्ध से बचने का शांतिमय समाधान करने वाली व्यवस्था का नाम जल जौहर है। उसे ही जोहड़ कहते हैं। यह बढ़ती जनसंख्या-जनजल जरूरत पूरी करने वाली विकेंद्रित व्यवस्था है। समता, सरलता और सादगी से सबको जीवन देनेवाली बिना पाइप की जल व्यवस्था है।
बापू ‘हिंद स्वराज्य’ में भावी संकट का समाधान विकेंद्रित व्यवस्था द्वारा बताते हैं। जोहड़ वही सामुदायिक विकेंद्रित व्यवस्था है। इसे तोड़ने वाले अंग्रेजी राज को बापू ने जीते जी हटा दिया था। लेकिन अंग्रेजीयत नहीं हटी थी। इसे हटाने हेतु देशज ज्ञान का सम्मान, जोहड़ परंपरा को जीवित करके ही किया जा सकता है।
मेवात की पानी, परंपरा और खेती का वर्णन बापू ने जौहर से जोहड़ तक किया है। बापू कूदरत के करिश्मे को जानते और समझते थे। इसलिए उन्होंने कहा था ‘‘कुदरत सभी की जरूरत पूरी कर सकती हैं। लेकिन एक व्यक्ति का भी लालच पूरा नहीं कर सकती।’’ वे कुदरत का बहुत सम्मान करते थे। उन्हें मानने वाले भी कुदरत का सम्मान करते हैं। मेवात में उनकी कुछ तरंगे आज भी काम कर रही हैं। इसलिए मेवात में समाज श्रम से जोहड़ बन गए और अब नए भी बन रहे हैं। मेवात में बापू का जौहर जारी है।
आज की सबसे बड़ी विरासत जल और जंगल है। हम अपनी जैवविविधता को बचायेंगे, तो हमारा भाविष्य सुरक्षित और समृद्ध रहेगा। विकास के नाम पर हो रहे विनाश के कारण जंगल और जल पर संकट है। हमें अपनी जैवविविधता संरक्षण के लिए राज-समाज को सक्रीय होना चाहिए।
*लेखक जलपुरुष के नाम से विख्यात पर्यावरणविद हैं। प्रस्तुत लेख उनके निजी विचार हैं।