संस्मरण
– डॉ. राजेंद्र सिंह*
मलेशिया सुनामी का शिकार होकर विस्थापितों की संख्या बढ़ा रहा है
सिंगापुर से अलग होकर स्वतंत्र होने वाले मलेशिया ने अपना बहुत काम किया था। लेकिन इस देश की जल आपदा सतत् बढ़ती रही है। सुखाड़-अकाल-बाढ़-सुनामी सभी कुछ उष्णकटिबंधीय राष्ट्र होने के कारण सदैव आपदा प्रभावित होने की आशंका यहाँ बनी ही रहती है। जल आपदा का डर भी यहाँ के लोगों को विस्थापित करता है।मलेशिया में पूरे वर्ष गर्म मौसम के साथ उष्णकटिबंधीय जलवायु है। यह देश अक्सर सुनामी, बाढ़ और अन्य प्रकार की आपदा से प्रभावित रहता है।
मलेशिया में नदियों का अच्छा जाल है। यहां की पाहांग नदी दक्षिण पूर्व एशिया के मलेशिया देश के पाहांग राज्य में बहने वाली एक नदी है। 459 किमी के मार्ग वाली यह नदी मलय प्रायद्वीप की सबसे लम्बी नदी है। यह तितिवंगसा पहाड़ियों में उभरने वाली जेलाई और तेम्बलिंग नदियों के संगम से बनती है और आगे चलकर दक्षिण चीन सागर में बह जाती है।
यह भी पढ़ें : मेरी विश्व शान्ति जल यात्रायें – 28
लेकिन जल प्रबंधन अच्छा नहीं होने के कारण यह देश जल आपदा झेल रहा है। इसी कारण यहाँ के लोग भी बड़ी संख्या में विस्थापित होकर बाहर जा रहे है। यह सिंगापुर की तरह बेपानी देश नहीं है। इस देश में पर्याप्त प्राकृतिक संसाधन उपलब्ध है। यहाँ वर्षा जल पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है। यह देश सिर्फ कुप्रबंधन के कारण बेपानी बना है।
यहाँ की पहाड़ियों के वर्षा जल को जहाँ वर्षा होती है, वहीं वह पहाड़ियों से दौड़कर समुद्र की तरफ आता है। उसे वहीं पहाड़ियों पर चलना सिखा दें, जमीन पर आने पर रेंगना सिखायें। फिर वह धीरे-धीरे धरती का पेट पानी से भरेगा।
उष्णकटिबंधीय होने के कारण इसका वाष्पीकरण रोकना अत्यंत आवश्यक है। उष्णकटिबंधीय देशों में भू-जल पुनर्भरण के जल संरक्षण करना सबसे अच्छा होता है। इसमें जल क्षय नही होकर जल का भंडारण हो जाता है। यही भंडार सुखाड़-बाढ़ से बचने का सरल उपाय है। इस देश में जल प्रबंधन का परम्परागत और आधुनिक दोनों ही बहुत सफल नहीं कहे जा सकते है।
नदियों के जल पर समुद्र का भी अधिकार है। लेकिन इस देश में वर्षा जल का ठीक प्रबंधन संरक्षण-संवर्द्धन नहीं होने के कारण सारा ही जल मिट्टी काटता हुआ, समुद्र में ले जाता है। यहाँ मिट्टी का कटाव और बहाव अधिक होने से उत्पादन भी घट रहा है।
मेरे दोस्त मौलाना शाहीन कासना ने कहा कि यह दूसरों को अपने अंदर समायोजित करने की इच्छा रखता है लेकिन जल आपदा सुनामी से भयभीत होकर ही कुछ लोग विस्थापित होते है।
अब इस देश में जल निजीकरण ने बहुत तेजी से पाँव पसारे है। अंग्रेजों के आधीन सिंगापुर में जो जल का निजीकरण था ही, आजादी के बाद सामुदायीकरण की बातचीत हुई। क्रियान्वित नहीं हो सकी, बार-बार सामुदायीकरण प्रबंधन की तरफ इस देश को आगे बढ़ने के अवसर थे। कम्पनियों का शिकंजा यह देश तोडनें में असफल रहा है। सुनामी का डर तो इन्हें सदैव ही रहता है। छोटा सा देश लेकिन बाढ़-सुखाड़ और सुनामी का दुष्प्रभाव बहुत अधिक है। इसी कारण यहाँ से युवा ज्यादातर बाहर जाने, विदेश कम्पनियों में पैकेज तलाशते रहते है।
उष्णीय जलवायु में भी यहाँ आर्द्रता है, इसलिए जलीय एवं उष्णीय से संबंधित बहुत सी बीमारी यहाँ है। इनकी अपनी चिकित्सा पद्धति बहुत प्रभावी नहीं है। दवाई भी बहुत महंगी है। यहाँ की मानवीय कार्यक्षमता कम है। यहाँ पर मजदूरों की मांग अधिक नहीं है। बेरोजगारी, लाचारी, बेकारी और आवास इस देश की बड़ी समस्या है।
*लेखक जलपुरुष के नाम से विख्यात जल संरक्षक हैं। प्रकाशित लेख उनके निजी विचार हैं।