बिहार चुनाव – 2020
– प्रशांत सिन्हा
बिहार की राजनीति में नारी की भागीदारी बढ़ी है
यदि देखा जाये तो पिछले कुछ वर्षों में बिहार में जो चुनाव हुए हैं उनमें स्थानीय निकायों में तो महिलाओं की भागीदारी 50% है लेकिन विधान सभा और लोक सभा में अभी भी राजनीतिक दलों ने महिलाओं को टिकट देने में उतनी दिलचस्पी नहीं दिखाई हैं जितनी होनी चाहिए थी बिहार में पिछले विधान सभा चुनाव से केवल 26 महिलाएं विधान सभा पहुंचीं थीं। इस बार 2020 की विधान सभा चुनाव में उन्हें ज्यादा टिकटें मिलने की अपेक्षा की जा रही थी किन्तु अभी तक तो ऐसा नज़र नहीं आ रहा है।
अगर बात करें देश की सबसे बड़े दल भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की तो उन्होंने अब तक 110 उम्मीदवारों की सूची जारी की है जिसमें सिर्फ 12 महिलाओं को टिकट दिया गया है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड (जदयू) जिसने सबसे पहले बिहार में महिलाओं को पंचायत राज व्यवस्था में 50 % आरक्षण दिया था, उसने भी अब तक जारी किए गए 115 उम्मीदवारों की सूची में महिलाओं को सिर्फ 20 टिकट दिया है।राष्ट्रीय जनता दल (राजद) द्वारा अब तक 87 की सूची जारी की गयी है जिसमें 13 महिलाओं को दिए गए। वहीं कांग्रेस ने अब तक 45 उम्मीदवारों की सूची जारी की जिसमें केवल तीन महिलाएं शामिल हैं।बिहार में पिछले विधान सभा चुनाव से केवल 26 महिलाएं विधान सभा पहुंचीं थीं। इस बार 2020 की विधान सभा चुनाव में उन्हें ज्यादा टिकटें देने की अपेक्षा की जा रही थी किन्तु वे उसपर खरे उतरते नजर नहीं आ रहे हैं।
अगर बात करें देश की सबसे बड़े दल भाजपा की तो उन्होंने अब तक 110 उम्मीदवारों की सूची जारी की है जिसमें सिर्फ 12 महिलाओं को टिकट दिया गया है। नीतीश कुमार की पार्टी जदयू जिन्होंने सबसे पहले बिहार में महिलाओं को पंचायत राज व्यवस्था में 50 % आरक्षण दिया था वे भी जारी किए गए 115 उम्मीदवारों की सूची में महिलाओं को सिर्फ 20 टिकट दिए। राजद द्वारा 87 की सूची जारी किए गए जिसमें 13 महिलाओं को ही टिकट मिल पाया है। । वहीं कांग्रेस ने अब तक 45 उम्मीदवारों की सूची जारी की जिसमें केवल तीन महिलाएं शामिल हैं।
हालाँकि गौर तलब यह भी है कि एक समय ऐसा भी था जब बिहार की राजनीति में महिलाओं की भागीदारी न के बराबर होती थी ।लेकिन अब नारी शक्ति का दायरा बढ़ रहा है तो एक उम्मीद की किरण जाग रही है कि आने वाले समय में नारी शक्ति बिहार में दिशा निर्धारित करेगी और दशा में सुधार करेगी।इस बार पुष्पम प्रिया चौधरी नाम की महिला की चर्चा सिर्फ बिहार में ही नहीं बल्कि दिल्ली तक हो रही है। उन्होंने अखबार की पहली पन्ने पर विज्ञापन दिया था जिसमे लिखा था “मै बिहार बदलना चाहती हूं और इस बार बिहार की मुख्य मंत्री बनूंगी।” लंदन से पढ़ी पुष्पम ने प्लुरल्स पार्टी का एलान किया। उन्होंने छोटी उम्र की महिलाओं को टिकट दिया है। उनका दल क्या करेगा ये तो वक़्त बताएगा लेकिन इससे महिलाओं का मनोबल ज़रूर बढ़ेगा।
हालांकि धीरे ही सही पर महिलाओं की बिहार की राजनीति में भागीदारी अवश्य बढ़ रही है। राज्य में महिला सशक्तिकरण धीरे ही सही पर हो रहा है। अब ये जानना ज़रूरी है कि इस बदलाव के कारण क्या है ? कह सकते हैं कि महिलाओं की सशक्तिकरण में पंचायत चुनाव का खास योगदान है। बिहार सरकार ने आधी आबादी को पंचायत में पचास फीसदी आरक्षण दी जिससे समाज में बदलाव आया है। पिछले चुनाव में महिलाओं ने अनारक्षित सीटों पर भी जीत का परचम लहराया था। यही नहीं पिछले विधान सभा चुनाव में 53 % महिलाओं ने वोट डालकर अपनी भागीदारी बढ़ाई है। महिलाएं बड़ी संख्या में स्थानीय निकायों और पंचायतों में चुनकर आ रही है। राजनीति में नारी शक्ति का एहसास होते ही अब पुरुष मुखिया पति, पार्षद पति के रूप में जाने जा रहे हैं जबकि पहले लोग नारी का नाम भी नहीं जानते थे। लेकिन बदलते राजनितिक हालत की वजह से यह सब संभव हो सका। महिलाओं ने समाज को बताने की कोशिश की है कि अपने दायित्व निभाने का उनका हुनर किसी से कम नहीं है। पिछले चुनावों में कई स्थान पर ऐसे उदाहरण मिले है जब महिलाओं ने अपने पतियों के इशारों पर वोट डालने से इंकार किया। नीतीश कुमार को विधान सभा में मिले जनादेश में महिलाओं की भूमिका अहम रही।
ऐसी महिलाओं की भागीदारी ने मुखिया पति, पार्षद पति, प्रधान पति की संकल्पना को खत्म किया है। शुरुआत में माना जाता था कि मुखिया पति / प्रधान पति ही गांव की पंचायत चलाते हैं लेकिन अब ऐसी कोई बात नहीं है। अब महिला ग्राम प्रधान आगे आकर पंचायतों का नेतृत्व कर रही है। सत्ता उनके हाथों में आने के बाद लड़कियां ज्यादा संख्या में स्कूल जाने लगी हैं। बिहार में कम उम्र में लड़कियों की शादी के मामले में भी भारी कमी आई है। राज्य में अब 75 % महिलाएं घरेलू मामलों में फैसले लेने की हिस्सेदारी बढ़ी है। राज्य में घरेलू हिंसा में भी काफी सुधार हुआ है। जागरूक और सशक्त महिलाएं अपने परिवार और बच्चों को ज्यादा अच्छी तरह खयाल रखती हैं।
सत्ता जब से महिलाओं के हाथ में है वह परिवार नियोजन और बच्चों के टीकाकरण जैसी क़दमों को ज्यादा उठा रही है और दूसरों को भी जागरूक कर रही है। मुखिया, पार्षद, विधायक और सांसद की भूमिका में महिलाओं का बढ़ता वर्चस्व सकून दायक है। क्योंकि पुरुषों के मुकाबले वह ज्यादा संवेदनशील होती है और लोगों की भावनाओं का कद्र पुरुषों के मुकाबले उनमें ज्यादा होता है।
रूढ़िवादी ताकतों के सामने महिला सशक्तिकरण की अलग इबादत लिखकर समाज को आइना दिखाने का काम कर रही है। बिहार में महिलाएं अब अबला नहीं है और आत्म निर्भर हो रही है। शौचालय आदि बनवाने में भी महिलाओं का ही योगदान रहा है। आज प्रत्येक क्षेत्र में नारी शक्ति का वर्चस्व बढ़ता जा रहा है तथा पुरुषों की प्रतिद्वंदी बनती जा रही है। शिक्षा एवं प्रतियोगिता के क्षेत्र में अपना लोहा मनवा रही है और अपना वर्चस्व को बढ़ाने में जुटी है।ज़रुरत है उन्हें बढ़ावा देने की।
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