दुनिया की नदियां – 7
– डॉ. राजेंद्र सिंह*
नील नदी विश्व की सबसे लम्बी है जो अफ्रीका की सबसे बड़ी झील विक्टोरिया से निकलकर विस्तृत सहारा मरुस्थल के पूर्वी भाग को पार करती हुई उत्तर में भूमध्यसागर में मिल जा़ती है। नील नदी की लंबाई लगभग 6,695 किलोमीटर (4,160 मील) है। यह भूमध्य रेखा के निकट भारी वर्षा वाले क्षेत्रों से निकलकर, दक्षिण से उत्तर क्रमशः युगाण्डा, इथियोपिया, सूडान, इथियोपिया, टर्की एवं मिस्र से होकर बहते हुए काफी लंबी घाटी बनाती है, जिसके दोनों ओर की भूमि पतली पट्टी के रूप में शस्यश्यामला दिखती है। यह पट्टी संसार का सबसे बड़ा मरूद्यान है।
नील नदी की दो प्रमुख सहायक नदियाँ- व्हाइट नील और ब्लू नील हैं। व्हाइट नील नदी का उद्गम मध्य अफ्रीका के ‘महान अफ्रीकी झील’ (अफ्रीकन ग्रेट लेक्स) क्षेत्र से होता है, जबकि ब्लू नील का उद्गम इथियोपिया की ’लेक टाना’ से होता है।
नील नदी का बेसिन काफी विशाल है और इसमें तंजानिया, बुरुंडी, रवांडा, कांगो और केन्या आदि देश शामिल हैं। नील नदी की घाटी एक सँकरी पट्टी सी है, जिसके अधिकांश भाग की चौड़ाई १६ किलोमीटर से अधिक नहीं है, कहीं-कहीं तो इसकी चौड़ाई २०० मीटर से भी कम है। इसकी कई सहायक नदियाँ हैं, जिनमें श्वेत नील एवं नीली नील मुख्य हैं। यह अपने मुहाने पर १६० किलोमीटर लम्बा तथा २४० किलोमीटर चौड़ा विशाल डेल्टा बनाती है। घाटी का सामान्य ढाल दक्षिण से उत्तर की ओर है। मिस्र की प्राचीन सभ्यता का विकास इसी नदी की घाटी में हुआ है। इसी नदी पर मिस्र देश का प्रसिद्ध अस्वान बाँध बनाया गया है।
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नील नदी की घाटी का दक्षिणी भाग भूमध्य रेखा के समीप स्थित है, अतः वहाँ भूमध्यरेखीय जलवायु पायी जाती है। यहाँ वर्ष भर ऊँचा तापमान रहता है तथा वर्षा भी वर्ष भर होती है। वार्षिक वर्षा का औसत २१२ से. मी. है। उच्च तापक्रम तथा अधिक वर्षा के कारण यहाँ भूमध्यरेखीय सदाबहार के वन पाये जाते हैं। नील नदी के मध्यवर्ती भाग में सवाना तुल्य जलवायु पायी जाती है, जो उष्ण परन्तु कुछ विषम है एवं वर्षा की मात्रा अपेक्षाकृत कम है। इस प्रदेश में सवाना नामक उष्ण कटिबन्धीय घास का मैदान पाया जाता है। यहाँ पाये जाने वाले गोंद देने वाले पेड़ों के कारण सूडान विश्व का सबसे बड़ा गोंद उत्पादक देश है। उत्तरी भाग में वर्षा के अभाव में खजूर, कँटीली झाड़ियाँ एवं बबूल आदि मरुस्थलीय वृक्ष मिलते हैं। उत्तर के डेल्टा क्षेत्र में भूमध्यसागरीय जलवायु पायी जाती है जहाँ वर्षा मुख्यतः जाड़े में होती है।
नील नदी एक दशक से चल रहे जटिल विवाद को लेकर केंद्र में है, इस विवाद में कई देश शामिल हैं, जो नदी के जल पर निर्भर हैं। इस विवाद का प्रमुख कारण ग्रैंड रेनेसां डैम इथियोपिया द्वारा 145 मीटर लंबे (475 फुट लंबा) पन-बिजली प्रोजेक्ट का निर्माण शुरू किया जाना है ।
बाँध के चलते इथियोपिया नील नदी के जल पर नियंत्रण कर सकता है। यह मिस्र के लिये चिंता का विषय है क्योंकि मिस्र नील नदी के अनुप्रवाह क्षेत्र में स्थित है। ब्लू नील, नील नदी की एक सहायक नदी है और यह पानी की मात्रा का दो-तिहाई भाग तथा अधिकांश गाद को वहन करती है। इस विवाद में सबसे आगे इथियोपिया, मिस्र और सूडान हैं, क्योंकि इथियोपिया का मानना है कि, बाँध निर्माण से लगभग 6,000 मेगावाट विद्युत उत्पन्न की जा सकेगी। इथियोपिया की 65 प्रतिशत आबादी वर्तमान में विद्युत की कमी का सामना कर रही है। इस बाँध निर्माण से देश के विनिर्माण उद्योग को मदद मिलेगी तथा पड़ोसी देशों को विद्युत की आपूर्ति किये जाने से राजस्व में वृद्धि की संभावना है।
केन्या, सूडान, इरिट्रिया और दक्षिण सूडान जैसे पड़ोसी देश भी विद्युत की कमी से प्रभावित हैं और यदि इथियोपिया उन्हें विद्युत बेचने का फैसला करता है, तो वे भी जलविद्युत परियोजना से लाभान्वित हो सकते हैं। यह मिस्र के लिये भी चिंता का विषय है क्योंकि मिस्र नील नदी के अनुप्रवाह क्षेत्र में स्थित है। मिस्र का मानना है कि, नदी पर इथियोपिया का नियंत्रण होने से उसकी सीमाओं के भीतर जल स्तर कम हो सकता है। मिस्र पेयजल और सिंचाई की आपूर्ति के लिये आवश्यक पानी के लगभग 97 प्रतिशत हेतु नील नदी पर निर्भर है। यह बाँध मिस्र के आम नागरिकों की खाद्य और जल सुरक्षा तथा आजीविका को खतरे में डाल सकता है।
इसमें सूडान भी इस बात से चिंतित है कि, यदि इथियोपिया नदी पर नियंत्रण करता है तो यह सूडान के जल स्तर को प्रभावित करेगा। बाँध से उत्पन्न बिजली से सूडान को लाभ होने की संभावना है। नदी का विनियमित प्रवाह सूडान को अगस्त और सितंबर माह में आने वाली गंभीर बाढ़ से बचाएगा। इस प्रकार इसने बाँध के संयुक्त प्रबंधन का प्रस्ताव दिया है।
25 से 28 अप्रैल 2017 तक काहिरा में नील नदी का सम्मेलन आयोजित हुआ था। जिसमें मैं शामिल हुआ था। इस सम्मेलन की शुरुआत में नील नदी के बारे में जानकारी दी गई और उसके समाधान के लिए केवल आधुनिक तकनीक से समाधान सुझाये जा रहे थे। हम जानते हैं कि किसी भी नदी की समस्या का समाधान केवल तकनीक व इंजीनियरिंग से नहीं है। उस प्रस्तुति से मैं खुश नहीं था, लेकिन बहुत ध्यान से सुना।
27 तारीख को इस नदी से संबंधित सभी देश- मिस्र व अन्य 6 देशों के सरकारी अधिकारी थे। यह नदी इथियोपिया से आरंभ होती है। दूसरे देशों के लोग इसमें गंदा पानी नहीं मिलाते, इसलिए मिस्र पहुँचते हुए भी इसका जल साफ़ रहता है। मैं प्रतिदिन नील नदी के अलग-अलग क्षेत्रों में जाता था। इसकी सेहत दूसरी नदियों के मुकाबले बहुत खराब नहीं थी। परंतु इस नदी के जल बँटवारे पर बहुत विवाद हैं। उन सभी विवादों पर यहाँ चर्चा हुई। सस्टेनेबल डेवलपमेंट की बैठक में मेरा ही बीज भाषण हुआ। उसमें टर्की ने बहुत सवाल उठाये। खासकर 6 बडे़ बाँधों के विषय पर लम्बी चर्चा हुई। मैं उस नदी के 6 देशों में गया था। यह अफ्रीका के लिए जीवनरेखा है, लेकिन आपसी विवादों में फंसी है।
यहाँ के संग्रहालय में यहाँ की संस्कृति-समृद्धि में नदी की भूमिका मुझे अच्छे से समझ आयी। नदियों के किनारे ही सभ्यतायें और संस्कृति समृद्ध बनती है। मुझे मिस्र के लोगों ने इस नदी बेसिन की यात्रा कराई। विवाद की जड़ भी समझायी। मैंने समाधान पर बातचीत करी, लेकिन इथियोपिया अपना आर्थिक लाभ छोड़ने वाला नहीं है। पाँच दिन के लम्बे संवाद में आगे बातचीत के रास्ते बने।
25 से 28 तक आयोजित इस बैठक में मेरे अनुभवों को सुनने व समझने के लिए मुझे बुलाया था। मैं जानता था कि, सुनने वाले लोग इंजीनियरिंग, तकनीक के विशेषज्ञ व प्रशासनिक बड़े अधिकारी थे। फिर भी तरुण भारत के काम को, खासकर कम वर्षा के बावजूद नदियों में जल बहने लगा। इस विषय पर उनकी आश्चर्यजनक रुचि थी। इसलिए मैंने भी इन अनुभवों को अधिक समय माँग कर बात रखी। उसके बाद मैंने सभी को भारत में अपना काम दिखाने के लिए सादर आमंत्रित किया। वे सब बहुत प्रसन्न हुये और मुझसे समय माँगने लगे। मैं स्वयं सभी से मिला। सभी को नदी पुनर्जीवन कार्य देखने-समझने में खास रुचि दिखाई दी।
मैं इस सम्मेलन में पहले दो दिन पूरा इस नदी को जगह-जगह देखने-समझने में लगाये थे। फिर संवाद को आगे बढ़ाने में अपनी भूमिका निभाई। आर्थिक लाभ की जटिलतायें, गणनाओं, अभियांत्रिकी प्रौद्योगिकी से हल करना चाहते है। इन्हें ऊपर-नीचे किया जा सकता है। लेकिन कदाचित यह रास्ता स्थाई समाधान नहीं बनाता है। इन गणनाओं की मदद से बातचीत आगे बढ़ती है। संवाद शुरु होता है। संवाद से समाधान की आशा जगाती है। इसके जटिल विवाद के समाधान की आशा जगाने में सफलता मिली।
*लेखक स्टॉकहोल्म वाटर प्राइज से सम्मानित और जलपुरुष के नाम से प्रख्यात पर्यावरणविद हैं। यहां प्रकाशित आलेख उनके निजी विचार हैं।