दुनिया की नदियां – 3
– डॉ. राजेंद्र सिंह*
युफ्रेटस पश्चिम एशिया की सबसे लम्बी नदी है। युफ्रेटस नदी टर्की से आरंभ होकर सीरिया होते हुए ईराक, शत अलअरब में जाकर के समुद्र में मिलती है। 2880 कि.मी. लम्बी यह नदी भारत की गंगा से 350 कि.मी. अधिक लम्बी है। इसका क्षेत्रफल 5 लाख वर्ग कि.मी. है। मेसोपोटामिया सभ्यता से सम्बद्ध होने के कारण, यह एक ऐतिहासिक महत्व की नदी भी है। मैंने, युफ्रेटस नदी के टर्की स्थित स्रोत से यात्रा शुरू की। वहाँ देखा कि टर्की ने युफ्रेटस नदी पर अतातुर्क नाम का एक बहुत बड़ा बाँध बनाया है। इस बाँध ने युफ्रेटस के पानी को पूरी तरह बाँध रखा था। अतातुर्क बाँध के आगे युफ्रेटस नदी एक तरह से खत्म ही दिखाई दी।
मुझे बताया गया कि सीरिया की बहुत बड़ी आबादी को अपनी खेती, मछली और रोजमर्रा की जरूरत के पानी के लिये, सदियों से इसी नदी का ही सहारा रहा है। मैंने खेत देखे और लोगों से बातचीत की तो पता चला कि नदी क्यों बँधी। नदी किनारे के सीरियाई भू-भाग की खेती भी उजड़ी और लोग भी। हजार-दो हजार नहीं, लाखों की आबादी उजड़ी। उजड़ने वाले लेबनान गए, फिर ग्रीस और यहाँ से टर्की गए। टर्की से होते हुए जर्मनी, यू.के. स्वीडन, नीदरलैंड, ऑस्ट्रिया, बेल्जियम और यूरोप के देशों तक पहुँचे। अकेले जर्मनी में पहुँचे विस्थापितों की संख्या करीब साढ़े 12 लाख है, फ्रांस और यू. के. में पाँच-पाँच लाख, स्वीडन में चार लाख तो बेल्जियम में ढाई लाख के करीब विस्थापित लोग आये हैं। ऑस्ट्रिया में पहुँचने वालों की संख्या भी लाखों में है और यूरोप के 20 देशोंं में तो एक बहुत बड़ी आबादी पहुँची है। एक देश से उजड़कर दूसरे देश में बसने वालों की तादाद पूरी दुनिया में तेजी से बढ़ रही है।
गौर करने की बात है कि, विस्थापित आबादी, सबसे ज्यादा यूरोप के नगरों में ही पहुँची है। इससे नगरों में बेचैनी बढ़ी है। मैंने जब पता किया कि, विस्थापितों के एक स्थान से दूसरे स्थान पर भटकने के क्या कारण हैं? तो पता चला कि स्थानीय नागरिकों से तालमेल न बैठ पाना अथवा भूख मिटाने का इन्तजाम न हो पाना तो था ही; रिफ्यूजी का दर्जा मिलने में होने वाली देरी और मुश्किल भी इसका एक प्रमुख कारण था।
मैं खुद यहाँ के चार विस्थापित परिवारों को लगातार ट्रैक कर रहा हूँ। खलील, अलाह, अहमद और यामीन। खलील और यामीन – फिलहाल, यूके डालटिंगटॉन में हैं। अलाह और अहमद – यूके के ट्रस्कट्रन में हैं। इन चारों के परिवारों को तीन साल बाद रिफ्यूजी घोषित किया गया था।
खलील – सीरिया के बास्ते अही बियर कस्बे से आया है। खलील के विस्थापन से पूर्व, उसके कस्बे की आबादी एक लाख से ज्यादा थी; अब वहाँ 7000 ही बचे हैं। खलील के साथ-साथ इसके सात भाई और तीन बहनों को भी उजड़ना पड़ा। सारा परिवार बिखर गया। आइमान- जर्मनी में, कासिम, सलीम और सेमल- लेबनान में, जलाल- नार्वे में तो खलील और यामीन- यूके में हैं। 65 वर्ष की बहिन इवा – सीरिया में पड़ी है। 54 साल की फातिमा और 44 साल की इमान तथा इनके परिवार लेबनान में हैं।
इस परिवार को सामने रखकर आप कल्पना कीजिए कि उजड़ने का दर्द कितना बड़ा और अपूरणीय हो सकता है। क्या कोई मदद… कितना ही बड़ा मुआवजा इस दर्द की भरपाई कर सकता है? नहीं। पहली बार जब मैं खलील से मिला तो उसके परिवार के भटकने की कहानी सुनकर और उनके रहन-सहन के हालात देखकर मेरी खुद की आँखें नम हो गईं। खलील ने बताया कि अपने कस्बे से उजड़कर जब लेबनान पहुँचा तो कैसे वहाँ उसकी पत्नी इका, दो बेटे और एक बेटी.. सभी बीमार पड़ गए थे; कैसे उनका मरने जैसा हाल हो गया था। लोग, उससे और उसके परिवार से नफरत करते थे। इसलिये उसे लेबनान छोड़ना पड़ा।
2017 में रिफ्यूजी घोषित होने के बाद से खलील और उसका परिवार यू.के. डालटिंगटॉन में है। पता चला कि सुसी और सेक नामक दम्पत्ति ने यहाँ इनकी बहुत सेवा की है। अब वह वहाँ सुमाखर कॉलेज में सब्जियाँ बेचने उगाने का काम करता है। चार दिन पहले मिला, तो गले मिलकर खुशी से नाचने लगा।
अहमद – यामीन का बेटा है। यामीन, सीरिया की राजधानी का रहने वाला है। वहाँ से उजड़ने के बाद अब यूके डालटिंगटॉन में है। वहीं पर नौवीं कक्षा में पढ़ता है।
अलाह – दोराह का रहने वाला है। अलाह को 2014 में ही घर छोड़ना पड़ा। पहले वह लेबनान गया; फिर करीब डेढ़ साल तुर्की में रहा। मल्टी बेस अपरलैंड में रहने के बाद अलाह करीब पाँच महीने तक डोम्सडोनिया में रहा। फिर फ्रांस के कैलेट शहर के जंगल में तीन दिन रहने के बाद अब वह टस्कॉन में है।
यामीन भी टस्कॉन में है।
मैं आपको किस-किस के उजाड़ की कहानी बताऊँ? उजड़ने वाले परिवारों से मिलिए तो एहसास होता है कि पानी भगवान का दिया कितना महत्त्वपूर्ण उपहार है! हमारी हवस और नासमझ करतूतों के कारण हमने पानी को उजाड़ और युद्ध का औजार बना दिया है। पानी, प्रकृति की अनोखी नियामत है। कोई इसे अपना निजी कैसे बता सकता है? अन्याय होगा तो तनाव और अशान्ति होगी ही।
गौर करने की बात है कि युफ्रेटस के प्रवाह में सीरिया का योगदान 11.3 प्रतिशत और इराक का शून्य है, जबकि पानी की कमी वाले देश होने के कारण सीरिया, युफ्रेटस के पानी में 22 प्रतिशत और इराक 43 प्रतिशत हिस्सेदारी चाहता है। गौर करने की बात यह भी है कि सीरिया और इराक में पानी की कमी का कारण तो आखिरकार टर्की द्वारा युफ्रेटस और टिग्रिस पर बनाये बांध ही हैं। किंतु टर्की इस तथ्य की उपेक्षा करता है। वह सीरिया और इराक की माँग को अनुचित बताकर उसे हमेशा अस्वीकार करता रहा है।
सीरिया में जब तक युफ्रेटस नदी का प्रवाह कायम था, सीरिया में रेगिस्तान के फैलाव की गति उतनी नहीं थी। युफ्रेटस के सूखने के बाद रेत उड़कर सीरिया के खेतों पर बैठनी ही थी, सो बैठी। नतीजा तेजी से फैलते रेगिस्तान के रूप में सामने आया। सीरिया-इराक का पानी रोकते वक्त, टर्की ने यह नहीं सोचा होगा कि यह आफत पलटकर उसके माथे भी आयेगी। रेगिस्तान के फैलाव ने खुद संयुक्त राष्ट्र संघ को इतना चिंतित किया कि उसने रेगिस्तान रोकने की उच्च स्तरीय मशविरा बैठक को टर्की के अंकारा शहर में ही युएनसीसीडी – आर की बैठक को आयोजित किया।
दरअसल, टर्की यह समझने में असमर्थ रहा कि जब तक लोगों को अपनी धरती और राष्ट्र से प्रेम रहता है, संकट चाहे जलवायु परिवर्तन का हो, आजीविका का हो अथवा आतंकवाद का हो, वह ज्यादा समय टिक नहीं सकता। कोई दूसरा-तीसरा बाहर से आकर किसी देश में आतंक पैदा नहीं कर सकता। आतंक सदैव राष्ट्रप्रेम की कमी के कारण ही पैर फैला पाता हैं।
आतंकवाद से दुष्प्रभावित सभी क्षेत्रों में यही हुआ है। ईराक में और टर्की में भी। युफ्रेटस नदी के तीनों देशोंं में सत्ता ने जिस तरह प्रकृति और इंसान को नियंत्रित करने की कोशिश की, उसका दुष्परिणाम तो आना ही था। वह प्रकृति और मानव के विद्रोह के रूप में सामने आया।
यदि हम युफ्रेटस में 17.3 अरब क्यूबिक मीटर जल की उपलब्धता के आँकडे़ देखे तो संबंधित तीन देशों की माँग की पूर्ति संभव नहीं दिखती। इस माँग-आपूर्ति के असंतुलन से तीनों देशों के भीतर तनाव बढ़ना ही था, सो बढ़ा। दूसरी ओर सीरिया विस्थापितों द्वारा वाया टर्की, जर्मनी, फ्रांस, स्वीडन जाने की प्रक्रिया ने पूरे रास्ते को खटास से भर दिया। टर्की और ईराक के लोगों द्वारा सीरिया के विस्थापितों के घरों और ज़मीनों पर कब्जे की हवस ने पूरा माहौल ही तनाव और हिंसा से भर दिया। इस हवस ने हिंसा को टर्की में भी पैर पसारने का मौका दिया। जिन्हें उजाड़ा था, वे ही सिर पर आकर बैठ गये।
टर्की के प्रोफेसर सांधी ने एक सभा में कहा – ’’हम तो रिफ्यूजी होस्ट कन्ट्री हैं, बजट का बहुत बड़ा हिस्सा तो शरणार्थिंयों की खातिर खर्च हो जाता हैं।’’
अब कोई टर्की से पूछे कि सीरिया और ईराक में शरणार्थी किसने पैदा किए ? टर्की द्वारा युफ्रेटस और टिग्रिस पर बाँधों ने ही तो। टर्की ने ही तो यह आत्मघाती शुरुआत की थी।
मैंने ’डेमोक्रेटिक’ अखबार में सोफिया की रिपोर्ट पढ़ी। उसमें लिखा था कि 15 जुलाई, 2016 को टर्की सैनिकों ने हेलीकॉप्टर और फाइटर जेट विमानों से हमले किये। अंकारा और इस्तानबुल की अपनी गलियों में ही टैंक उतार दिये। पार्लियामेंट की इमारत पर बम फेंका। इस कार्रवाई में 2000 लोग घायल हुए और 300 लोगों की मौत हुई। स्थानीय संगठन, हिज़मत के सूफी संस्थापक गिलान ने इसे राष्ट्र के इस्लामीकरण की कार्रवाई के तौर पर देखा।
यही मुद्दा असलियत में पानी का था। राइटिस्ट चालों ने उसे सांप्रद्रायिक बना दिया। इसी का नतीजा है कि टर्की आज खुद भी एक अस्थिर देश है। आप देखिए कि शिया-सुन्नी तनाव की आंच सिर्फ युफ्रेटस के देशोंं तक सीमित नहीं रही, यह जर्मनी भी पहुँची। जनता ने विरोध किया तो चांसलर को बदलना पड़ा। जर्मनी के हनोवर में पिछले दो साल में चार बार तनाव हुआ। मुझे भी रिफ्यूजी लोगों से मिलने में बहुत दिक्कत हुई।
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हमें यह बार-बार याद करने की ज़रूरत है कि दुनिया में फैली इस अशांति की जड़ में कहीं न कहीं पानी है। अब आप फिलिस्तीन को ही ले लीजिए; फिलिस्तीन, पानी की कमी वाला देश है। फिलिस्तीन के पश्चिमी तटों पर एक व्यक्ति को एक दिन में मात्र 70 लीटर पानी ही उपलब्ध है, जो कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के हिसाब से काफी कम है।
( एक व्यक्ति को प्रति दिन कितना पानी चाहिए? इसके आकलन के अलग-अलग आधार होते हैं। आप गाँव में रहते हैं या शहर मेंं? आपका शहर सीवेज पाइप वाला है या बिना सीवेज पाइप वाला? यदि आप बिना सीवेज पाइप वाले छोटे शहर के बाशिंदे हैं, तो भारत में आपका काम 70 लीटर प्रति व्यक्ति प्रति दिन में भी चल सकता है। सीवेज वाले शहरों में न्यूनतम ज़रूरत 135 से 150 लीटर प्रति व्यक्ति प्रति दिन की उपलब्धता होनी चाहिए। भारत सरकार का ऐसा कायदा है। आप किसी महानगर में कार और किचन गार्डन और बाथ टैंक के साथ रहते हैं, तो यह ज़रूरत और भी अधिक हो सकती है। )
सरकार और समाज के बीच पुल बने, तो प्रेरणा को जमीन पर उतारने में सफलता मिल सकती है। लेकिन मुझे तो वहाँ ऐसे उत्साही पानी कार्यकर्ताओं का भी अभाव ही दिखाई दिया। जॉर्डन चाहे, तो इजराइल के पानी प्रबन्धन से सीख ले सकता है। किन्तु दो देशों के बीच विश्वास का अभाव यहाँ भी आड़े आता है।
इजराइल की होशियारी देखिए कि जहाँ पराए पानी को हथियाने के मामले में वह दादागिरी से काम ले रहा है, वहीं अपने पानी के उपयोग के मामले में बेहद समझदारी से।
इजराइल, जल संरक्षण तकनीकों के बारे में अपने नागरिकों को लगातार शिक्षित करता रहता है। विविध भूगोल तथा विविध आर्थिक परिस्थितियों के कारण भारत जैसे देश के लिये यह भले ही अनुचित हो, लेकिन इजराइल ने पानी के केन्द्रित और वास्तविक मूल्य आधारित प्रबन्धन को अपनाया है। इजराइल सरकार ने वहाँ जल नियंत्रकों की नियुक्ति की है।
इजराइल ने खारे पानी को मीठा बनाने की तकनीक को बड़े पैमाने पर अपनाया है। हालांकि यह बेहद महंगी तकनीक है; फिर भी इजराइल ने इसे अपनाया है तो इसके पीछे एक कारण है। इजराइल जानता है कि, उसके पास पानी का अपना एकमात्र बड़ा जलस्रोत, गलिली सागर (अन्य नामः किनरेट लेक) है। उसके पास कोई अन्य स्थानीय विकल्प नहीं है। इजराइल की एक-तिहाई जलापूर्ति, गलिली सागर से ही होती है। खारे पानी को मीठा बनाने की तकनीक के मामले में इजराइली संयंत्रों की खूबी यह है कि वे इतनी उम्दा ऊर्जा क्षमता व दक्षता के साथ संचालित किये जाते हैं कि खारे पानी को मीठा बनाने की इजराइली लागत, दुनिया के किसी भी दूसरे देश की तुलना में कम पड़ती है।
गौर करने की बात है कि इजराइल में घरेलू जरूरत के पानी की माँग में से 60 प्रतिशत की पूर्ति, इस प्रक्रिया से मिले मीठे पानी से ही हो जाती है। जॉर्डन नदी पर रोके पानी को वह पूरी तरह पेयजल की माँग पूरी करने के लिये सुरक्षित कर लेता है। फिलिस्तीन के पश्चिमी घाट के जलस्रोतों का इस्तेमाल वह कर ही रहा है।
इजराइल ने अपने देश में एक बार उपयोग किये जा चुके, कुल पानी में से 80 प्रतिशत को पुनः शुद्ध करने तथा पुनरूपयोग की क्षमता हासिल कर ली है। इजराइल अपने समस्त सीवेज वाटर का उपचार करता है। वह ऐसे कुल उपचारित सीवेज जल में से 85 प्रतिशत का उपयोग खेती-बागवानी में करता है; 10 प्रतिशत का इस्तेमाल नदी प्रवाह को बनाए रखने व जंगलों की आग बुझाने के लिये करता है और 05 प्रतिषत पानी को समुद्र में छोड़ देता है।
इजराइल में उपचारित जल का कृषि में उपयोग इसलिये भी व्यावहारिक हो पाया है, क्योंकि इजराइल में 270 किबुत्ज हैं।
युफ्रेटस नदी का क्षेत्रफल 5 लाख वर्ग कि.मी. है, जबकि गंगा का क्षेत्रफल इससे 2 गुना है, जो 10 लाख 80 हजार वर्ग कि. मी. में फैला है। गंगा नदी पर टिहरी बाँध है और दो बैराज फरक्का और नरोरा बने हैं। इसके मुकाबले युफ्रेटस नदी पर कुल 12 बाँध बने हैं। हायड्रो पावर जनरेशन स्टेशन की संख्या सैकड़ों से अधिक है। गंगा तीन देशोंं नेपाल, भारत और बांग्लादेश में बहती है। युफ्रेटस भी टर्की से आरम्भ होकर सीरिया होते हुए, ईराक में जाकर समुद्र में मिल जाती है। भारत की जनता ने गंगा को बचाने और उसकी अविरलता को बचाने के लिए 3 निर्माणाधीन बाँधों को 20 अगस्त 2009 में रद्द करवा दिया था, जबकि युफ्रेटस नदी पर अभी भी बाँध बनते ही जा रहे हैं। युफ्रेटस नदी पर बाँधो के कारण सीरिया और ईराक बड़े रेगिस्तान बन गये हैं। यह नया रेगिस्तान सीरिया, ईराक और टर्की को भी बहुत भारी होता जा रहा है।
गंगा दुनिया की सबसे अच्छी, पवित्रतम नदी थी। उसको वैसा ही बनाकर, आने वाली पीढ़ी को देने के भाव से गंगाजी के ऊपरी हिस्से में 150 कि.मी. लंबाई तक हिमालय में संवेदनशील क्षेत्र घोषित कर दिया है। जिससे कि गंगा मैया उत्तरांचल में अपनी पवित्रता के साथ प्रवाहित हो सके और गंगा जी की अविरलता व निर्मलता बनी रहे। इसी भाव से गंगा के ऊपरी भाग 150 कि.मी. हिमालयी क्षेत्र को संवेदनशील घोषित करके उस पर गंगाजी के विरुद्ध होने वाले विकास कार्यों को रुकवा दिया। जिससे हमारी गंगा की अविरलता और निर्मलता बराबर बनी रहेगी। भारत अपनी आने वाली पीढी को दुनिया की सबसे अच्छी नदी गंगाजी देने का गौरव प्राप्त कर सकेगा।
जब तक यह नदी आज़ादी से बहती थी, तब तक इस नदी क्षेत्र में गंगा, यमुना के क्षेत्र की तरह समृद्ध खेती होती थी। रेगिस्तान का प्रभाव भी उतना अधिक नहीं था। युफ्रेटस नदी को बाँधने के बाद उसकी रेत हवा में उड़कर सीरिया की खेती वाली जमीन पर जाकर बैठने लगी। उस रेत ने सीरिया में रेगिस्तान की वृद्धि दर तेज कर दी और सीरिया के खेती करने वाले किसान लाचार, बेकार और बीमार होकर अपने देश में उजड़ने लगे। इन्हें टर्की के रास्ते ही जर्मनी, फ्रांस, स्वीडन जाना पड़ा। इसलिए इन तीनों देशों के परस्पर संबंध बिगड़ने लगे और पानी की वास्तविक लड़ाई को सीया सुन्नी की लड़ाई में बदल दिया। यह जीवन जीने की लड़ाई है।
जलवायु परिवर्तन और जीविकोपार्जन की सबसे बड़ी भूमिका अपनी धरती की हरियाली और अपने राष्ट्रप्रेम की होती है। जब तक लोगों को अपनी धरती से और अपने राष्ट्र से प्रेम का सम्बन्ध प्रबल होता है, तब तक कोई दूसरा बाहर से आकर आतंक पैदा नहीं कर सकता। आतंक सदैव राष्ट्रप्रेम की कमी से जन्मता है। सभी आतंकवादी क्षेत्रां में अभी तक ऐसा ही हुआ है।
ईराक और टर्की में भी यही हुआ। लेकिन इसका मूल तो वहांँ का पानी और पानी पर निर्भर जीविका तथा जीवन को चलाने वाले रोजगार की कमी है। यह कमी पैदा करने का काम हमारे विकास की ऊर्जा और पानी पर केन्द्रीय नियंत्रण से पैदा हुआ है। इसको रोकने का एकमात्र उपाय सामुदायिक विकेन्द्रित प्राकृतिक संसाधनों का प्रबन्धन है। प्राकृतिक विकास करने से खतरनाक राक्षस पैदा नहीं होते। सामुदायिक विकेन्द्रित प्राकृतिक संसाधनों में धरती की नमी बढ़ती है, हरियाली आती है और जैव विविधता बढ़ती है। स्नेह समरसता और जैव विविधता से जीवन में समृद्धि आती है, बढ़ती है। जलवायु परिवर्तन के तनाव कम होते हैं। अनुकूलन प्रक्रिया तेज़ होती है। बडे़ बांधो पर नियंत्रण बढ़ता है और धरती की हरियाली और पानी पर चन्द बडे़ लोगां के कब्जे होते हैं। जैव विविधता का संकट पैदा होता है और लोगों के लिए तीर्थ यात्रा जैसे सुख और आनन्द देने वाले क्षेत्र या तो पानी में डूब जाते हैं या नदियों में ऊपर से उड़कर आने वाली रेत में दब जाते हैं, जो वीरान रेगिस्तान का रूप ले लेते हैं। यह टर्की, सीरिया और ईराक की युफ्रेटस नदी का आँखो देखा हाल है, युफ्रेटस की हत्या हो गई है, लेकिन गंगा जी अभी इस तरह के विकृत विनाश से बची हुई है। इसमें विकास का प्रदूषण है और भूजल का शोषण है।
अभी भी गंगा यमुना की संस्कृति और सभ्यता का मूल शेष बचा होने के कारण लोगों को अपनी धरती छोड़कर रोजी, रोटी की तलाश में यूरोप जाने की जरूरत नहीं है। अब लोग अपनी स्वेच्छा से लोग यूरोप जा रहे हैं; किसी के दबाव या मजबूरी के कारण नहीं।
गंगा में यदि युफ्रेटस नदी की तरह छेड़छाड़ करके बाँध या बैराज बनाने का काम किया जायेगा तो ठीक वैसा ही होगा, जैसा युफ्रेटस नदी घाटी के तीनों देशोंं में मारकाट व देशों पर नियंत्रण तथा अपने राष्ट्रप्रेम से लोगों को तोड़कर बाहर भगाना। यह सब भले ही राज्य सत्ता की कमियों के कारण होता है। लेकिन भुगतना वहांँ की जनता को ही पड़ता है। जनता का बलिदान होता है और जनता के जीवन में यह कष्ट मैंने खुली आँखों से देखा है।
गंगा के बेसिन में 520 मिलियन लोग बिना लड़ाई किये शांति से रहते हैं। युफ्रेटस नदी में कुल 20 मिलियन लोग रहते हैं; जिनके बीच जल का युद्ध हर दिन नये-नये रूप में सामने आता है। इसे शांति में बदलने का एकमात्र तरीका है, युफ्रेटस नदी के तीनों देश अपने वर्षाजल का सामुदायिक विकेन्द्रित जल प्रबन्धन करके नदी को बहने की आजादी दें। जिस प्रकार गंगा पर बन रहे तीन बांधों को रद्द करके भारत के प्रधानमंत्री ने पूरी दुनिया को गंगा की अविरलता के नाम पर नदियों की आजादी का सन्देश दिया था; उसी प्रकार युफ्रेटस नदी में भी अब आगे बड़े बान्ध नहीं बनें। वर्तमान बाँधो पर नदी को प्राकृतिक प्रवाह देने की व्यवस्था तकनीकी और इंजीनियरिंग तौर पर की जा सकती है। इसलिए हम सबको अब भारत की गंगा नदी से मानवता, शांति, सद्भावना और शक्तिभाव का सम्मान करने का सन्देश मिले। मैंने इस बढ़ते मरूस्थल को रोकने की तैयारी में अपना 30 वर्षों का प्रत्यक्ष जलवायु परिवर्तन-अनुकूलन-उन्मूलन को स्पष्ट से दिखाने वाली प्रस्तुति भी की थी। अलग-अलग सत्रों ये मुझे अपनी बातें रखने का अवसर प्राप्त हुआ।
*लेखक स्टॉकहोल्म वाटर प्राइज से सम्मानित और जलपुरुष के नाम से प्रख्यात पर्यावरणविद हैं। यहां प्रकाशित आलेख उनके निजी विचार हैं।
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