दुनिया की नदियां – 6
– डॉ. राजेंद्र सिंह*
जॉर्डन पश्चिम एशिया की 251 किलोमीटर (156 मील) लंबी नदी है। जॉर्डन नदी जॉर्डन, फिलिस्तीनी वेस्ट बैंक, इजरायल और दक्षिण-पश्चिमी सीरिया के बीच सीमा के साथ चलती है। ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण यह नदी मृत सागर में सागर-संगम करती है। निवर्तमान समय में यह इज़राइल की पूर्वी सीमा का निर्माण करती है। ईसाई परम्परा के अनुसार जॉन बैपटिस्ट ने इसी नदी में ईसा की बाप्टिस्म करी थी। हेशमाइट किंगडम ऑफ़ जॉर्डन का नाम इसी नदी के नाम पर ही पड़ा है। इसकी सहायक नदियाँ – बनियास नदी, दान नदी, यरमौक नदी, ज़रक नदी, हसबनी या स्निर नदी, इयोन स्ट्रीम।
जॉर्डन नदी के पास अपने स्रोतों से गलील सागर तक एक ऊपरी सतह है, और गलीलो सागर के दक्षिण में एक निचली सतह मृत सागर तक है। पारंपरिक शब्दावली में, ऊपरी पाठ्यक्रम (या इसके अधिकांश) को आमतौर पर “से गुजरने“ के रूप में संदर्भित किया जाता है। हुला घाटी जो की ऊपरी जॉर्डन घाटी के विपरीत है, गैलीलो का सागर जिसके माध्यम से नदी गुजरती है एक अलग इकाई है; और जॉर्डन घाटी निचली सतह पर है।
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जॉर्डन नदी की ऊपरी सतह पर हस्बानी नदी, बनियास नदी, दान नदी, और इयोन स्ट्रीम मिलती है। नदी 75 किलोमीटर (47 मील) में तेजी की रफ़्तार से गिरती है, जो एक बार बड़े और दलदली भाग हुला झील में जाता है, जिससे समुद्र का स्तर थोड़ा ऊपर हो जाता है। डेगनिया डैम जॉर्डन झील के भीतर ले जाने वाले गाद का अधिकांश भाग जमा करता है, जिसे वह फिर से अपने दक्षिणी सिरे के पास छोड़ देता है। तब नदी समुद्र तल से लगभग 210 मीटर नीचे स्थित होती है। अंतिम 120 किलोमीटर (75 मील)-लंबा खंड है जिसे आमतौर पर “जॉर्डन घाटी“ कहा जाता है। जिसमें ढाल कम है (कुल ड्रॉप एक और 210 मीटर है) ताकि नदी बल में प्रवेश करने से पहले मृत सागर, ए टर्मिनल झील बिना किसी आउटलेट के समुद्र तल से लगभग 422 मीटर नीचे आ जाती है।
लोअर जॉर्डन के सबसे उत्तरी हिस्से के बारे में पर्यावरणविदों का कहना है कि सीवेज और खारे पानी को नदी में प्रवाहित करने की प्रथा ने वहाँ का पारिस्थितिकी तंत्र लगभग नष्ट कर दिया है। अब यह बहुत प्रदूषित हो गई है। पर्यावरणविदों के अनुसार जॉर्डन को बचाने में दशकों लग सकते हैं। 2007 में, फ्रेंड्स ऑफ़ दी अर्थ मिडिल ईस्ट (ऍफ़ ओ इ एम इ ) ने जॉर्डन नदी को दुनिया के 100 सबसे लुप्तप्राय पारिस्थितिक स्थलों में से एक के रूप में नामित किया, जो कि इजरायल और पड़ोसी अरब राज्यों के बीच सहयोग की कमी के कारण था।
गैलीलो सागर के उत्तर में इसका खंड इस्राइल की सीमाओं के भीतर है और पश्चिमी सीमा बनाता है गोलान हाइट्स। झील के दक्षिण में यह जॉर्डन के राज्य (पूर्व में), और इज़राइल (पश्चिम में) के बीच की सीमा बनाता है।
आधुनिक समय में, पानी लगभग सभी मानव उद्देश्यों के लिए उपयोग किया जाता है और प्रवाह बहुत कम हो गया है। इस वजह से और उच्च वाष्पीकरण दर मृत सागरवाष्पीकरण तालाबों के माध्यम से लवण का औद्योगिक निष्कर्षण, मृत सागर तेजी से सिकुड़ रहा है।
19वीं शताब्दी में जॉर्डन नदी और मृत सागर की खोज मुख्य रूप से नाव द्वारा की गई थी। क्रिस्टोफर कोस्टिगन 1835 में, थॉमस हॉवर्ड मोलेंनक्वाम 1847 में, विलियम फ्रांसिस लिंच 1848 में, और जॉन मैकग्रेगर 1869 में। डब्ल्यू एफ लिंच की 1849 की किताब का पूरा पाठ जॉर्डन नदी और मृत सागर के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका के अभियान का वर्णन है।
एक समय जॉर्डन नदी की प्रवाह दर 1.3 बिलियन क्यूबिक मीटर प्रति वर्ष थी; 2010 तक, डेड सी में प्रति वर्ष सिर्फ 20 से 30 मिलियन क्यूबिक मीटर प्रवाह हो गया है।
21 वीं सदी के पहले दशक तक, जॉर्डन नदी का पानी इजरायल के लिए सबसे बड़ा जल संसाधन था। इज़राइल का राष्ट्रीय जल वाहक 1964 में पूरा हुआ, जब तक कि लंबे समय तक सूखे के कारण अलवणीकरण के पक्ष में इस समाधान को छोड़ने के लिए नेतृत्व करने के लिए, गलील के सागर से इज़रायली तटीय मैदान तक पानी पहुँचाया गया ।
जॉर्डन नदी के जल पर इजराईल ने बहुत पहले से ही अपना कब्ज़ा कर रखा है। इसलिए जॉर्डन अभी तक जल के उस संकट से उबरा नहीं है। फिलिस्तीनियों की हालत तो बहुत खराब है। वहाँ मैं बहुत सारे फिलिस्तीनियों व जॉर्डन के साथियों से मिला।
इजराइल और जॉर्डन के बीच पानी का विवाद बहुत पुराना है। यह विवाद जॉर्डन नदी के रिपेरियन राइट से जुड़ा है। अब आप देखिए कि लेबनान, सीरिया, जॉर्डन, इजराइल और कुछ हिस्सा फिलिस्तीन का कायदे से जॉर्डन नदी के पानी के उपयोग में इन सभी की हकदारी है। ताजे जल निकासी तंत्र की बात करें तो खासकर इजराइल, जॉर्डन और फिलिस्तीन के लिये जॉर्डन नदी का विशेष महत्व है। लेकिन वस्तुस्थिति यह है कि जॉर्डन के पानी पर सबसे बड़ा कब्जा इजराइल का है। इजराइल ने फिलिस्तीन के राष्ट्रीय प्राधिकरण को पानी देने से साफ-साफ मना कर रखा है।
दरअसल, लोग भूल जाते हैं कि दुनिया के 195 देशोंं में से करीब-करीब 150 देश ऐसे हैं, जिनके बारे में यह नहीं कहा जा सकता कि वहाँ पानी का कोई संकट नहीं है। आप जड़ में जाएँगे तो पाएँगे कि पानी के संकट के कारण आई अस्थिरता ही आगे चलकर अन्य, सामाजिक, आर्थिक और सामरिक समस्याओं के रूप में उभरी हैं। आप नजर घुमाकर अपने ही देश में देख लीजिए। बांग्लादेश के हमारे पर्यावरण मित्र फरक्का बाँध को लेकर अक्सर सवाल करते हैं। हम चीन द्वारा ब्रह्मपुत्र नदी पर की हरकतों पर सवाल उठाते हैं। नेपाल से आने वाली नदियों में बाँधों से अचानक छोड़े पानी के कारण तबाही पर चर्चा होती ही है। पाकिस्तान और हमारे बीच विवाद का एक मुद्दा पानी भी है।
26 अगस्त से 30 अगस्त 2015 तक जार्डन के राष्ट्रपति और मुझे एक ही साथ स्टोकहोम में रहने का अवसर मिला था। तब मैंने भी इस जॉर्डन नदी विवाद के विषय में विस्तार से बातचीत करी। इन्होंने कहा कि समझौता तो अच्छा है, लेकिन क्रियान्वित होने पर शंका है। उनकी शंका सच निकली और समझौता आज तक क्रियान्वित नहीं हुआ।
इजराइल ने 156 मील लम्बी जॉर्डन नदी पर एक बाँध बना रखा है। यह बाँध, जॉर्डन देश की ओर बहकर जाने वाले पानी को रोक देता है। इजराइल यह सब इसके बावजूद करता है, जबकि जॉर्डन और उसके बीच पानी को लेकर 26 फरवरी, 2015 को हस्ताक्षरित एक औपचारिक द्विपक्षीय समझौता अभी अस्तित्व में है। इस समझौते के तहत पाइप लाइन के जरिए रेड सी को डेड सी से जोड़ने तथा एक्युबा गल्फ में खारे पानी को मीठा बनाने के एक संयंत्र को लेकर सहमति भी शामिल है। ताजा पानी मुहैया कराने तथा तेजी से सिकुड़ते डेड सी की दृष्टि से इस समझौते का महत्व है। आलोचना करने वालों का कहना है कि ऐसा कोई समझौता तब तक प्रभावी नहीं हो सकता, जब तक कि इजराइल द्वारा की जा रही पानी की चोरी रुक न जाये। इजराइल द्वारा की जा रही पानी की इस चोरी ने जॉर्डन की खेती और उद्योग, दोनों को नुकसान पहुँचाया है। जॉर्डन के पास घरेलू उपयोग के लिये भी कोई अफरात पानी नहीं है। यहाँ भी वही हुआ? जॉर्डन में भी लोगों ने पहले पानी के लिये संघर्ष किया और फिर अपना देश छोड़कर स्वीडन, फ्रांस, जर्मनी, नीदरलैंड और बेल्जियम चले गए।
हालाँकि, जॉर्डन के लोग यह भी महसूस करते हैं कि समझौते के बावजूद जल संकट बरकरार रहने वाला है। वे मानते हैं कि इसका पहला कारण जॉर्डन में भी गर्मी तथा मौसमी बदलाव की बढ़ती प्रवृत्ति है। इसकी वजह से जॉर्डन में भूमि कटाव और गाद में बढ़ोतरी हुई है। दूसरा वे मानते हैं कि यदि वे प्रदूषित पानी को साफ कर सकें, तो उनके पास उपयोगी पानी की उपलब्धता बढ़ सकती है। किन्तु उनके पास इसका तकनीकी अभाव है। साधन भी नहीं है। राष्ट्रपति स्टॉकहोम साधन जुटाने, कर्ज लेने गये थे।
वर्षा जल का उचित संचयन और प्रबन्धन वहाँ कारगर हो सकता है। किन्तु जॉर्डन के इंजीनियर छोटी परियोजनाओं में रुचि नहीं लेते। उनकी ज्यादा रुचि नदी घाटी आधारित बड़ी बाँध परियोजनाओं में रहती है। लोग आगे आएँ तो यह हो सकता है। किन्तु खुद के पानी प्रबन्धन के लिये उनमें प्रेरणा का अभाव है। जॉर्डन में पानी पर सरकार का अधिकार है। लोगों के बीच पानी प्रबन्धन की स्व-स्फूर्त प्रेरणा के अभाव के पीछे एक कारण यह भी दिखता है।
सरकार और समाज के बीच पुल बने, तो प्रेरणा को जमीन पर उतारने में सफलता मिल सकती है। लेकिन मुझे तो वहाँ ऐसे उत्साही पानी कार्यकर्ताओं का भी अभाव ही दिखाई दिया। जॉर्डन चाहे तो इजराइल के पानी प्रबन्धन से सीख ले सकता है। किन्तु दोनों देशों के बीच विश्वास का अभाव यहाँ भी आड़े आता है।
इजराइल की होशियारी देखिए कि जहाँ पराए पानी को हथियाने के मामले में वह दादागिरी से काम ले रहा है, वहीं अपने पानी के उपयोग के मामले में बेहद समझदारी से काम कर रहा है। इसने अपनी जल उपयोग दक्षता बहुत बढ़ाई है। जल संरक्षण और प्रबंधन दोनों ही काम किये है।
इजराइल जल संरक्षण तकनीकों के बारे में अपने नागरिकों को लगातार शिक्षित करता रहता है। विविध भूगोल तथा विविध आर्थिक परिस्थितियों के कारण भारत जैसे देश के लिये यह भले ही अनुचित हो, लेकिन इजराइल ने पानी के केन्द्रित और वास्तविक मूल्य आधारित प्रबन्धन को अपनाया है। इजराइल सरकार ने वहाँ जल नियंत्रकों की नियुक्ति की है। इजराइल में जल पर रक्षा विभाग का नियंत्रण है। सेना ही जल सुरक्षा संभालती है।
इजराइल ने खारे पानी को मीठा बनाने की तकनीक को बड़े पैमाने पर अपनाया है। हालांकि यह बेहद महंगी तकनीक है; फिर भी इजराइल ने इसे अपनाया है तो इसके पीछे एक कारण है। इजराइल जानता है कि उसके पास पानी का अपना एकमात्र बड़ा जलस्रोत, गलिली सागर (अन्य नामः किनरेट लेक) है। उसके पास कोई अन्य स्थानीय विकल्प नहीं है। इजराइल की एक-तिहाई जलापूर्ति, गलिली सागर से ही होती है। खारे पानी को मीठा बनाने की तकनीक के मामले में इजराइली संयंत्रों की खूबी यह है कि वे इतनी उम्दा ऊर्जा क्षमता व दक्षता के साथ संचालित किये जाते हैं कि खारे पानी को मीठा बनाने की इजराइली लागत, दुनिया के किसी भी दूसरे देश की तुलना में कम पड़ती है।
गौर करने की बात है कि इजराइल में घरेलू जरूरत के पानी की माँग में से 60 प्रतिशत की पूर्ति इस प्रक्रिया से मिले मीठे पानी से ही हो जाती है। जॉर्डन नदी पर रोके पानी को वह पूरी तरह पेयजल की माँग पूरी करने के लिये सुरक्षित कर लेता है। फिलिस्तीन के पश्चिमी घाट के जलस्रोतों का इस्तेमाल वह कर ही रहा है।
इजराइल ने अपनी जलापूर्ति नीली, हरी, लाल रंग की तीन पाइप लाईनों द्वारा की है। यहाँ की राजधानी के शहर हो या गाँव हो सभी जल उपयोग में अनुशाषित और दक्ष है। यहाँ नीली पाईप का जल ‘ए’ श्रेणी का होता है। जो बहुपेयजल के काम आता है। रसोई आदि घरेलू कामों में उपयोग किया जाता है। हरा जल ‘बी’ श्रेणी में आता है जिसका उपयोग खेती में किया जाता है। ‘सी’ जल पाईप में होता है, जिसे उद्योगों में पुनः उपयोग किया जाता है। अखरोट आदि बड़े पेड़ों में भी उपयोग करते है।
इजराईल ने अपने आपको सुधार लिया। पड़ौसी देशों को बिल्कुल बिगाड़ दिया है। इसीलिए जल के लिए अच्छे काम करने वाले इजराइल को जॉर्डन नदी को लूटेरा बोला जाता है। 156 मील लंबी जॉर्डन नदी के प्रवाह पर इजराइल बांध बनाकर नियंत्रण करता है। इस कारण जॉर्डन देश में पानी की कमी है। इस जॉर्डन बारिश के पानी का प्रबंधन करने में भी असमर्थ है। मुझे लगता है कि, यहाँ सामुदायिक विकेन्द्रीत जल प्रबंधन की आवश्यकता है। लोगों में जल के प्रति जागरूक करने की जरूरत है। इस देश को व्यापक जल नीति बनाने के साथ-साथ देश के लोगों को साथ लेकर रचनात्मक कार्य करने की जरूरत है।
*लेखक स्टॉकहोल्म वाटर प्राइज से सम्मानित और जलपुरुष के नाम से प्रख्यात पर्यावरणविद हैं। यहां प्रकाशित आलेख उनके निजी विचार हैं।